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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 13
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    उ॒भा वा॑मिन्द्राग्नी आहु॒वध्या॑ उ॒भा राध॑सः स॒ह मा॑द॒यध्यै॑। उ॒भा दा॒तारा॑वि॒षां र॑यी॒णामु॒भा वाज॑स्य सा॒तये॑ हुवे वाम् ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒भा । वा॒म् । इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑ । आ॒ऽहु॒वध्यै॑ । उ॒भा । राध॑सः । स॒ह । मा॒द॒यध्यै॑ । उ॒भा । दा॒तारौ॑ । इ॒षाम् । र॒यी॒णाम् । उ॒भा । वाज॑स्य । सा॒तये॑ । हु॒वे॒ । वा॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभा वामिन्द्राग्नी आहुवध्या उभा राधसः सह मादयध्यै। उभा दाताराविषां रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम् ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उभा। वाम्। इन्द्राग्नी इति। आऽहुवध्यै। उभा। राधसः। सह। मादयध्यै। उभा। दातारौ। इषाम्। रयीणाम्। उभा। वाजस्य। सातये। हुवे। वाम् ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 13
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः शिल्पिनस्ताभ्यां किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे शिल्पविद्याऽध्यापकोपदेशकौ ! यथा वां युवयोः समीपे स्थित्वाऽऽहुवध्या उभेन्द्राग्नी राधसो मादयध्या उभा सह उभेषां रयीणां दातारा उभा वाजस्य सातयेऽहं हुवे तथोभा वामेतद्विद्यां बोधयेयम् ॥१३॥

    पदार्थः

    (उभा) उभौ (वाम्) युवयोः (इन्द्राग्नी) सूर्य्यविद्युतौ (आहुवध्यै) आह्वयितुम् (उभा) (राधसः) धनस्य (सह) (मादयध्यै) आनन्दयितुम् (उभा) (दातारौ) (इषाम्) अन्नादीनाम् (रयीणाम्) धनानाम् (उभा) (वाजस्य) विज्ञानस्य सङ्ग्रामस्य वा (सातये) संविभागाय (हुवे) आदद्मि (वाम्) युवाम् ॥१३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या वायुविद्युतौ यथावद्विदित्वा कार्येषु सम्प्रयुञ्जते ते श्रीपतयो जायन्ते ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर शिल्पीजन उनसे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे शिल्पविद्या के अध्यापक और उपदेश करनेवालो ! जैसे (वाम्) तुम्हारे समीप स्थिर होकर (आहुवध्यै) आह्वान करने को (उभा) दोनों (इन्द्राग्नी) सूर्य्य और बिजुली को (राधसः) धन सम्बन्धी (मादयध्यै) आनन्द देने को (उभा) दोनों को (सह) एक साथ (उभा) और दोनों को (इषाम्) अन्नादि पदार्थों के वा (रयीणाम्) धनादि पदार्थों के (दातारौ) देनेवाले तथा (उभा) दोनों को (वाजस्य) विज्ञान वा सङ्ग्राम के (सातये) संविभाग के लिये मैं (हुवे) स्वीकार करता हूँ, वैसे ही (वाम्) तुम दोनों को इस विद्या का बोध कराऊँ ॥१३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वायु और बिजुली को यथावत् जान के कार्य्यों में उनका अच्छे प्रकार प्रयोग करते हैं, वे श्रीपति होते हैं ॥१३॥

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    ( इन्द्राग्नी ) हे विद्युत् अग्निवत्, तेजस्वी प्रकाशवान् धनी, ज्ञानी स्त्री पुरुषो ! ( उभा ) दोनों आप ( इषां ) अन्नों और ( रयीणाम् दातारा ) धनों को देने वाले हो । (वाम् उभा) आप दोनों को मैं ( वाजस्य सातये ) बल, अन्न और ऐश्वर्य के विभाग के लिये ( हुवे ) आदरपूर्वक बुलाता हूं और ( उभा ) दोनों आदरपूर्वक और ( सह ) एक साथ मिलकर ( राधसः ) धन को ( मादयध्यै ) आनन्द-लाभ करने के लिये ( वाम् उभा हुवे ) आप दोनों की प्रार्थना करता हूं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    'इष्-रयि-वाज'

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवो! मैं (वां उभा) = आप दोनों को (आहुवध्यै) = पुकारने के लिये होता हूँ। मैं बल व प्रकाश दोनों को प्राप्त करने के लिये यत्नशील होता हूँ। आप (उभा सह) = दोनों साथ-साथ (राधसः) = [राध सिद्धौ] सिद्धि के द्वारा (मादयध्यै) = आनन्दित करने के लिये होते हो। [२] (उभा) = आप दोनों मिलकर (इषाम्) = उत्तम प्रेरणाओं के तथा (रयीणाम्) = धनों के (दातारौ) = देनेवाले हो। मैं (उभा वाम्) = आप दोनों को (वाजस्य सातये) = शक्ति की प्राप्ति के लिये (हुवे) = पुकारता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- इन्द्र और अग्नि का आराधन हमें 'उत्तम प्रेरणा, धन व बल' प्राप्त कराता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे वायू व विद्युतला ठीकठीक जाणून कार्यात चांगल्या प्रकारे संयुक्त करतात. ती श्रीमंत होतात. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I invoke you both, Indra and Agni, lords of cosmic electricity and fire energy, to develop both heat and electricity in order to celebrate both with honours and wealth of success. And I honour and adore you both, beneficent givers of food, energy and wealth, for the winning of victory in life’s battle for excellence and advancement.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should artisans do with them (electricity and sun)- is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers of technology as I living with you, take both the sun and electricity for proper use, for gladdening others with wealth, for the distribution or dissemination of knowledge or application in battles for the manufacture of powerful weapons, as both of them are givers of food materials and wealth, so I may enlighten this science to you also.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those men, who, having acquired the knowledge of the air and electricity, apply them in various uses become wealthy.

    Foot Notes

    (राधसः) धनस्य । राध इति धननाम (NG 2,10)। = Of the wealth. ( वाजस्य ) विज्ञानस्य सङ्ग्रामस्य वा । वाज इति बलनाम (NG 2, 9) तस्माद् बलसाध्य सङ्ग्रामार्थेऽप्यस्य प्रयोगः कर्तुं शक्यो यद्यपि (NG 2, 17 ) वाज-सातौ इति सङ्ग्रामनाम पठितम् । = Of the wealth or battle. (इन्द्राग्नी) सूर्य-विद्युतौ। = The sun and electricity,

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