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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 12
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ता नो॒ वाज॑वती॒रिष॑ आ॒शून्पि॑पृत॒मर्व॑तः। इन्द्र॑म॒ग्निं च॒ वोळ्ह॑वे ॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । नः॒ । वाज॑ऽवतीः । इषः॑ । आ॒शून् । पि॒पृ॒त॒म् । अर्व॑तः । इन्द्र॑म् । अ॒ग्निम् । च॒ । वोळ्ह॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता नो वाजवतीरिष आशून्पिपृतमर्वतः। इन्द्रमग्निं च वोळ्हवे ॥१२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता। नः। वाजऽवतीः। इषः। आशून्। पिपृतम्। अर्वतः। इन्द्रम्। अग्निम्। च। वोळ्हवे ॥१२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 12
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः केन किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यूयं यौ नो वाजवतीरिष आशूनर्वतः पिपृतं तेन्द्रमग्निं च वोळ्हवे सङ्गृह्णीत ॥१२॥

    पदार्थः

    (ता) तौ (नः) अस्मभ्यम् (वाजवतीः) प्रशस्तविज्ञानयुक्तान् (इषः) अन्नादीन् (आशून्) आशुगामिनः (पिपृतम्) पूरयेताम् (अर्वतः) अश्वान् (इन्द्रम्) विद्युतम् (अग्निम्) प्रसिद्धं पावकम् (च) (वोळ्हवे) विमानादियानानां वाहनाय ॥१२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यूयं विद्युदादिपदार्थैर्विमानादीनि यानानि चालयित्वेच्छाः पूरयत ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को किससे क्या करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम जो (नः) हमारे लिये (वाजवतीः) प्रशस्त विज्ञानयुक्त (इषः) अन्नादि पदार्थों और (आशून्) शीघ्रगामी (अर्वतः) घोड़ों को (पिपृतम्) पूर्ण करते हैं (ता) उन (इन्द्रम्) बिजुली रूप अग्नि (अग्निम्, च) और प्रसिद्ध अग्नि को (वोळ्हवे) विमान आदि यानों को वहाने के लिये संग्र­ह करो ॥१२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम बिजुली आदि पदार्थों से विमान आदि यानों को चलाकर इच्छाओं को पूर्ण करो ॥१२॥

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    विषय

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    भावार्थ

    ( इन्द्राग्नी ) ऐश्वर्ययुक्त, तेजस्वी और ज्ञानयुक्त स्त्री पुरुषो ! आप लोग (वः वाजवती: इष: ) हमारे बलयुक्त अन्नों, ऐश्वर्ययुक्त कामनाओं तथा संग्रामकारी सेनाओं को आप दोनों (पिपृतम्) पालो और (आशून् अर्वतः ) शीघ्रगामी अश्वों और शत्रुहिंसक वीरों को भी ( पिपृतम्) पालन करो और ( इन्द्रम् अग्निं च ) ऐश्वर्ययुक्त पुरुष ज्ञानयुक्त और अग्नितत्व युक्त तुझे प्राप्त होने वाले स्त्री पुरुष इन दोनों को (वोढवे) विवाह करने के निमित्त ( पिपृतम्) पालन करो । अर्थात् पुरुष जब तक पर्याप्त धन न कमावे और स्त्री जब तक ऋतुसे न हो तब तक उनके माता पिता पालें और बाद में उनके विवाह करें । (३) विज्ञानपक्ष में - विद्युत् और अग्नि दोनों का रथ वहने के लिये प्रयोग करो क्योंकि ये दोनों वेगवान् प्रेरणा और वेग से जाने वाले बलों को धारते हैं ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    वाजवती इषः, आशून् अर्वतः

    पदार्थ

    [१] (ता) = वे इन्द्र और अग्नि (नः) = हमारे लिये (वाजवतीः इषः) = प्रशस्त शक्तिवाली प्रेरणाओं को (पिपृतम्) = पूरित करें। अर्थात् हमें प्रकाशमय हृदय में प्रभु प्रेरणाओं को प्राप्त करायें और उन प्रेरणाओं को क्रियान्वित करने के लिये शक्ति दें। ये इन्द्र और अग्नि (आशून् अर्वतः) = शीघ्र गतिवाले इन्द्रियाश्वों को भी प्राप्त करायें। हमारी कर्मेन्द्रियाँ व ज्ञानेन्द्रियाँ दोनों ही उत्तम हों। [२] ये ज्ञानेन्द्रियाँ (अग्निम्) = प्रकाश की देवता को (वोढवे) = वहन करने के लिये हों, (च) = तथा कर्मेन्द्रियाँ (इन्द्रम्) = बल की देवता का वहन करें। ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान को देनेवाली हों, तो कर्मेन्द्रियाँ शक्ति का वर्धन करनेवाली बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम इन्द्र व अग्नि का आराधन करते हुए प्रशस्त प्रेरणाओं से युक्त बल को तथा शीघ्रता से कार्यों में व्याप्त होनेवाले इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! तुम्ही विद्युत इत्यादी पदार्थांनी विमान वगैरे याने चालवून इच्छा पूर्ण करा. ॥ १२ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the two, Indra and Agni, electricity and fire, give us food and sustenance full of energy and excellence and provide us with modes of travel and transport. Let us too develop the fire and electricity, energy for transport and communication.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do with whom-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! take from all sides electricity and fire which fill us with good food along with admirable knowledge and speedy horses. Use them (electricity and fire) for driving aircraft and other vehicles.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! you fulfil your desires of driving aero planes and other vehicles with the help of electricity etc.

    Foot Notes

    (इष:) अन्नादीन् । इषम् इति अन्ननाम (NG 2, 7) इषम् एव इट्। = Food and other things. (वाजवती:) प्रशस्तविज्ञानयुक्तान् । (वाजः) वज-गतौ (भ्वा.) गतेस्त्रिष्वर्थेषु ज्ञानमादाय व्याख्या | = Endowed with admirable knowledge.

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