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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 16
    ऋषिः - रक्षोहाः देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
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    यस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते। प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । त्वा॒ । स्वप्ने॑न । तम॑सा । मो॒ह॒यि॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते ॥ प्र॒जाम् । य: । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥९६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते। प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । त्वा । स्वप्नेन । तमसा । मोहयित्वा । निऽपद्यते ॥ प्रजाम् । य: । ते । जिघांसति । तम् । इत: । नाशयामसि ॥९६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे स्त्री !] (यः) जो कोई [दुष्ट] (स्वप्नेन) नींद से [अथवा] (तमसा) अंधेरे से (मोहयित्वा) घबड़ा देकर (त्वा) तेरे पास (निपद्यते) आजावे, और (यः) जो कोई (ते) तेरे (प्रजाम्) सन्तान को (जिघांसति) मारना चाहे, (तम्) उस [दुष्ट] को (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥१६॥

    भावार्थ

    जो कोई दुष्ट जन नींद की औषधि से अथवा अंधेरा करके कुछ हानि करे, उसका नाश करना चाहिये ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(यः) दुष्टः (त्वा) त्वाम् (स्वप्नेन) निद्रौषधेन (तमसा) अन्धकारेण (मोहयित्वा) मूढां कृत्वा (निपद्यते) अभिगच्छति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    अचेतनावस्था में भोग का निषेध

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (त्वा) = तुझे (स्वप्नेन् तमसा) = स्वप्नावस्था में ले-जानेवाले तमोगुणी पदार्थों के प्रयोग से (मोहयित्वा) = मूढ़ व अचेतन बनाकर (निपद्यते) = भोग के लिए प्राप्त होता है और इसप्रकार (य:) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = प्रजा को-गर्भस्थ सन्तान को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम दूर करते हैं। २. गर्भिणी को अचेनावस्था में ले-जाकर भोगप्रवृत्त होना गर्भस्थ बालक के उन्माद या विनाश का कारण हो जाता है, अत: वह सर्वथा हेय है।

    भावार्थ

    पत्नी को अचेनावस्था में उपभुक्त करना गर्भस्थ बालक के लिए अत्यन्त घातक होता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग से दोषों का उबहण करनेवाला 'विवृहा' १७ से २३ तक मन्त्रों का ऋषि है। ज्ञानी होने से यह 'काश्यप' है -

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    भाषार्थ

    हे स्त्री! (यः) जो व्याभिचारी पुरुष (स्वप्नेन) स्वापन ओषधि द्वारा, या (तमसा) अन्धकार में, (त्वा) तुझे (मोहयित्वा) ज्ञानरहित करके (निपद्यते) तुझ पर बलात्कार करता है, और इस प्रकार (यः) जो (ते) तेरी (प्रजाम्) गर्भस्थ-सन्तान का (जिघांसति) गर्भपात द्वारा हनन करना चाहता है, या हनन करता है, (तम्) उसे (इतः) इस जीवन से (नाशयामसि) हम राज्याधिकारी विनष्ट कर देते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Whoever or whatever approaches you either by creating dreams of reality or in the state of sleep or under veil of darkness or by hypnosis, and hurts or destroys your progeny, that we eliminate from here.

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    Translation

    I, the physician exterminate even that germ of disease which through darkness, or sleep deceive you, lies down by you and destroys your porgeny.

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    Translation

    I, the physician exterminate even that germ of disease which through darkness, or steep deceive you, lies down by you and destroys your progeny.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(यः) दुष्टः (त्वा) त्वाम् (स्वप्नेन) निद्रौषधेन (तमसा) अन्धकारेण (मोहयित्वा) मूढां कृत्वा (निपद्यते) अभिगच्छति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্র ১১-১৬-গর্ভরক্ষোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে স্ত্রী !] (যঃ) যে [দুষ্ট] (স্বপ্নেন) ঘুমের মাধ্যমে [অথবা] (তমসা) অন্ধকারের মাধ্যমে (মোহয়িত্বা) মোহগ্রস্ত করে (ত্বা) তোমার নিকট (নিপদ্যতে) আগমন করে/করবে এবং (যঃ) যদি কেউ (তে) তোমার (প্রজাম্) সন্তানকে (জিঘাংসতি) বধ করতে চায়, তবে (তম্) সেই [দুষ্টকে] আমরা (ইতঃ) এই স্থান থেকে (নাশয়ামসি) বিনাশ করি ॥১৬॥

    भावार्थ

    যদি কোনো ব্যভিচারী ঘুমের ঔষধি প্রয়োগ দ্বারা অথবা অন্ধকার আচ্ছাদন পূর্বক ক্ষতি করার প্রয়াস করে, তবে তাঁর নিশ্চিত বিনাশ করা উচিত ॥১৬॥

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    भाषार्थ

    হে স্ত্রী! (যঃ) যে ব্যাভিচারী পুরুষ (স্বপ্নেন) স্বাপন ঔষধি দ্বারা, বা (তমসা) অন্ধকারে, (ত্বা) তোমাকে (মোহয়িত্বা) জ্ঞানরহিত করে (নিপদ্যতে) তোমার ওপর নির্যাতন করে, এবং এইভাবে (যঃ) যে (তে) তোমার (প্রজাম্) গর্ভস্থ-সন্তানের (জিঘাংসতি) গর্ভপাত দ্বারা হনন করতে চায়, বা হনন করে, (তম্) তাঁকে (ইতঃ) এই জীবন থেকে (নাশয়ামসি) আমরা রাজ্যাধিকারী বিনষ্ট করি।

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