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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 24
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    अक॑र्म ते॒स्वप॑सो अभूम ऋ॒तम॑वस्रन्नु॒षसो॑ विभा॒तीः। विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वाबृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अक॑र्म । ते॒ । सु॒ऽअप॑स: । अ॒भू॒म॒ । ऋ॒तम् । अ॒व॒स्र॒न् । उ॒षस॑: । वि॒ऽभा॒ती: । विश्व॑म् । तत् । भ॒द्रम् । यत् । अव॑न्ति । दे॒वा: । बृ॒हत्। व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीरा॑: ॥३.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अकर्म तेस्वपसो अभूम ऋतमवस्रन्नुषसो विभातीः। विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवाबृहद्वदेम विदथे सुवीराः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अकर्म । ते । सुऽअपस: । अभूम । ऋतम् । अवस्रन् । उषस: । विऽभाती: । विश्वम् । तत् । भद्रम् । यत् । अवन्ति । देवा: । बृहत्। वदेम । विदथे । सुऽवीरा: ॥३.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 24
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    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वान् !] (ते)तेरे लिये [उत्तम कर्म] (अकर्म) हम ने किये हैं, (स्वपसः) अच्छे कर्मवाले (अभूम)हम हुए हैं, (विभातीः) प्रकाश करती हुई (उषसः) प्रभातवेलाओं ने (ऋतम्) सत्यधर्म में (अवस्रन्) निवास किया है। (यत्) जो कुछ (भद्रम्) कल्याणकारक कर्म है, (तत्) उस (विश्वम्) सबकी (देवाः) विद्वान् लोग (अवन्ति) रक्षा करते हैं, (सुवीराः) अच्छे वीरोंवाले हम (विदथे) ज्ञानसमाज में (बृहत्) बढ़ती करनेवाला [वचन] (वदेम) बोलें ॥२४॥

    भावार्थ

    जैसे प्रभातवलाएँ अन्धकार नाश करके प्रकाश करती हैं, वैसे ही सत्य धर्म असत्य का नाश करकेप्रकाशमान होता है, विद्वान् लोग उस सत्य का ग्रहण करके और सभाओं में बैठकरसर्ववृद्धि का विचार करें ॥२४॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध ऋग्वेद में है−४।२।१९ औरउत्तरार्द्ध ऋग्वेद−२।२३।१९ और यजुर्वेद−३४।५८ ॥

    टिप्पणी

    २४−(अकर्म) मन्त्रे घसह्वर०।पा० २।४।८०। च्लेर्लुक्। वयं कृतवन्तः श्रेष्ठकर्माणि (ते) तुभ्यम् (स्वपसः) अपःकर्मनाम-निघ० २।१। धार्मिककर्माणः (अभूम) (ऋतम्) सत्यधर्मम् (अवस्रन्) वसनिवासे-लङ्, रुडागमः। निवसन्ति स्म (उषसः) प्रभातवेलाः (विभातीः) विभात्यः।प्रकाशमानाः (विश्वम्) सर्वम् (तत्) (भद्रम्) शुभं कर्म (यत्) (अवन्ति) रक्षन्ति (देवाः) विद्वांसः (बृहत्) वृद्धिकरं वचनम् (वदेम) ब्रूयाम (विदथे) ज्ञानसमाजे (सुवीराः) श्रेष्ठवीरैरुपेताः ॥

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    विषय

    स्वपसः अभूम

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र का उपासक प्रभु से कहता है कि (ते अकर्म) = आपकी प्राप्ति के लिए जप तप आदि कर्मों को हमने किया है [मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि] और (स्वपस:) = उत्तम यज्ञादि कौवाले हम (अभूम) = हुए हैं। (विभाती: उषस:) = ये प्रकाशमान उषाएँ (ऋतम् अवस्वन) = सत्य वेदज्ञान को आच्छादित करनेवाली हुई हैं, अर्थात् इन उषाओं में हम स्वाध्याय करनेवाले बने है। २. (विश्वं तद भद्रम) = वह सब कल्याणकर ही होता है यद (देवा: अवन्ति) = जिसे माता पिता-आचार्य आदि देव हममें [Animate, promote, favour] उत्पन्न करते हैं। हम (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (सुवीरा:) = बड़े वीर बनते हुए (बृहद् वदेम) = खूब ही ज्ञान की बाणियों का उच्चारण करनेवाले बनें।

    भावार्थ

    हम प्रातः जप करें, यज्ञ करें, स्वाध्याय को अपनाएँ। देवों से प्रेरित कर्मों को करें। परस्पर मिलने पर ज्ञानचर्चाओं को करें और वीर बनें।

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    भाषार्थ

    हे जगत् के स्वामिन्! (ते) आप के वैदिक निर्देशों के अनुसार (अकर्म) हम ने कर्तव्यकर्म किये हैं, अतः (स्वपसः अभूम) सुकर्मी हो गए हैं। (ऋतम्) वैदिक सच्चाइयों का (अवस्रन्) हम ने प्रसार किया है, जैसे (विभातीः) चमकती (उषसः) उषाएं (अवस्रन्) आकाश में प्रसृत होती हैं। (देवाः) देवकोटि के लोग (यद्) जिस कर्मकलाप की (अवन्ति) रक्षा करते हैं, (तद् विश्वम्) वह सब कर्मकलाप (भद्रम्) सुखदायी और कल्याणकारी होता है। उस कर्मकलाप को करते हुए हम (सुवीराः) उत्तम धर्मवीर बन कर, (विदथे) ज्ञान-गोष्ठियों में (बृहद् वदेम) उस कर्मकलाप की महा महिमा का कथन किया करें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    We act in service to you, O lord Agni, by which we can be called good performers. The brilliant dawns, wearing the mantle of light and truth, adorn the fire divine which is the sun. All that is good for humanity and the world, the divinities protect and promote, so that we, brave and blest with the brave, may celebrate your high glory profusely and ecstatically in our acts of yajnic piety.

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    Translation

    We have made (sacrifices) for thee: we have been very active; the illuminating dawns have shone upon (our) rite; all that is excellent which the gods favor; may we talk big at the council, having good heroes. [Rg.IV.2.19 and II.23.19]

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    Translation

    We have done more for this fire of Yajna and therefore we become the men of good deeds. The radiant dawns have their abode in the law of nature. May all that learned men guard be auspicious for us. We in assembly or in Yajna speak loud with our children.

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    Translation

    O God, we perform acts dedicating them to Thee, and thus acquire knowledge. May bright Dawns ever shine on our Yajna (sacrifice)! The learned safeguard all that is blissful. May we, full of strength sing the praise of the Almighty Father in an assembly of the learned.

    Footnote

    See Rig, 4-2-19

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(अकर्म) मन्त्रे घसह्वर०।पा० २।४।८०। च्लेर्लुक्। वयं कृतवन्तः श्रेष्ठकर्माणि (ते) तुभ्यम् (स्वपसः) अपःकर्मनाम-निघ० २।१। धार्मिककर्माणः (अभूम) (ऋतम्) सत्यधर्मम् (अवस्रन्) वसनिवासे-लङ्, रुडागमः। निवसन्ति स्म (उषसः) प्रभातवेलाः (विभातीः) विभात्यः।प्रकाशमानाः (विश्वम्) सर्वम् (तत्) (भद्रम्) शुभं कर्म (यत्) (अवन्ति) रक्षन्ति (देवाः) विद्वांसः (बृहत्) वृद्धिकरं वचनम् (वदेम) ब्रूयाम (विदथे) ज्ञानसमाजे (सुवीराः) श्रेष्ठवीरैरुपेताः ॥

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