अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 57
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
0
इ॒मानारी॑रविध॒वाः सु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेन स॒र्पिषा॒ सं स्पृ॑शन्ताम्। अ॑न॒श्रवो॑अनमी॒वाः सु॒रत्ना॒ आ रो॑हन्तु॒ जन॑यो॒ योनि॒मग्रे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा:। नारी॑: । अ॒वि॒ध॒वा: । सु॒ऽपत्नी॑: । आ॒ऽअञ्ज॑नेन । स॒र्पिषा॑ । सम् । स्पृ॒श॒न्ता॒म् । अ॒न॒श्रव॑: । अ॒न॒मी॒वा: । सु॒ऽरत्ना॑: । आ । रो॒ह॒न्तु॒ । जन॑य: । योनि॑म् । अग्रे॑ ॥५.५७॥
स्वर रहित मन्त्र
इमानारीरविधवाः सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं स्पृशन्ताम्। अनश्रवोअनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे ॥
स्वर रहित पद पाठइमा:। नारी: । अविधवा: । सुऽपत्नी: । आऽअञ्जनेन । सर्पिषा । सम् । स्पृशन्ताम् । अनश्रव: । अनमीवा: । सुऽरत्ना: । आ । रोहन्तु । जनय: । योनिम् । अग्रे ॥५.५७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
घर की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(इमाः) यह [विदुषी] (नारीः) नारियाँ (अविधवाः) सधवा [मनुष्योंवाली] और (सुपत्नीः) धार्मिकपतियोंवाली होकर (आञ्जनेन) यथावत् मेल से और (सर्पिषा) घी आदि [सारपदार्थ] से (सं स्पृशन्ताम्) संयुक्त रहें। (अनश्रवः) बिना आसुओंवाली, (अनमीवाः) बिनारोगोंवाली, (सुरत्नाः) सुन्दर-सुन्दर रत्नोंवाली (जनयः) माताएँ (अग्रे) आगे-आगे (योनिम्) मिलने के स्थान [घर, सभा आदि] में (आ रोहन्तु) चढ़ें ॥५७॥
भावार्थ
जो विदुषी स्त्रियाँब्रह्मचर्य आदि शुभ गुणवाली होती हैं, वे अपने विद्वान् सुयोग्य कुटुम्बियोंपतियों और पुत्र आदि के साथ शरीर और आत्मा से स्वस्थ रहकर बहुत धनवती और सुखवतीहोकर अग्रगामिनी बनती हैं ॥५७॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१८।७। औरऊपर आचुका है-अ० १२।२।३१ ॥
टिप्पणी
५७−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० १२।२।३१ ॥
विषय
घरों में स्त्री का सर्वप्रमुख स्थान
पदार्थ
१. गृह को उत्तम बनाने का सर्वाधिक उत्तरदायित्व स्त्री का है, अत: उसका उल्लेख करते हुए कहते हैं कि (इमा: नारी:) = ये गृह की उन्नति का कारणभूत [नृ नये] स्त्रियाँ (अविधवा:) = अविधवा हों। दीर्घजीवी पतियों को प्राप्त करके ये सदा अपने सौभाग्य को स्थिर रखनेवाली हों। साथ ही (सपत्नी:) = [शोभन: पतिः यस्याः] उत्तम पतियोंवाली हों। जहाँ ये स्वयं पातिव्रत्य धर्म का पालन करनेवाली हों, वहाँ इनके पति भी एकपत्नीव्रत का सुन्दरता से निर्वहण करनेवाले हों। ये पत्नियाँ (आञ्जनेन) = शरीर को (सर्वत:) = अलंकृत करनेवाले (सर्पिषा) = घृत के साथ स्पृशन्ताम्-सम्यक् स्पर्शवाली हों। इनके घरों में उस गोधूत की कमी न हो जो शरीर, मन व मस्तिष्क सभी को दीत बनानेवाला है। २. (अनश्रवः) = ये अश्रुवाली न हों-इन्हें दरिद्रता व कटुता आदि के कारण कभी रोना न पड़े। (अनमीवा:) = व्यवस्थित व संयत जीवन के कारण ये सदा नीरोग हों। (सुरत्ना:) = उत्तम रमणीय पदार्थोंवाली व उत्तम आभूषणोंवाली हों। ये (जनयः) = उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली गृहस्त्रियाँ (योनिम् अग्रे आरोहन्तु) = घर में सर्वमुख्य स्थान में स्थित हों। घर में इनका उचित आदर हो।
भावार्थ
घरों में स्त्रियों का स्थान प्रमुख हो। इन्हें घर के निर्माण के लिए आवश्यक सब वस्तुएँ सुलभ हों। इनका अपना शरीर पूर्ण स्वस्थ हो।
भाषार्थ
(अविधवाः) पतियों वाली (सुपत्नीः) श्रेष्ठ पंतियों वाली (जनयः) सन्तानों वाली (इमाः नारीः) ये नारियां, (आञ्जनेन) मुख आदि की कान्ति बढ़ानेवाले (सर्पिषा) जल द्वारा (सं स्पृशन्ताम्) सम्यक् प्रकार से मुख आदि का प्रक्षालन करें, और (अग्रे) जनाजे के लौटने से पहिले ही (योनिम्) अपने-अपने घर में (आरोहन्तु) आ जायें, और (अनश्रव) रोने-धोने से रहित हुईं हुई (अवमीवाः) तथा रोगों से रहित हुई-हुई (सुरत्ना) उत्तम रत्नों को धारण करें।
टिप्पणी
[आञ्जनेन = अञ्जु कान्तौ। सर्पिषा = उदकेन (निघं० १।१२)। स्पृशन्ताम् = स्पृश् To wash on sprinkle with water। योनिम् = गृहम् (निघं० ३।४)। आरोहन्तु = सीढ़ियोंवाले घर, जिन की नींवें जमीन से ऊंची उठी हुई हैं, उन पर आरोहण करें, चढ़ें।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
And these women, noble wives happily married with their husbands, should anoint themselves with cream and collyrium, and let them, free from tears and sorrow, free from ill health, wearing jewels and ornaments, go forward in life as proud mothers in their home.
Subject
Yama
Translation
Let these women, not widows, well-spoused, thouch themselves with ointment, with butter; tearless, without disease, with good treasures, let the wives ascend first to the place of union.
Translation
Let these unwidowed women having their good respective husbands adorn themselves with fragrant balm anguent. These women having no tears in eyes, free from disease, well-ornamented first go to husbands' house.
Translation
Let these unwidowed dames with goodly husbands adorn themselves with fragrant balm and unguent. Decked with fair jewels, free from grief, free from ailment, bearing children, should first enter the Assembly.
Footnote
If ladies and gentlemen are to enter an Assembly hail, according to Vedic decorum, the ladies should enter first and men should follow them
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५७−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० १२।२।३१ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal