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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तमी॑ळिष्व॒ यो अ॒र्चिषा॒ वना॒ विश्वा॑ परि॒ष्वज॑त्। कृ॒ष्णा कृ॒णोति॑ जि॒ह्वया॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । ई॒ळि॒ष्व॒ । यः । अ॒र्चिषा॑ । वना॑ । विश्वा॑ । प॒रि॒ऽस्वज॑त् । कृ॒ष्णा । कृ॒णोति॑ । जि॒ह्वया॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमीळिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत्। कृष्णा कृणोति जिह्वया ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। ईळिष्व। यः। अर्चिषा। वना। विश्वा। परिऽस्वजत्। कृष्णा। कृणोति। जिह्वया ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथा सूर्य्योऽर्चिषा विश्वा वना परिष्वजत् कृष्णा कृणोति तथा यो जिह्वया सत्याचारं परिष्वजत्तं त्वमीळिष्व ॥१०॥

    पदार्थः

    (तम्) (ईळिष्व) प्रशंसाऽध्यन्विच्छ वा (यः) (अर्चिषा) सत्कारेण (वना) वनानि किरणान् (विश्वा) सर्वाणि (परिष्वजत्) सर्वतः सम्बध्नाति (कृष्णा) कर्षणानि (कृणोति) (जिह्वया) ॥१०॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यप्रकाशेन सर्वे पदार्था यथावद् दृश्यन्ते तथैव विद्यया सर्वे पदार्थाः प्रकाश्यन्ते ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् जन ! जैसे सूर्य्य (अर्चिषा) सत्कार से (विश्वा) समस्त (वना) किरणों का (परिष्वजत्) सब ओर से सम्बन्ध करता है तथा (कृष्णा) पदार्थों की खीचों को =पदार्थों का कर्षण (कृणोति) करता है, वैसे (यः) जो (जिह्वया) जिह्वा से सत्य आचरण का सम्बन्ध करे (तम्) उसकी आप (ईळिष्व) प्रशंसा वा याचना करो ॥१०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य के प्रकाश से सब पदार्थ यथावत् दीखते हैं, वैसे ही विद्या से सब पदार्थ प्रकाशित होते हैं ॥१०॥

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    विषय

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    भावार्थ

    जिस प्रकार अग्नि (अर्चिषा) अपनी ज्वाला से (विश्वा वना) सब बनों या काष्ठों में (परि स्वजत् ) लग जाता है और उनको (जिह्वया) अपनी ज्वाला से ( कृष्णा ) काला कोयला ( करोति ) बना देता है और जिस प्रकार सूर्य वा विद्युत् जल (अर्चिषा) अपनी दीप्ति से ( विश्वा वना परिष्वजत् ) समस्त किरणों और समस्त मेघस्थ जलों को व्यापता है और ( जिह्वया कृष्णा करोति ) अपनी ग्रहणकारिणी आकर्षक शक्ति से आकर्षण करता है उसी प्रकार ( यः ) जो पुरुष अपने ( अर्चिषा ) अर्चना वा आदर सत्कार योग्य उत्तम कर्म से ( विश्वा वना ) समस्त विभाग योग्य द्रव्यों को (परि स्वजत् ) प्राप्त कर लेता है और ( जिह्वया ) वाणी द्वारा ( कृष्णा ) नाना आकर्षण ( करोति ) उत्पन्न करता है, हे विद्वन् ! तू ( तम् ईडिष्व ) उसको चाह, उसकी स्तुति और आदर कर । इत्यष्टाविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    कृष्णा कृणोति जिह्वया

    पदार्थ

    [१] (तम्) = उस प्रभु को (ईडिष्व) = स्तुत कर, (यः) = जो (अर्चिषः) = अपनी ज्ञान दीप्ति से (विश्वा वना) = सब उपासकों को (परिष्वजत्) = आलिंगित करता है। प्रभु अपने उपासकों को ज्ञानदीप्ति प्राप्त कराते हैं । [२] ये प्रभु अग्नि हैं, अग्रेणी हैं। प्रकाश के द्वारा हमारा मार्ग दर्शन करते हुए हमें आगे ले चलते हैं। (जिह्वया) = ज्ञानोपदेश के द्वारा ये प्रभु (कृष्णा कृणोति) = सब कालिमाओं को, मलिनताओं को नष्ट करते हैं [कृणोति - to kill]।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की उपासना हमें ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कराती है, हमारी मलिनताओं को ज्ञानोपदेश द्वारा समाप्त करती है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्याच्या प्रकाशामुळे सर्व पदार्थ स्पष्ट दिसतात तसेच विद्येने सर्व पदार्थ जाणता येतात. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O celebrant, love and adore that power of divinity which with its refulgence pervades all rays of the sun, moves all floods of water, and envelops all forests and makes them green with its radiations.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a king be―is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O scholar! as the sun unites his rays from all sides and attracts with his luster, in the same manner, admire and desire to approach that man, who with his tongue embraces or unites truthful conduct.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As with the light of the sun, all objects are seen as they are (well), in the same manner, by true knowledge, all objects are illuminated.

    Foot Notes

    (वना) वनानि किरणान् । वनमिति रश्मिनाम (NG 1, 5)। = Rays of the sun. (कृष्णा) कर्षणानि । = Attractions.

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