ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 8
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
या वां॒ सन्ति॑ पुरु॒स्पृहो॑ नि॒युतो॑ दा॒शुषे॑ नरा। इन्द्रा॑ग्नी॒ ताभि॒रा ग॑तम् ॥८॥
स्वर सहित पद पाठयाः । वा॒म् । सन्ति॑ । पु॒रु॒ऽस्पृहः॑ । नि॒ऽयुतः॑ । दा॒शुषे॑ । न॒रा॒ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । ताभिः॑ । आ । ग॒त॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
या वां सन्ति पुरुस्पृहो नियुतो दाशुषे नरा। इन्द्राग्नी ताभिरा गतम् ॥८॥
स्वर रहित पद पाठयाः। वाम्। सन्ति। पुरुऽस्पृहः। निऽयुतः। दाशुषे। नरा। इन्द्राग्नी इति। ताभिः। आ। गतम् ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥
अन्वयः
हे नरा इन्द्राग्नी ! वा या पुरुस्पृहो नियुतः सन्ति ताभिर्दाशुष आ गतम् ॥८॥
पदार्थः
(या) याः (वाम्) युवयोः (सन्ति) (पुरुस्पृहः) पुरून् बहूनुत्तमान् कामानभिकाङ्क्षयन्ति याभिस्ताः (नियुतः) निश्चिताः (दाशुषे) दात्रे (नरा) नायकौ (इन्द्राग्नी) विद्यैश्वर्य्ययुक्तावध्यापकोपदेशकौ (ताभिः) स्पृहाभिः (आ) (गतम्) आगच्छतम् ॥८॥
भावार्थः
ये मनुष्याः परोपकारं चिकीर्षन्ति त एव सत्पुरुषा भवन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नरा) नायक (इन्द्राग्नी) विद्या और ऐश्वर्य्ययुक्त अध्यापक और उपदेशको ! (वाम्) तुम दोनों की (या) जो (पुरुस्पृहः) बहुतों की चाहना करते जिनसे वे (नियुतः) निश्चित (सन्ति) हैं (ताभिः) उन इच्छाओं से (दाशुषे) दान देनेवाले के लिये (आ, गतम्) आओ ॥८॥
भावार्थ
जो मनुष्य परोपकार करने की इच्छा करते हैं, वे ही सत्पुरुष होते हैं ॥८॥
विषय
missing
भावार्थ
हे ( नरा ) नायक जनो ! हे ( इन्द्राग्नी ) ऐश्वर्यवन् और अग्रणी पुरुषो ! (याः ) जो ( वां ) आप दोनों की ( पुरु-स्पृहः ) बहुतों से अभिलाषा करने योग्य ( नि-युतः ) अधीन नियुक्त सेनाएं वा लक्षों सम्पदाएं वा उत्तम इच्छाएं ( सन्ति ) हैं (ताभिः ) उनसे आप दोनों ( दाशुषे ) दानशील, करप्रद प्रजाजन के हितार्थ (आगतम् ) आइये ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
उत्तम इन्द्रियाश्व
पदार्थ
[१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवो! (याः) = जो (वाम्) = आपके (पुरुस्पृहः) = बहुतों से स्पृहणीय (नियुतः) = इन्द्रियरूप अश्व (सन्ति) = हैं, वे (दाशुषे) = आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाले के लिये होते हैं। (दाश्वान्) = पुरुष के लिये आप इन्हें प्राप्त कराते हैं । बल व प्रकाश की आराधना करनेवाला पुरुष ही इन इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करता है । [२] हे (नरा) = इन इन्द्रियाश्वों से हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले इन्द्राग्नी ! (ताभिः) = उन इन्द्रियाश्वों से (आगतम्) = आप हमें प्राप्त होवो । उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त कराके ही आप हमें जीवन में आगे ले चलते हो ।
भावार्थ
भावार्थ- बल व प्रकाश का आराधन हमें उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त कराके उन्नत करता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे परोपकाराची इच्छा बाळगतात ती माणसे सत्पुरुष असतात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra and Agni, leading powers of humanity, come to the generous giver and celebrant yajaka with all those gifts and powers of yours which are loved and cherished by all.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How are they — is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O leading teachers and preachers ! you who are endowed with the great wealth of knowledge, come to the home of a liberal donor along with those fixed and many other good desires.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Only those are good men, who desire to do good to others.
Foot Notes
(इन्द्राग्नी) विद्यैश्वर्य्य युक्तावध्यापकोपदेशकौ । इवि-पर्मैश्वर्य्यै (भ्वा०) = Teachers and preachers endowed with the great wealth of knowledge. The use of the adjective with Indragnee clearly supports Rishi Dayananda Sarasvati's interepreation of इन्द्राग्नी as विद्यैश्वर्येयुक्तावध्यायकोरेशकौ or सभा सेनेशौ etc. who are leading men. (दाशुषे ) दात्रे । दाशुदाने (भ्वा) । = For a donor.
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