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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 10
    ऋषिः - पूरणः देवता - इन्द्राग्नी, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
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    आहा॑र्ष॒मवि॑दं त्वा॒ पुन॒रागाः॒ पुन॑र्णवः। सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षुः॒ सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । आ॒हा॒र्ष॒म् । अवि॑दम् । त्वा॒ । पुन॑: । आ । अ॒गा॒: । पुन॑:ऽनव: ॥ सर्व॑ऽअङ्ग । सर्व॑म् । ते॒ । चक्षु॑: । सर्व॑ । आयु॑: । च॒ । ते॒ । अ॒वि॒द॒म् ॥९६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आहार्षमविदं त्वा पुनरागाः पुनर्णवः। सर्वाङ्ग सर्वं ते चक्षुः सर्वमायुश्च तेऽविदम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । आहार्षम् । अविदम् । त्वा । पुन: । आ । अगा: । पुन:ऽनव: ॥ सर्वऽअङ्ग । सर्वम् । ते । चक्षु: । सर्व । आयु: । च । ते । अविदम् ॥९६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (त्वा) तुझको (आ अहार्षम्) मैंने ग्रहण किया है और (अविदम्) मैंने पाया है, तू (पुनर्णवः) नवीन होकर (पुनः) फिर (आ अगाः) आया है। (सर्वाङ्ग) हे सम्पूर्ण [विद्या] के अङ्गवाले ! (तेरे) लिये (सर्वम्) सम्पूर्ण (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्य (च) और (ते) तेरे लिये (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु (अविदत्) मैंने पायी है ॥१०॥

    भावार्थ

    जिस पुरुष को आचार्य स्वीकार करके विद्यादान देकर द्विजन्मा बनाता है, वह सब प्रकार विद्या से प्रकाशित होकर उत्तम जीवनयुक्त होता है ॥१०॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र आचुका है-अ० ८।१।२० ॥ १०−अयं व्याख्यातः-अ० ८।१।२० ॥

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    विषय

    सर्वाङ्ग

    पदार्थ

    १. रोगी को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि (त्वा आहार्षम्) = तुझे रोग से बाहर ले-आता हूँ और इसप्रकार (त्वा अविदम्) = तुझे प्राप्त करता हूँ। (पुन: आगा:) = तू फिर से हमें प्राप्त हो। (पुनः नव:) = फिर से नवजीवन प्राप्त करनेवाला बन । २. हे (सर्वाङ्ग) = सम्पूर्ण अंगोंवाले पुरुष! (ते) = तेरे लिए (सर्व चक्षुः) = पूर्ण स्वस्थ दृष्टि, (च) = और (ते) = तेरे लिए (सर्वम् आयु:) = पूर्ण जीवन (अविदम्) = मैंने प्राप्त कराया है।

    भावार्थ

    हम नीरोग होकर ठीक दृष्टि को व स्वस्थ अधिकृत अंगों को प्राप्त करते हुए पूर्ण जीवन प्राप्त करें। अग्निहोत्र के द्वारा रोगकृमियों का विनाश होकर हमें नीरोगता प्राप्त होती है। ये रोगकृमि अपने रमण के लिए हमारा क्षय करते हैं, अत: 'रक्षस्' कहलाते हैं। इनको नष्ट करनेवाला 'रक्षोहा' अगले छह मन्त्रों का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (सर्वाङ्ग) हे सब स्वस्थ अङ्गोंवाले! (आहार्षम्) मैं तुझे मृत्यु से छीन लाया हूँ, (त्वा) तुझे (अविदम्) मैंने पुनः पा लिया है, (पुनरागाः) तू फिर संसार में आ गया है, (पुनर्णवः) तू फिर नया हो गया है; (ते) तेरी (सर्वम्) सब (चक्षुः) दृष्टि आदि शक्तियाँ, और (ते) तेरी (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) सौ वर्षों की आयु (अविदम्) तुझे, मैं चिकित्सक ने प्राप्त करा दी है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    I have delivered you from death and disease, brought you back to life. Live life again, renewed, refreshed again, healthy over all in all limbs, organs and systems function. I have brought back your vision and understanding in full, your life and age in full.

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    Translation

    So l have found and rescued you O man and you have now returned with renewed youth. O you fit in whole of your members I have restored for you the sight and all the life.

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    Translation

    So I have found and rescued you O man and you have now returned with renewed youth. O you fit in whole of your members I have restored for you the sight and all the life.

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    Translation

    O lady, let the learned physician, well-versed in the science of killing germs of all diseases, in consultation with a Vedic scholar, efface from here the malignant disease, which has taken hold of thy uterus.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र आचुका है-अ० ८।१।२० ॥ १०−अयं व्याख्यातः-अ० ८।१।२० ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ৬-১০-রোগনাশনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে মনুষ্য !] (ত্বা) তোমাকে (আ অহার্ষম্) আমি গ্রহণ করেছি এবং (অবিদম্) প্রাপ্ত করেছি, তুমি (পুনর্ণবঃ) নবীন হয়ে (পুনঃ) আবার (আ অগাঃ) এসেছো। (সর্বাঙ্গ) হে সম্পূর্ণ [বিদ্যার] অঙ্গসম্পন্ন (তে) তোমার জন্য (সর্বম্) সম্পূর্ণ (চক্ষঃ) দর্শনসামর্থ্য (চ) এবং (তে) তোমার জন্য (সর্বম্) সম্পূর্ণ (আয়ুঃ) আয়ু (অবিদম্) আমি পেয়েছি ॥১০॥

    भावार्थ

    যে পুরুষকে আচার্য স্বীকার করে বিদ্যাদান করে দ্বিজন্মা করে, সে সব প্রকার বিদ্যা দ্বারা প্রকাশিত হয়ে উত্তম জীবনযুক্ত হয় ॥১০॥

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    भाषार्थ

    (সর্বাঙ্গ) হে সকল সুস্থ অঙ্গসম্পন্ন! (আহার্ষম্) আমি তোমাকে মৃত্যু থেকে হরণ করে নিয়ে এসেছি, (ত্বা) তোমাকে (অবিদম্) আমি পুনঃ প্রাপ্ত করেছি, (পুনরাগাঃ) তুমি পুনঃ সংসারে আগমন করেছো, (পুনর্ণবঃ) তুমি পুনঃ নতুন হয়েছো; (তে) তোমার (সর্বম্) সব (চক্ষুঃ) দৃষ্টি আদি শক্তি-সমূহ, এবং (তে) তোমার (সর্বম্) সম্পূর্ণ (আয়ুঃ) শত বর্ষের আয়ু (অবিদম্) তোমাকে, আমি চিকিৎসক প্রাপ্ত করিয়েছি।

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