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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 27/ मन्त्र 14
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - आदित्याः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अदि॑ते॒ मित्र॒ वरु॑णो॒त मृ॑ळ॒ यद्वो॑ व॒यं च॑कृ॒मा कच्चि॒दागः॑। उ॒र्व॑श्या॒मभ॑यं॒ ज्योति॑रिन्द्र॒ मा नो॑ दी॒र्घा अ॒भि न॑श॒न्तमि॑स्राः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदि॑ते । मित्र॑ । वरु॑ण । उ॒त । मृ॒ळ॒ । यत् । वः॒ । व॒यम् । च॒कृ॒म । कत् । चि॒त् । आगः॑ । उ॒रु । अ॒श्या॒म् । अभ॑यम् । ज्योतिः॑ । इ॒न्द्र॒ । मा । नः॒ । दी॒र्घाः । अ॒भि । न॒श॒न् । तमि॑स्राः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदिते मित्र वरुणोत मृळ यद्वो वयं चकृमा कच्चिदागः। उर्वश्यामभयं ज्योतिरिन्द्र मा नो दीर्घा अभि नशन्तमिस्राः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदिते। मित्र। वरुण। उत। मृळ। यत्। वः। वयम्। चकृम। कत्। चित्। आगः। उरु। अश्याम्। अभयम्। ज्योतिः। इन्द्र। मा। नः। दीर्घाः। अभि। नशन्। तमिस्राः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 27; मन्त्र » 14
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे अदिते इन्द्र मित्रोत वरुण त्वमस्मान् मृळ यद्वः कश्चिदुर्वागो वयं चकृम तत् क्षम्यतां यतोऽभयं ज्योतिरहमश्याम्। नो दीर्घास्तमिस्रा माभिनशन् ॥१४॥

    पदार्थः

    (अदिते) अखण्डितस्वरूपविज्ञाने (मित्र) सर्वेषां सुहृत् (वरुण) सर्वोत्कृष्ट (उत) (मृळ) सुखय (यत्) (वः) युष्माकम् (वयम्) (चकृम) कुर्याम। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (कत्) (चित्) किंचित् (आगः) अपराधम् (उरु) बहु (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (अभयम्) भयवर्जितम् (ज्योतिः) प्रकाशयुक्तं दिनम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (दीर्घाः) स्थूलाः (अभि) (नशन्) नश्यन्तु (तमिस्राः) रात्रयः ॥१४॥

    भावार्थः

    यत्र विदुषी स्त्री स्त्रीणां न्यायकर्त्री पुरुषाणां विद्वान् पुरुषश्च तत्राहोरात्रौ निर्भयौ भवेतां विशेषतो रात्रिश्च सुखेन गच्छति ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (अदिते) अखण्डित स्वरूप और विज्ञानवाली न्यायकर्त्री राज्ञी तथा हे (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (मित्र) सबके सखा (उत) और (वरुण) सबसे उत्तम राजन् आप हमको (मृळ) सुखी करो (यत्) जो (वः) तुम्हारा (कश्चित्) कुछ (उरु) बड़ा (आगः) अपराध (वयम्) हम (चकृम) करें उसको क्षमा करो जिससे (अभयम्) भयरहित (ज्योतिः) प्रकाशयुक्त दिन को (अश्याम्) प्राप्त होऊँ और (नः) हमारी (दीर्घाः) बड़ी (तमिस्राः) रात्री (मा) (न) (नशन्) कटें अर्थात् रात्रि को सुखपूर्वक निर्भय सोवें ॥१४॥

    भावार्थ

    जिस देश वा नगर में विदुषी स्त्री स्त्रियों का न्याय करनेवाली और पुरुषों का न्याय करनेवाला विद्वान् पुरुष हो, उस देश वा नगर में दिन रात्री निर्भय होते और विशेषकर चोर आदि के भय से रहित सुखपूर्वक रात्री व्यतीत होती है ॥१४॥

