अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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परा॑ यात पितर॒ आच॑ याता॒यं वो॑ य॒ज्ञो मधु॑ना॒ सम॑क्तः। द॒त्तो अ॒स्मभ्यं॒ द्रवि॑णे॒ह भ॒द्रंर॒यिं च॑ नः॒ सर्व॑वीरं दधात ॥
स्वर सहित पद पाठपरा॑ । या॒त॒ । पि॒त॒र॒: । आ । च॒ । या॒त॒। अ॒यम् । व॒: । य॒ज्ञ: । मधु॑ना । सम्ऽअ॑क्त: । द॒त्तो इति॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । द्रवि॑णा । इ॒ह । भ॒द्रम् । र॒यिम् । च॒ । न॒: । सर्व॑ऽवीरम् । द॒धा॒त॒ ॥३.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
परा यात पितर आच यातायं वो यज्ञो मधुना समक्तः। दत्तो अस्मभ्यं द्रविणेह भद्रंरयिं च नः सर्ववीरं दधात ॥
स्वर रहित पद पाठपरा । यात । पितर: । आ । च । यात। अयम् । व: । यज्ञ: । मधुना । सम्ऽअक्त: । दत्तो इति । अस्मभ्यम् । द्रविणा । इह । भद्रम् । रयिम् । च । न: । सर्वऽवीरम् । दधात ॥३.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पितरों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(पितरः) हे पितरो ! [पिता आदि रक्षक महात्माओ] (परा) प्रधानता से (यात) चलो, (च) और (आ यात) आओ, (वः)तुम्हारा (अयम्) ह (यज्ञः) पूजनीय व्यवहार (मधुना) विज्ञान के साथ (समक्तः)सर्वथा ख्यात है। (अस्मभ्यम्) हमको (इह) यहाँ पर (द्रविणा) अनेक धन और (भद्रम्)कल्याण (दत्तो) अवश्य देओ, (च) और (नः) हमें (सर्ववीरम्) सब वीरों को रखनेवाला (रयिम्) धन (दधात) धारण करो ॥१४॥
भावार्थ
विद्वान् माता-पिता आदि महापुरुष सन्तान आदि गृहस्थों से मिलकर उन को उपदेश करें कि जिस से वे लोगअनेक धनों को प्राप्त होकर वीर पुरुषों का आदर करते रहें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(परा)प्राधान्येन (यात) गच्छत (पितरः) हे पित्रादिमहात्मानः (च) (आयात) आगच्छत (अयम्)उपस्थितः (वः) युष्माकम् (यज्ञः) पूजनीयव्यवहारः (मधुना) विज्ञानेन (समक्तः) अञ्जूव्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त। सम्यग् व्यक्तीकृतः (दत्तो) दत्त-उ। प्रयच्छतैव (अस्मभ्यम्) द्रविणा धनानि (इह) (भद्रम्) कल्याणम् (रयिम्) धनम् (च) (नः)अस्मभ्यम् (सर्ववीरम्) सर्ववीरैरुपेतम् (दधात) धारयत ॥
विषय
पितरों का आना
पदार्थ
१. गृहस्थ को सम्यक् पूर्ण करके, वानप्रस्थ में प्रवेश करनेवाले लोग 'पितर' कहलाते हैं।
भावार्थ
उनसे प्रार्थना करते हैं कि (परायात) = दूर-दूर देशों में जानेवाले बनो, (च) = और हे (पितर:) = ज्ञानादि द्वारा रक्षण करनेवाले पितरो! (आयात) = समय-समय पर हमारे घरों पर भी आओ। (अयम्) = यह (व:) = आपका (यज्ञः) = संग [यज् संगतिकरणे] मधुना (समक्तः) = माधुर्य से सम्यक् अलंकृत है। आप ज्ञान देकर हमारे जीवनों को मधुर बनाते हो। २. (इह) = यहाँ (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (द्रविणा दत्त उ) = ज्ञानधनों को अवश्य दीजिए (च) = तथा (न:) = हमारे लिए (भद्रम्) = कल्याणकर (सर्ववीरे) = [सर्व: पूर्ण स्वस्थ] स्वस्थ सन्तानों के साथ (रयिम्) = ऐश्वर्य को (दधात) = धारण कीजिए।
भाषार्थ
(पितरः) हे पितरो ! पितृयज्ञ में सत्कार स्वीकार कर आप (परा यात) जाया करो, (च) और निमन्त्रण पर पुनः (आ यात) आने की कृपा किया करो। (वः) आप के लिये (अयम् यज्ञः) यह पितृयज्ञ (मधुना) मधुर अन्नों द्वारा (समक्तः) जुटाया जाता है। आप पधार कर (इह) इस पितृयज्ञ में (अस्मभ्यम्) हमें (द्रविणा) सदुपदेश-धन (दत्त उ) प्रदान कीजिये। (च) और (भद्रम्) सुखकारी तथा कल्याणकारी (रयिम्) ज्ञान-सम्पत् (दधात) हम में स्थापित कीजिये, जिस से (नः) हमारी (सर्ववीरम्) सब सन्तानें शूरवीर और धर्मवीर बनें। [मधुना = मधुर अन्न सात्त्विक होता है। समक्तः = सम् + अञ्ज् (गतौ)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O Pitaras, parents, teachers and senior scholars, go to yajna and come back here again. This yajna, rich in honey sweets, is in your honour. Pray give us noble strength and power, auspicious wealth, honour and excellence, and brave children worthy of a noble community.
Translation
Go away, ye Fathers, and come; this sacrifice is all anointed with honey for you; both give to us here excellent property, and assign to us wealth having all heroes.
Translation
O our fathers, mothers and elders! this your yajna is arranged for you with things and sweet sentiments, you come (to participate in) this yajna even from distance and after its completion go to your places, you give us various wealth in this world and bestow us that possession which is blessed with auspiciousness and progeny.
Translation
O elders, your soul is full of knowledge. Go to distant places, and spread it, come hither from afar! Enrich us here with gifts of great possessions; grant us blessed wealth with ample stores of heroes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(परा)प्राधान्येन (यात) गच्छत (पितरः) हे पित्रादिमहात्मानः (च) (आयात) आगच्छत (अयम्)उपस्थितः (वः) युष्माकम् (यज्ञः) पूजनीयव्यवहारः (मधुना) विज्ञानेन (समक्तः) अञ्जूव्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त। सम्यग् व्यक्तीकृतः (दत्तो) दत्त-उ। प्रयच्छतैव (अस्मभ्यम्) द्रविणा धनानि (इह) (भद्रम्) कल्याणम् (रयिम्) धनम् (च) (नः)अस्मभ्यम् (सर्ववीरम्) सर्ववीरैरुपेतम् (दधात) धारयत ॥
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