ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 9
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ताभि॒रा ग॑च्छतं न॒रोपे॒दं सव॑नं सु॒तम्। इन्द्रा॑ग्नी॒ सोम॑पीतये ॥९॥
स्वर सहित पद पाठताभिः॑ । आ । ग॒च्छ॒त॒म् । न॒रा॒ । उप॑ । इ॒दम् । सव॑नम् । सु॒तम् । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । सोम॑ऽपीतये ॥
स्वर रहित मन्त्र
ताभिरा गच्छतं नरोपेदं सवनं सुतम्। इन्द्राग्नी सोमपीतये ॥९॥
स्वर रहित पद पाठताभिः। आ। गच्छतम्। नरा। उप। इदम्। सवनम्। सुतम्। इन्द्राग्नी इति। सोमऽपीतये ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ किं कुर्यातमित्याह ॥
अन्वयः
हे नरेन्द्राग्नी ! युवां ताभिः सोमपीतय इदं सुतं सवनमुपाऽऽगच्छतम् ॥९॥
पदार्थः
(ताभिः) स्पृहाभिः (आ) (गच्छतम्) समन्तात् प्राप्नुतम् (नरा) नायकौ (उप) (इदम्) (सवनम्) येन सूयते तत् (सुतम्) सुसंस्कृतम् (इन्द्राग्नी) इन्द्रवायू इव सज्जनौ (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥९॥
भावार्थः
यजमाना विदुष आहूय सदैव सत्कुर्य्युः सत्कृतास्ते च यजमानान् धर्मपथं नयेयुः ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नरा) नायक (इन्द्राग्नी) बिजुली और वायु के समान सज्जनो ! तुम दोनों (ताभिः) उन इच्छाओं से (सोमपीतये) सोमपान के लिये (इदम्) इस (सुतम्) अच्छे प्रकार संस्कार किये हुए (सवनम्) जिससे उत्पन्न करते हैं, उसके (उप, आ, गच्छतम्) समीप प्राप्त होओ ॥९॥
भावार्थ
यजमान जन विद्वानों को बुलाकर सदैव सत्कार करें और सत्कार पाये हुए वे लोग भी यजमानों को धर्मपथ को प्राप्त करावें ॥९॥
विषय
missing
भावार्थ
हे ( नरा ) उत्तम स्त्री पुरुषो ! हे ( इन्द्राग्नी ) ऐश्वर्यवान् और अग्निसम तेजस्वी जनो ! आप (ताभिः ) इन सम्पदाओं, शुभ कामनाओं से ( आ गच्छतम् ) आइये । ( इदं सवनं ) यह यज्ञ ( उपसुतम् ) अच्छी प्रकार किया गया है। आप (सोम-पीतये ) ओषधिरसवत् ऐश्वर्य, सुख के उपभोग के लिये प्राप्त हूजिये ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
'नरा' इन्द्राग्नी
पदार्थ
[१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राणापानो! (ताभिः) [नियुद्धिः ] = उन इन्द्रियाश्वों के साथ (इदम्) = इस (सुतम्) = उत्पन्न हुए हुए (सवनम्) = [सूयते] सोम को (उप आगच्छतम्) = समीपता से आप प्राप्त होवो । इन्द्र अग्नि हमें उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करायें तथा हमारे जीवन-यज्ञ को सोम सम्पन्न करें। [२] (इन्द्राग्नी) = हे इन्द्र व अग्नि! आप (सोमपीतये) = इस सोम के पान के लिये हों। आपका आराधन मुझे सोम को शरीर में ही व्याप्त करने के योग्य बनाये ।
भावार्थ
भावार्थ- बल व प्रकाश की आराधना हमें सोम के रक्षण के योग्य बनाती है। इस सोमरक्षण के द्वारा ये हमें उन्नतिपथ पर ले चलते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
यजमानांनी विद्वानांना आमंत्रित करून सदैव त्यांचा सत्कार करावा व सत्कारित विद्वानांनीही यजमानांना धर्मपथावर घेऊन जावे. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Agni, leading lights, with those cherished gifts and powers come and join this yajnic session to drink of the soma of joy distilled.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should they do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O leading good men! you who are benevolent like electricity and air, come with those noble desires to this Yajna, which has been performed nicely to drink Soma-the juice of invigorating plants and herbs etc.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The performers of the Yajnas should always invite and honor the enlightened persons and they should lead them to the path of Dharma (righteousness).
Foot Notes
(इन्द्राग्नी) इन्द्रवायू इव सज्जनो । यो वै वायुः स इन्द्रौ य इन्द्र: स वायुः (S. Br. 4, 1, 3, 19 ) अग्नि:- विदयुदुरुपोऽत्र ग्राह्य:। = Good men who are benevolent like electricity and air.
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