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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑ग्नी यु॒वामि॒मे॒३॒॑भि स्तोमा॑ अनूषत। पिब॑तं शंभुवा सु॒तम् ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । यु॒वाम् । इ॒मे । अ॒भि । स्तोमाः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । पिब॑तम् । श॒म्ऽभु॒वा॒ । सु॒तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी युवामिमे३भि स्तोमा अनूषत। पिबतं शंभुवा सुतम् ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। युवाम्। इमे। अभि। स्तोमाः। अनूषत। पिबतम्। शम्ऽभुवा। सुतम् ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

    अन्वयः

    हे शम्भुवा इन्द्राग्नी ! युवां य इमे स्तोमा अभ्यनूषत तैः सुतं पिबतम् ॥७॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) सूर्य्यविद्युताविव सभासेनेशौ (युवाम्) (इमे) (अभि) (स्तोमाः) प्रशंसाः (अनूषत) प्रशंसन्ति (पिबतम्) (शम्भुवा) यौ शं सुखं भावयतस्तौ (सुतम्) अभिनिष्पादितं दुग्धादिरसम् ॥७॥

    भावार्थः

    हे सभासेनेशौ ! भवन्तौ पथ्याचारेण सदौषधिरसं पीत्वाऽरोगौ भूत्वा प्रशंसितानि कर्माणि कुर्याताम् ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे दोनों कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (शम्भुवा) सुख की भावना करानेवाले (इन्द्राग्नी) सूर्य्य और बिजुली के समान सभासेनाधीशो ! (युवाम्) आप दोनों जो (इमे) ये (स्तोमाः) प्रशंसाएँ (अभि, अनूषत) प्रशंसा करती हैं, उनसे (सुतम्) सब ओर से उत्पन्न किये हुए दूध आदि रस को (पिबतम्) पिओ ॥७॥

    भावार्थ

    हे सभासेनाधीशो ! आप लोग पथ्य आचार से सदा ओषधियों के रस को पीके अरोगी होकर प्रशंसित कर्मों को करो ॥७॥

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    विषय

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    भावार्थ

    हे ( इन्द्राग्नी ) विद्युत् अग्नि के समान तेजस्वी स्त्री पुरुषो ! सेनापति सैन्य जनो ! हे ( शम्भुवा ) शान्ति देने हारो ! ( युवाम् ) आप दोनों की ( इमे ) ये ( स्तोमाः ) स्तुति युक्त वचन वा स्तोता जन ( अभि-अनूषत ) साक्षात् प्रशंसा करते हैं वा विद्वान् जन उपदेश करते हैं । आप दोनों ( सुतम् पिबतम् ) उत्पन्न अन्नादि ओषधि प्राप्त ऐश्वर्य का पालन वा, उपभोग करो ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    'शम्भुवा' इन्द्राग्नी

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवो! (इमे स्तोमाः) = ये स्तुतिसमूह (युवाम्) = आप दोनों को (अभि अनूषत) = लक्ष्य करके उच्चरित होते हैं, आपका ही स्तवन करते हैं। इन स्तोमों में इन्द्र और अग्नि की महिमा का प्रतिपादन हुआ है । [२] आप (सुतं पिबतम्) = उत्पन्न हुए हुए सोम का हमारे शरी में पान करते हो और (शम्भुवा) = शान्ति को उत्पन्न करते हैं। इन्द्र और अग्नि ही रोगों व वासनाओं को समाप्त करके शान्ति का कारण बनते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- इन्द्र और अग्नि का आराधन हमें शरीर में सोम के रक्षण के योग्य बनाता है, और इस प्रकार शान्ति को उत्पन्न करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सभा सेनाधीशांनो ! तुम्ही पथ्याचे आचरण करून सदैव औषधींचा रस पिऊन निरोगी व्हा व प्रशंसित कार्य करा. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Agni, powers of will and vision of action in nature and humanity, these songs of adoration celebrate you. O givers of peace, prosperity and well being, drink of the nectar of this joy and bliss distilled.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are they-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O President of the State and Commander-in-Chief of the army! you who are full of splendor like the sun and the lightning and bestowers of happiness, these our songs glorify you. Come to take the juice of milk and fruits, herbs etc. prepared by us, and respectfully offered to you.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O President of the Council of Ministers and Commander-in- Chief of the army ! always do the admirable deeds. being free from all diseases and duly taking the juice of invigorating plants and herbs etc. along with the observance of the rules of maintaining health.

    Foot Notes

    (इन्द्राग्नी) सूर्य्यविद्युताविव समासुनेशौ । सयः स इन्द्रः एष एव सय एष (सूर्य:) एवतपति (J. U. Br. 1, 28, 2; 1, 32, 5) अग्निः-अन्न विद्युद्रूपः | =' The President of the Council of Ministers and the Commander-in-Chief of the army, who are splendid like the sun and the lightning. (सुतम्) अभिनिष्पादितं दुग्धादिरसम् । षुअ-अभिषवे (स्वा.) । = The juice of the milk and invigorating herbs etc. which has been extracted. (अनूषत) प्रशंसन्ति । णु-स्तुतौ (अदा)। = Glorify.

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