ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 9
ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा
देवता - आदित्याः
छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
त्री रो॑च॒ना दि॒व्या धा॑रयन्त हिर॒ण्ययाः॒ शुच॑यो॒ धार॑पूताः। अस्व॑प्नजो अनिमि॒षा अद॑ब्धा उरु॒शंसा॑ ऋ॒जवे॒ मर्त्या॑य॥
स्वर सहित पद पाठत्री । रो॒च॒ना । दि॒व्या । धा॒र॒य॒न्त॒ । हि॒र॒ण्ययाः॑ । शुच॑यः । धार॑ऽपूताः । अस्व॑प्न्ऽअजः । अ॒नि॒ऽमि॒षाः । अद॑ब्धाः । उ॒रु॒ऽशंसाः॑ । ऋ॒जवे॑ । मर्त्या॑य ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्री रोचना दिव्या धारयन्त हिरण्ययाः शुचयो धारपूताः। अस्वप्नजो अनिमिषा अदब्धा उरुशंसा ऋजवे मर्त्याय॥
स्वर रहित पद पाठत्री। रोचना। दिव्या। धारयन्त। हिरण्ययाः। शुचयः। धारऽपूताः। अस्वऽप्नजः। अनिऽमिषाः। अदब्धाः। उरुऽशंसाः। ऋजवे। मर्त्याय॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 9
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
ये हिरण्यया धारपूताः शुचयः उरुशंसा अस्वप्नजोऽनिमिषा अदब्धा जवे मर्त्याय त्री दिव्या रोचना धारयन्त ते जगत्कल्याणकराः स्युः ॥९॥
पदार्थः
(त्री) त्रीणि (रोचना) प्रदीपकानि ज्ञानानि (दिव्या) दिव्यानि शुद्धानि (धारयन्त) धरन्ते। अत्राडभावः (हिरण्यया:) ज्योतिर्मयाः (शुचयः) पवित्राः (धारपूताः) येषां विद्यासुशिक्षाभ्यां वाणी पूता पवित्रा ते (अस्वप्नजः) विद्याव्यवहारे जागृता अविद्यानिद्रारहिताः (अनिमिषाः) निमेषालस्यवर्जिताः (अदब्धाः) अहिंसनीयाः (उरुशंसाः) बहुप्रशंसाः (जवे) सरलाय (मर्त्याय) मनुष्याय ॥९॥
भावार्थः
ये जीवप्रकृतिपरमेश्वराणां त्रिविधां विद्यां धृत्वाऽन्येभ्यो ददति सर्वानविद्यानिद्रात उत्थाप्य विद्यायां जागारयन्ति ते मनुष्याणां मङ्गलकारिणो भवन्ति॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जो (हिरण्ययाः) तेजस्वी (धारपूताः) विद्या और उत्तम शिक्षा से जिनकी वाणी पवित्र हुई वे (शुचयः) शुद्ध पवित्र (उरुशंसाः) बहुत प्रशंसावाले (अस्वप्नजः) अविद्यारूप निद्रा से रहित विद्या के व्यवहार में जागते हुए (अनिमिषाः) आलस्यरहित और (अदब्धाः) हिंसा करने के न योग्य अर्थात् रक्षणीय विद्वान् लोग (जवे) सरल स्वभाव (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (त्री) तीन प्रकार के (दिव्या) शुद्ध दिव्य (रोचना) रुचि योग्य ज्ञान वा पदार्थों को (धारयन्त) धारण करते हैं, वे जगत् के कल्याण करनेवाले हों ॥९॥
भावार्थ
जो मनुष्य जीव-प्रकृति और परमेश्वर की तीन प्रकार की विद्या को धारण कर दूसरे को देते, सबको अविद्यारूप निद्रा से उठाके विद्या में जगाते हैं, वे मनुष्यों के मङ्गल करानेवाले होते हैं ॥९॥
विषय
देव क्या करते हैं ?
