Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 27 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - आदित्याः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    पिप॑र्तु नो॒ अदि॑ती॒ राज॑पु॒त्राति॒ द्वेषां॑स्यर्य॒मा सु॒गेभिः॑। बृ॒हन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ शर्मोप॑ स्याम पुरु॒वीरा॒ अरि॑ष्टाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पिप॑र्तु । नः॒ । अदि॑तिः । राज॑ऽपु॒त्रा । अति॑ । द्वेषां॑सि । अ॒र्य॒मा । सु॒ऽगेभिः॑ । बृ॒हत् । मि॒त्रस्य॑ । वरु॑णस्य । शर्म॑ । उप॑ । स्या॒म॒ । पु॒रु॒ऽवीराः॑ । अरि॑ष्टाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिपर्तु नो अदिती राजपुत्राति द्वेषांस्यर्यमा सुगेभिः। बृहन्मित्रस्य वरुणस्य शर्मोप स्याम पुरुवीरा अरिष्टाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिपर्तु। नः। अदितिः। राजऽपुत्रा। अति। द्वेषांसि। अर्यमा। सुऽगेभिः। बृहत्। मित्रस्य। वरुणस्य। शर्म। उप। स्याम। पुरुऽवीराः। अरिष्टाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ न्यायाधीशविषयमाह।

    अन्वयः

    या राजपुत्रादितिर्योऽर्यमा राजा च सुगेभिरतिद्वेषांसि त्याजयित्वा नोऽस्मान् पिपर्त्तु मित्रस्य वरुणस्य बृहच्छर्म च पिपर्त्तु तत्सङ्गेन वयमरिष्टाः पुरुवीरा उपस्याम ॥७॥

    पदार्थः

    (पिपर्त्तु) पालयन्तु (नः) अस्मान् (अदितिः) मातेव (राजपुत्रा) राजा पुत्रो यस्याः सा (अति) (द्वेषांसि) (अर्यमा) विद्वत्प्रियः (सुगेभिः) सुगमैर्मार्गैः (बृहत्) (मित्रस्य) सख्युः (वरुणस्य) प्रशस्तस्य (शर्म) गृहम् (उप) (स्याम) (पुरुवीराः) पुरवो बहवो वीराः शरीरात्मबलाः पुरुषा येषान्ते (अरिष्टाः) न केनापि हिंसितुं योग्याः ॥७॥

    भावार्थः

    यथा न्यायाधीशो न्यायगृहमधिष्ठाय पुरुषाणां दण्डविनयं कुर्य्यात्तथैव राज्ञी न्यायाधीशा च स्त्रीणां न्यायं कुर्यात्तत्र रागद्वेषौ प्रीत्यप्रीती च विहाय न्यायमेव कुर्य्यात् ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब न्यायाधीश का विषय अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो (राजपुत्रा) जिसका पुत्र राजा हो ऐसी (अदितिः) माता के तुल्य सुख देनेवाली राज्ञी और जो (अर्यमा) विद्वानों से प्रीति रखनेवाला राजा (सुगेभिः) सुगम मार्गों से (द्वेषांसि,अति) वैर द्वेषों को अच्छे प्रकार छुड़ाके (नः) हमारा (पिपर्त्तु) पालन करे (मित्रस्य) मित्र तथा (वरुणस्य) प्रशंसायुक्त पुरुष के (बृहत्) बड़े ऐश्वर्यवाले (शर्म) घर की रक्षा करे उस राजा रानी के संग सम्बन्ध से हम लोग (अरिष्टाः) किसी से न मारने योग्य (पुरुवीराः) शरीर आत्मा के बल से युक्त बहुत पुत्र भृत्यादि जिनके हों ऐसे (उप,स्याम) आपके निकट होवें ॥७॥

    भावार्थ

    जैसे न्यायाधीश राजा न्यायघर में बैठ के पुरुषों को दण्ड देवे, वैसे न्यायाधीशा रानी स्त्रियों का न्याय करे। उस न्यायघर में रागद्वेष और प्रीति अप्रीति छोड़के केवल न्याय ही किया करे, अन्य कुछ न करे ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    निर्दोषता में ही सुख है