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    विषय

    प्रकाश, न कि अन्धकार

    पदार्थ

    १. (अदिते) = हे अदीने! (मित्र उत वरुण) = स्नेह तथा निष्पापता के देवताओ! (मृड) = आप हमें सुखी करो (यद्) = चाहे (वयम्) = हम (वः) = आपके विषय में (कच्चिद्) = कुछ (आग:) = अपराध (चकृमा) = कर बैठें। 'अदिति' अखण्डन व स्वास्थ्य का देवता है। हम असावधानी से स्वास्थ्य के विषय में कुछ अपराध कर बैठें तथा स्नेह के स्थान में कभी कटुता को अपना बैठें और निर्देषता से पूरे-पूरे ऊपर न उठ पाएँ तो भी आप हमें कृपादृष्टि से ही देखना। २. हे (इन्द्र) = हमारे सब शत्रुओं का विनाश करनेवाले प्रभो ! मैं (उरु) = विशाल (अभयम्) = निर्भयता के आधारभूत (ज्योतिः) = प्रकाश को (अश्याम्) = प्राप्त करूँ। और (नः) = हमें (दीर्घः) = ये न समाप्त होनेवाले– दीर्घकाल तक चलनेवाले (तमिस्रा:) = अन्धकार (मा अभिनशन्) = मत प्राप्त हों । रात्रि के कुछ निद्रा के घण्टों को छोड़कर हम सदा चैतन्य अवस्था में बने रहें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- अदिति, मित्र और वरुण की कृपा से हम प्रकाश को प्राप्त हों- अन्धकार हमारे से दूर हो ।

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    विषय

    उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अदिते ) शासन करने वाली विदुषि ! राजसभे ! हे ( मित्र ) मरण से रक्षा करने वाले ! सुहृत् ! हे ( वरुण ) श्रेष्ठपुरुष राजन् ! ( वयम् ) हम ( यत् ) जब भी ( कच्चित् ) कोई ( वः ) आप लोगों के प्रति ( आगः ) अपराध ( चकृम ) करें तो भी ( मृळ ) हमें सुखीकर । मैं ( उरु ) बहुत बड़ा ( अभयं ) भयरहित ( ज्योतिः ) प्रकाश ( अश्याम् ) प्राप्त करूं । और ( नः ) हमारी ( दीर्घाः तमिस्राः ) लम्बी रातें ( मा अभि नशन् ) नष्ट न हों । उनका सुख हमें बराबर प्राप्त हो । अथवा, ( नः ) हमें ( दीर्घाः तमिस्राः ) लम्बी चौड़ी अन्धकार मय दशाएं ( मा अभि नशन् ) प्राप्त होकर हमारा नाश न करें, हमें न घर दबावें । हम तामसी दशाओं में न पड़े रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा ऋषिः॥ अदित्यो देवता॥ छन्दः- १,३, ६,१३,१४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ८, १२, १७ त्रिष्टुप् । ११, १६ विराट् त्रिष्टुप्। ७ भुरिक् पङ्क्तिः। ९, १० स्वराट् पङ्क्तिः॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या देशात किंवा नगरात स्त्रियांचा न्याय करणारी विदुषी स्त्री व पुरुषांचा न्याय करणारा विद्वान पुरुष असेल त्या देशात किंवा नगरात दिवसा व रात्री चोरांपासून निर्भयतेने जगता येते. विशेष करून रात्र चोरापासून भयरहित सुखाने व्यतीत करता येते. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Aditi, Nature, mother earth and spirit of the human nation, Mitra, lord of love and friendship, Varuna, lord of justice, relent, be kind and gracious to us even if we happen to transgress and commit a sin of error. Indra, lord of power and ruler over the nation, grant us ample freedom from fear and lots of light and knowledge so that long nights of darkness, sin and suffering may never afflict us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of State official (ruler) are re-emphasized.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O queen (wife of the ruler) ! your image is clean and you are learned. O great prosperous, friendly, and most acceptable ruler! both of you make us happy. Forgive us if we commit any crime. Let me pass a bright day and dark night fearlessly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Where women and men, both, are learned and capable to administer justice firmly, there the people live fearless during the day and night.

    Foot Notes

    (अदिते) अखण्डित स्वरूप विज्ञाने = O learned ( women) with clean image. ( अभयम् ) भयवर्जितम = Fearlessly. ( तमिस्रा: ) रात्रय: = Nights.

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