अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - सतः पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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उत्ति॑ष्ठ॒प्रेहि॒ प्र द्र॒वौकः॑ कृणुष्व सलि॒ले स॒धस्थे॑। तत्र॒ त्वं पि॒तृभिः॑संविदा॒नः सं सोमे॑न॒ मद॑स्व॒ सं स्व॒धाभिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ति॒ष्ठ॒ । प्र । इ॒हि॒ । प्र॒ । द्र॒व॒ । ओक॑: । कृ॒णु॒ष्व॒ । स॒लि॒ले । स॒धऽस्थे॑ । तत्र॑ । त्वम् । पि॒तृऽभि॑: । स॒म्ऽवि॒दा॒न: । सम् । सोमे॑न । मद॑स्व । सम् । स्व॒धाभि॑: ॥३.८॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तिष्ठप्रेहि प्र द्रवौकः कृणुष्व सलिले सधस्थे। तत्र त्वं पितृभिःसंविदानः सं सोमेन मदस्व सं स्वधाभिः ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । तिष्ठ । प्र । इहि । प्र । द्रव । ओक: । कृणुष्व । सलिले । सधऽस्थे । तत्र । त्वम् । पितृऽभि: । सम्ऽविदान: । सम् । सोमेन । मदस्व । सम् । स्वधाभि: ॥३.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
उन्नति करने का उपदेश।
पदार्थ
[हे विद्वान् !] (उत्तिष्ठ) उठ, (प्र इहि) आगे बढ़ (प्र द्रव) आगे को दौड़ और (सलिले) चलते हुए जगत्में (सधस्थे) समाज के बीच (ओकः) घर (कृणुष्व) बना। (तत्र) वहाँ (त्वम्) तू (पितृभिः) पितरों [पिता आदि रक्षक महात्माओं] के साथ (संविदानः) मिलता हुआ (सोमेन) ऐश्वर्य से (सम्) मिलकर और (स्वधाभिः) आत्मधारण शक्तियों से (सम्) मिलकर (मदस्व) आनन्द पा ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य सदा पुरुषार्थकरके विद्वानों के सत्सङ्ग से प्रतिष्ठित होकर ऐश्वर्य प्राप्त करे औरआत्मावलम्बन करता हुआ सुखी रहे ॥८॥
टिप्पणी
८−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं तिष्ठ (प्रेहि) अग्रगच्छ (प्र द्रव) अग्रे धाव (ओकः) गृहम् (कृणुष्व) कुरु (सलिले) षल गतौ-इलच्।संगते जगति यथा सायणः-ऋग्० १०।१२९।३। (सधस्थे) समाजे (तत्र) समाजे (त्वम्) (पितृभिः) रक्षकैर्महात्मभिः (संविदानः) संगच्छमानः (सम्) संगत्य (सोमेन)ऐश्वर्येण (मदस्व) तृप्तो भव (सम्) संगत्य (स्वधाभिः) स्वधारणशक्तिभिः।आत्मावलम्बनैः ॥
विषय
सं सोमेन, सं स्वधाभिः
पदार्थ
१. हे साधक! (उत्तिष्ठ) = तू उठ-सोता ही न रह । (प्रेहि) = प्रकृष्ट मार्ग पर गतिवाला बन। (प्रद्रव) = कर्त्तव्यपथ पर आगे बढ़ तथा (सलिने सधस्थे) = [सलिलम्-अन्तरिक्ष सा०] आत्मा व परमात्मा के सहस्थानभूत हृदयान्तरिक्ष में (ओकः कृणुष्व) = तू अपना घर बना। लौकिक कार्यों से निपटते ही तू इस घर में आनेवाला बन । संभजन में ही तू रिक्त समय का यापन कर। मार्ग में इधर-उधर न भटक। २. (तत्र) = वहाँ उस उत्कृष्ट जीवनस्थिति में (त्वम्) = तू (पितृभिः) = ज्ञान देनेवाले आचार्यों के साथ (संविदान:) = [विद् लाभे] संगत होता हुआ, (सोमेन) = शरीर में सोमशक्ति से (सं मदस्व) = संगत होकर आनन्दित हो-शरीर में सोम का रक्षण करनेवाला बन तथा (स्वधाभिः सम्) = आत्मधारणशक्तियों के साथ संगत हो। इसप्रकार तेरा जीवन आनन्दमय बने।
भावार्थ
आलस्य को छोड़कर हम गतिशील हों-कर्त्तव्यकर्मों को करनेवाले बनें। रिक्त समय को हृदय में प्रभु के साथ ही बिताएँ, अर्थात् हृदय में प्रभु का ध्यान करें। ज्ञानियों के सम्पर्क में ज्ञानवृद्धि करते हुए सोम का शरीर में रक्षण करें और आत्मधारणशक्तियों के साथ आनन्दमय जीवनवाले बनें।
भाषार्थ
हे मुक्तात्मन्! (उत्तिष्ठ) मोक्ष की आनन्दमयी मुद्रा से तू उत्थान कर, (प्रेहि) संसार की ओर प्रयाण कर, (प्र द्रव) द्रुत गति कर। (सधस्थे) नए सहवासस्थान (सलिले) अर्थात् मातृगर्भ के रज-वीर्य तथा द्रवरस में (ओकः) निजगृह (कृणुष्व) बना। तदनन्तर (तत्र त्वम्) वहां पितृगृह में तू (पितृभिः) माता-पिता आदि बन्धुओं के साथ (सुविदानः) ऐकमत्य को प्राप्त होकर, (सोमेन) दुग्ध द्वारा (सं मदस्व) सम्यक्-तृप्त हो, (स्वधाभिः) और स्वधारण और स्वपोषण करने वाले अन्नों द्वारा (संमदस्व) सम्यक् तृप्त हो। [मन्त्र में मुक्ति सुख के भोग के पश्चात् पुनः गर्भग्रहण का वर्णन किया गया है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Rise, O soul, move forward, go fast, find a home in the living waters in the mother’s womb, and then there in the parental home, one with mother, father and others, enjoy yourself with soma delicacies and gifts of love and affection.
Translation
Rise thou, go forth, run forth; make thee a home in the sea (as) station: there do thou, in concord with the Fathers, revel with soma with the svadhis.
Translation
O Man, rise, proceed on, run quick and make your place on the Vedi (Salile) in the Yajnashalla. There you having accordance with experienced yajniks enjoy pleasure with herb-juice and well-prepared cereals.
Translation
O man, rise up, advance,.go forward hastily, make thy dwelling m God cool like water! There dwelling in accordance with the Fathers, delight thyself with prosperity and spiritual forces.
Footnote
Fathers: Mother, Father, Acharya
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं तिष्ठ (प्रेहि) अग्रगच्छ (प्र द्रव) अग्रे धाव (ओकः) गृहम् (कृणुष्व) कुरु (सलिले) षल गतौ-इलच्।संगते जगति यथा सायणः-ऋग्० १०।१२९।३। (सधस्थे) समाजे (तत्र) समाजे (त्वम्) (पितृभिः) रक्षकैर्महात्मभिः (संविदानः) संगच्छमानः (सम्) संगत्य (सोमेन)ऐश्वर्येण (मदस्व) तृप्तो भव (सम्) संगत्य (स्वधाभिः) स्वधारणशक्तिभिः।आत्मावलम्बनैः ॥
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