    पदार्थ

    १. यह (अदितिः) = माता राजपुत्रा देदीप्यमान पुत्रोंवाली (नः) = हमें (द्वेषांसि अति पिपर्तु) = द्वेष की वृत्तियों से पार करे। (अर्यमा) = काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं को वश में करनेवाला अर्यमा (सुगेभिः) = सुष्ठु गन्तव्य मार्गों से हमें द्वेषादि वृत्तियों से ऊपर उठाये । २. (मित्रस्य) = सबके साथ स्नेह करनेवाले का तथा (वरुणस्य) = द्वेष व पाप के निवारण करनेवाले का (शर्म) = सुख बृहत् महान् है । वस्तुतः स्नेह व निर्देषता में ही सुख है। हम (पुरुवीराः) = खूब वीर सन्तानोंवाले होते हुए (अरिष्टाः) = वासनाओं से अहिंसित होते हुए मित्र और वरुण के शर्म सुख को (उपस्याम) = उपगत हों। हमें भी मित्र और वरुण का सुख प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम द्वेष से ऊपर उठें, इसी में सुख है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजसभा, न्यायसभा, जनसभा और सभापति का वर्णन ।

    भावार्थ

    (राजपुत्रा) राजा को पुत्र के समान अपने अधीन रखनेवाली, राजमाता के समान राजसभा, न्यायसभा और जनसभा, ( अदितिः ) अखण्ड शासन वाली और ( अर्यमा ) न्यायकारी सभापति ( सुगेभिः ) सुख से जाने योग्य, सुगम उपायों से ही ( नः ) हमें ( द्वेषांसि ) परस्पर के द्वेष के भावों और द्वेषकारी पुरुषों से ( अति पिपर्त्तु ) पार करे। ( मित्रस्य ) सखा के समान प्रजा के स्नेही और ( वरुणस्य ) रात्रि के समान सब दुखों के वारण करने वाले शासक का ( शर्म ) सुखदायी शरण भी ( बृहत् ) बहुत बड़ा और प्रजा का वर्धक हो । हम भी ( पुरुवीराः ) बहुत से वीरों और पुत्रों से युक्त ( अरिष्टाः ) रोगों और शत्रुओं से पीड़ित न होते हुए, सुखी ( उप स्याम ) होकर रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः॥ अदित्यो देवता॥ छन्दः- १,३, ६,१३,१४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ८, १२, १७ त्रिष्टुप् । ११, १६ विराट् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ९, १० स्वराट् पङ्क्तिः॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा न्यायाधीश राजा न्यायालयात पुरुषांना दंड देतो तसे न्यायाधीश राणीने स्त्रियांचा न्याय करावा. त्यांनी न्यायालयात राग-द्वेष व प्रीती-अप्रीती सोडून केवळ न्यायच करावा. इतर काही करू नये. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May Aditi, mother queen of inviolable unity and abundance with her brilliant children of regal character give us total fulfilment of life. May Aryama, just and judicious ruler, friend of the intelligent and the wise, lead us across and beyond the jealous and the hostile by simple and clear paths of action. May we all, mighty brave blest with vibrant progeny, ever live unhurt and happy by the great household of peace and well-being, a perpetual gift of Mitra, lord of friend-ship and fraternity, and Varuna, lord of freedom and justice.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of judges are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O father of the judges (State officials) and the mother-like queen! the ruler bestows affection on the learned and takes us by the easy path and protects by removing enmity and prejudices. Let him protect the grand abode of the great man. Through the association of the rulers and their wives (judges), let us become close to persons, whose sons and paraphernalia are physically and spiritually sturdy and strong.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A state official (judge) should pronounce the sentence (punishment) in the court and his wife should deliver justice among the women. They should never act with bias or prejudice.

    Foot Notes

    (पिपत्त) पालयन्तु = Protect us. (राजपुत्रा ) राजा पुत्नो यस्याः सा = A father whose sons are high State officials. (पुरुवीस:) पुरवो वहवो वीराः शरीरात्मबलाः पुरुषाः येषान्ते = Whose sons and paraphernalia are sturdy and strong physically and spiritually.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top