Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 10
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    0

    वर्च॑सा॒ मांपि॒तरः॑ सो॒म्यासो॒ अञ्ज॑न्तु दे॒वा मधु॑ना घृ॒तेन॑। चक्षु॑षे मा प्रत॒रंता॒रय॑न्तो ज॒रसे॑ मा ज॒रद॑ष्टिं वर्धन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वर्च॑सा । माम् । पि॒तर॑: । सो॒म्यास॑: । अञ्ज॑न्तु । दे॒वा: । मधु॑ना । घृ॒तेन॑ । चक्षु॑षे । मा॒ । प्र॒ऽत॒रम् । ता॒रय॑न्त: । ज॒रसे॑ । मा॒ । ज॒रत्ऽअ॑ष्टिम् । व॒र्ध॒न्तु॒ ॥३.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्चसा मांपितरः सोम्यासो अञ्जन्तु देवा मधुना घृतेन। चक्षुषे मा प्रतरंतारयन्तो जरसे मा जरदष्टिं वर्धन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वर्चसा । माम् । पितर: । सोम्यास: । अञ्जन्तु । देवा: । मधुना । घृतेन । चक्षुषे । मा । प्रऽतरम् । तारयन्त: । जरसे । मा । जरत्ऽअष्टिम् । वर्धन्तु ॥३.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सोम्यासः)ऐश्वर्यवाले, (देवाः) विद्वान्, (पितरः) पितर [रक्षक महात्मा] (माम्) मुझको (वर्चसा) तेज से, (मधुना) विज्ञान और (घृतेन) प्रकाश से (अञ्जन्तु) प्रसिद्धकरें। (चक्षुषे) सूक्ष्म दृष्टि के लिये (मा) मुझे (प्रतरम्) आगे को (तारयन्तः)पार करते हुए [वे लोग] (जरदष्टिम्) स्तुति के साथ प्रवृत्तिवाले (मा) मुझको (जरसे) स्तुति के लिये (वर्धन्तु) बढ़ावें ॥१०॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग ऐसीशिक्षाप्रणाली चलावें कि जिस से सब लोग बलवान्, विज्ञानवान्, तेजस्वी औरसूक्ष्मदर्शी होकर संसार में कीर्ति पावें ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(वर्चसा) तेजसा (माम्) (पितरः)रक्षका महात्मानः (सोम्यासः) ऐश्वर्यवन्तः (अञ्जन्तु)अञ्जूव्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। व्यक्तीकुर्वन्तु। विख्यातं कुर्वन्तु (देवाः)विद्वांसः (मधुना) विज्ञानेन (घृतेन) प्रकाशेन (चक्षुषे) सूक्ष्मदर्शनाय (प्रतरम्) प्रकृष्टतरम्। अधिकतरम् (तारयन्तः) पारयन्तः (जरसे) जॄ स्तुतौ-असुन्।जरतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४। स्तुतये (मा) माम् (जरदष्टिम्) अ० २।२८।५। जॄस्तुतौ-अतृन्+अशू व्याप्तौ-क्तिन्। जरता स्तुत्या सह अष्टिः कार्यव्याप्तिर्यस्यतम् (वर्धन्तु) वर्धयन्तु उन्नयन्तु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वर्चसा, मधुना घृतेन

    पदार्थ

    १. (माम्) = मुझे (सोम्यास:) = सौम्य स्वभाववाले अथवा सोम [वीर्य] का रक्षण करनेवाले (पितर:) = माता-पिता व आचार्य (वर्चसा) = तेजस्विता से (अजन्तु) = अलंकृत करें। (देवा:) = सब देव मुझे (मधुना) = वाणी के माधुर्य से तथा (घृतेन) = ज्ञान की दीप्ति से अलंकृत करें। २. (चक्षुषे) = दीर्घकाल तक सूर्य के दर्शन के लिए (मा) = मुझे (प्रतरम्) = खूब ही (तारयन्त:) = रोग आदि से व्यावृत्त करते हुए (जरसे) = पूर्ण जरावस्था, अर्थात् आयुष्य के लिए (मा) = मुझे (जरदष्टिं वर्धन्तु) = [जरती जीर्णा अष्टि: अशनं यस्य-सा०] पचे हुए भोजनवाला करके बढ़ाए, अर्थात् अन्त तक मेरी पाचनशक्ति ठीक बनी रहे और मैं स्वस्थ व दीर्घजीवी बन सकूँ।