पदार्थ
१. देववृत्ति के पुरुष ऋजवे मर्त्याय ऋजुमार्ग से चलनेवाले मनुष्य के लिए त्री- तीन दिव्या=अलौकिक रोचना-दीप्तियों को–'स्वास्थ्य, शान्ति व ज्ञानदीप्ति' को धारयन्त धारण करते हैं। ये देववृत्ति के पुरुष (हिरण्ययाः) = ज्योतिर्मय-जीवनवाले होते हैं, (शुचयः) = पवित्र मनोंवाले तथा (धारपूताः) = शुक्र को धारण करने से पवित्र व नीरोग शरीरवाले होते हैं। मस्तिष्क में हिरण्यम, मन में शुचि व शरीर में धारपूत । २. ये देव (अस्वप्नजः) = स्वप्नक्– सोने की वृत्तिवाले नहीं होते। (अनिमिषा:) = आँख की पलक नहीं मारते-सदा सावधान रहते हैं। इसीलिए (अदब्धाः) = वासनाओं से हिंसित नहीं होते। (उरुशंसा:) = खूब ही प्रभु का स्तवन करनेवाले होते हैं। यह प्रभुस्तवन इन्हें वासनाओं का शिकार नहीं होने देता। ३. इस प्रकार स्वयं उत्तमजीवनवाले बनकर ये देव अपने क्रियात्मक उदाहरण से औरों के जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयत्न करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ – देव 'ज्योतिर्मय, पवित्र व स्वस्थ' होते हैं। सदा सावधान रहते हुए, वासनाओं के शिकार न होकर, औरों को वासनाओं का शिकार होने से बचाते हैं।
विषय
उनके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( ऋजवे ) कार्यों को साधने वाले, ऋजु अर्थात् धर्म मार्ग पर चलने वाले, ( मर्त्याय ) मनुष्य के हित के लिये ( हिरण्ययाः ) हित और प्रिय वचन बोलने वाले, सूर्य के समान ज्ञान से प्रकाशमान, ( शुचयः ) शुद्ध आचार व्यवहार और अन्तःकरण वाले, धार्मिक, ( धारपूताः ) अभिषेक जलों से पवित्र हुए के समान धारा अर्थात् वेदवाणी द्वारा पवित्र, स्नातक, निष्णात, ( अस्वप्रजः ) स्वप्न, निद्रा आदि में न फंसे हुए, सावधान, ( अनिमिषाः ) आंख न झपकने वाले, अर्थात् दृष्टि दोष से रहित, सदा सावधान, एक पल भर भी व्यर्थ न करने वाले, (अदब्धाः) शत्रु से न मारे जाने योग्य, बलवान्, ( उरुशंसा: ) बहुत प्रशंसनीय वा बहुत उपदेशों से युक्त, बहुश्रुत, विद्वान् पुरुष ( त्री ) तीनों (दिव्या) दिव्य ज्ञान, कामना और व्यवहारों में उपयोगी, सर्वोत्तम एवं शुद्ध उज्ज्वल, ( रोचना ) प्रकाशमान तेजों, ज्ञानों, वेदों को ( अधारयन्त ) धारण करते हैं । ज्ञान, कर्म, उपासना इन तीनों के प्रकाशक, अग्नि, वायु, सूर्य इन द्वारा प्रकाशित ऋग्, यजुः, साम, स्तुति, कर्म और गान ये तीनों ही ज्ञान के प्रकाशक और हृदय के रुचिकर होने से ‘रोचन’ हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः॥ अदित्यो देवता॥ छन्दः- १,३, ६,१३,१४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ८, १२, १७ त्रिष्टुप् । ११, १६ विराट् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ९, १० स्वराट् पङ्क्तिः॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे जीव, प्रकृती व परमेश्वर याबाबत तीन प्रकारच्या विद्या धारण करून दुसऱ्यांना देतात, सर्वांना अविद्यारूपी निद्रेतून जागृत करून विद्या देतात, ती माणसांचे मंगल करणारी असतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Three charming gifts of Divinity the Adityas, scholar celibates, hold for humanity. Golden great are they, blazing brilliant, sanctified in the showers of knowledge and piety. Ever wakeful, they never sleep, nor dream, nor even wink their eye for a moment. Firm and inviolable are they, adorable, for the simple, honest and pious order of humanity, holding and preserving the knowledge of Divinity, karmic dexterity and sincerity of worship for survival and fulfilment in the world of mortality.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How to act on inspiration is elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Those who are glorious and have acquired good education and learning, they are pure, admired, always awakened with sensible dealings, active and non violent. Such people hold the divine and worthwhile knowledge of three-types for the good of simple persons. Let them be good-doers to all.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
They are the real benefactors to human beings who hold and thereafter propagate three-type learnings among them.
Foot Notes
(हिरण्ययाः) ज्योतिर्मया: = Glorious (घारपूता:) येषाम् विद्यासुशिक्षाभ्यां वाणी पूता पवित्रा ते = Those whose speech is full of studies and fine culture. (अस्वप्नजः) विद्याव्यवहारे जाग्रता अविद्यानिद्रारहिताः = Those who are ever conscious of knowledge and ideal dealings. (उरुशंसाः) बहुप्रशंसा: = Very admirable.
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