    भावार्थ

    मुझे माता-पिता-आचार्य 'वर्चस्वी' बनाएँ । देव मुझे मधुर व ज्ञानदीप्त करें। सब प्राकृतिक शक्तियाँ-सूर्य, चन्द्र आदि देव मुझे स्वस्थ व दीर्घजीवी करें। इनकी अनुकूलता से मेरी पाचनशक्ति ठीक बनी रहे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सोम्यासः) भक्तिरसवाले (पितरः) मेरे पिता-माता आदि बुजुर्ग (माम्) मुझे (वर्चसा) भक्तिरस की दीप्ति द्वारा (अञ्जन्तु) कान्तिमान् करें, (देवाः) सौम्य स्वभाववाले दिव्य कोटि के आचार्य मुझे (मधुना) वाणी और आचार-व्यवहार के माधुर्य द्वारा, तथा (घृतेन) हृदयनिष्ठ स्नेह भावना द्वारा (अञ्जन्तु) लीप दें। ये पितर और देवगण (चक्षुषे) दिव्य-दृष्टि की प्राप्ति के लिये (माम्) मुझे (प्रतरम्) सफलतापूर्वक राग-द्वेष आदि के नद से तैराते हुए, (जरसे) परमेश्वर की स्तुति-प्रार्थना उपासना के लिये (मा) मुझे (जरदष्टिम्) जरावस्था की प्राप्ति तक (वर्धन्तु) उपरिलिखित सद्गुणों द्वारा बढ़ाते रहें।

    टिप्पणी

    [क्या मन्त्रोक्त भावनाएं मृत व्यक्ति कर सकता है ? तथा क्या मन्त्रोक्त पितर तथा देव मृतात्माएं हो सकती हैं ?]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    10. May my parents, seniors and divinities of nature and humanity, all lovers of peace, honour and excellence of life, develop, educate and refine me with culture, sweetness and graces of life. Advancing me over the streams of life, blessing me with fine vision for a full life of thankfulness and gratitude, may they strengthen and exalt me to live happy and healthy till a full ripe old age.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the soma-drinking Fathers anoint me with splendor, the gods with honey, with ghee; making me pass further on unto sight, let them increase me, attaining old age, unto old age.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May my fore-fathers who know the science of Soma, the medicinal plants unite me with great splendor and may the men of erudition enrich me with honey and ghee. May they leading me on father to extended vision and prosper me who desires to reach the old age through life of long duration.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With splendor may the elders, the worshippers of God, with sweet knowledge and light may the sages anoint me. May they lead me on farther to minute vision and prosper me through life of long duration.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(वर्चसा) तेजसा (माम्) (पितरः)रक्षका महात्मानः (सोम्यासः) ऐश्वर्यवन्तः (अञ्जन्तु)अञ्जूव्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। व्यक्तीकुर्वन्तु। विख्यातं कुर्वन्तु (देवाः)विद्वांसः (मधुना) विज्ञानेन (घृतेन) प्रकाशेन (चक्षुषे) सूक्ष्मदर्शनाय (प्रतरम्) प्रकृष्टतरम्। अधिकतरम् (तारयन्तः) पारयन्तः (जरसे) जॄ स्तुतौ-असुन्।जरतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४। स्तुतये (मा) माम् (जरदष्टिम्) अ० २।२८।५। जॄस्तुतौ-अतृन्+अशू व्याप्तौ-क्तिन्। जरता स्तुत्या सह अष्टिः कार्यव्याप्तिर्यस्यतम् (वर्धन्तु) वर्धयन्तु उन्नयन्तु ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top