अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 11
ऋषिः - रक्षोहाः
देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-९६
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ब्रह्म॑णा॒ग्निः सं॑विदा॒नो र॑क्षो॒हा बा॑धतामि॒तः। अमी॑वा॒ यस्ते॒ गर्भं॑ दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑णा । अ॒ग्नि: । स॒म्ऽवि॒दा॒न: । र॒क्ष॒:ऽहा । बा॒ध॒ता॒म् । इ॒त: ॥ अमी॑वा । य: । ते॒ । गर्भ॑म् । दु॒:ऽनामा॑ । योनि॑म् । आ॒ऽशये॑ ॥९६.११॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणाग्निः संविदानो रक्षोहा बाधतामितः। अमीवा यस्ते गर्भं दुर्णामा योनिमाशये ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मणा । अग्नि: । सम्ऽविदान: । रक्ष:ऽहा । बाधताम् । इत: ॥ अमीवा । य: । ते । गर्भम् । दु:ऽनामा । योनिम् । आऽशये ॥९६.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गर्भरक्षा का उपदेश।
पदार्थ
[हे गर्भिणी !] (ब्रह्मणा) विद्वान् वैद्य से (संविदानः) मेल रखता हुआ, (रक्षोहा) राक्षसों [रोगों] का नाश करनेवाला (अग्निः) अग्नि [अग्नि के समान रोग भस्म करनेवाला औषध] (इतः) यहाँ से [उस रोग को] (बाधताम्) हटावे, (यः) जो कोई (दुर्णामा) दुर्नामा [दुष्ट नामवाले बवासीर आदि रोग का कीड़ा] (अमीवा) पीड़ा होकर (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भाशय [कोख] और (योनिम्) योनि [गुप्त उत्पत्तिमार्ग] को (आशये) घेर लेता है ॥११॥
भावार्थ
स्त्री की कोख और योनि के रोगजन्तुओं को विद्वान् वैद्यों की सम्मति से दूर करना चाहिये ॥११॥
टिप्पणी
मन्त्र ११-१६ ऋग्वेद में है-१०।१६२।१-६ ॥ इन मन्त्रों से मिलाओ-अ० का०८। सू० ६ ॥ ११−(ब्रह्मणा) विदुषा वैद्येन सह (अग्निः) अग्निसमानं रोगस्य भस्मीकरमौषधम् (संविदानः) ऐकमत्यं प्राप्तः (रक्षोहा) रक्षसां रोगाणां नाशकः (बाधताम्) हिनस्तु तं रोगम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (अमीवा) पीडा (यः) (ते) तव (गर्भम्) गर्भाशयम् (दुर्णामा) अ० ८।६।१। दुर्णामा क्रिमिर्भवति पापनामा-निरु० ६।१२। अर्शआदिरोगजन्तुः (योनिम्) गुप्तोत्पत्तिमार्गम् (आशये) तलोपः। आशेते। प्राप्नोति ॥
विषय
गर्भस्थ व योनिस्थ दोषों का निराकरण
पदार्थ
१. (अग्नि:) = यह ज्ञानाग्नि से दीस कुशल वैद्य (रक्षोहा) = रोगकृमियों का नाश करनेवाला है। यह (ब्रह्मणा) = ज्ञान से (संविदान:) = खूब ज्ञानी बनता हुआ (इत:) = यहाँ से-तेरे शरीर से (बधताम्) = रोग को रोककर दूर करनेवाला हो। (यः अमीवा) = जो रोग (ते) = तेरे (गर्भम् आशये) = गर्भस्थान में निवास करता है, उस रोग को यह वैद्य दूर करे। २. (य:) = जो (दुर्णामा) = अशुभ नामबाला अर्शस्-[बवासीर] नामक रोग (ते) = तेरी (योनिम्) = रेतस के आधानभूत स्थान को अपना आधार बनाता है, उसे भी यह वैद्य दूर करे।
भावार्थ
कुशल वैद्य गर्भस्थान व योनि में होनेवाले दोषों को दूर करे।
भाषार्थ
हे स्त्री! (यः) जो (अमीवा) रोगोत्पादक, (दुर्णामा) दुष्परिणाम पैदा करनेवाला क्रिमी, (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भभूत बच्चे में, तथा तेरी (योनिम्) योनि में (आशये) गुप्तरूप में शयन कर रहा है, प्रविष्ट हुआ-हुआ है उसे, (इतः) इस स्थान से, (रक्षोहा) कृमिरूप राक्षस का हनन करनेवाली (अग्निः) चित्रक अर्थात् चीता नामवाली ओषधि, (ब्रह्मणा) उदुम्बर के साथ (संविदानः) मिल कर, (बाधताम्) हटाए, नष्ट करे।
टिप्पणी
[अमीवा= Amoeba। ब्रह्म=उदुम्बरः ब्रह्मवृक्षः। अग्निः=चित्रकः अनलनामा (भावप्रकाश)। अमीवा= अम (रोगे)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
May Agni, ‘chitraka’, with Brahma, ‘udumbara’, combined according to the formula in medical literature, destroy the infection and viral pain that has entered, infects and afflicts your foetus, ovary and uterus in the reproductive system.
Translation
Let the fire killing the germs attaining power with medicine (Brahmana) dispel the germ of disease named as Durnama which rests in grasping womb.
Translation
Let the fire killing the germs attaining power with medicine (Brahmana) dispel the germ ef disease named as Durnama which rests in grasping womb.
Translation
O lady, let the expert physician, with his Vedic knowledge and learning, thoroughly destroy the malicious disease, which is lying latent in thy organs of generation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र ११-१६ ऋग्वेद में है-१०।१६२।१-६ ॥ इन मन्त्रों से मिलाओ-अ० का०८। सू० ६ ॥ ११−(ब्रह्मणा) विदुषा वैद्येन सह (अग्निः) अग्निसमानं रोगस्य भस्मीकरमौषधम् (संविदानः) ऐकमत्यं प्राप्तः (रक्षोहा) रक्षसां रोगाणां नाशकः (बाधताम्) हिनस्तु तं रोगम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (अमीवा) पीडा (यः) (ते) तव (गर्भम्) गर्भाशयम् (दुर्णामा) अ० ८।६।१। दुर्णामा क्रिमिर्भवति पापनामा-निरु० ६।१२। अर्शआदिरोगजन्तुः (योनिम्) गुप्तोत्पत्तिमार्गम् (आशये) तलोपः। आशेते। प्राप्नोति ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্র ১১-১৬-গর্ভরক্ষোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে গর্ভিণী !] (ব্রহ্মণা) বিদ্বান্ বৈদ্যের সাথে (সম্বিদানঃ) ঐকমত্য প্রাপ্ত, (রক্ষোহা) রাক্ষস [রোগসমূহ] নাশক (অগ্নিঃ) অগ্নি [অগ্নির সমান রোগ দূরীভূতকারী ঔষধ] (ইতঃ) এখান থেকে [সেই রোগকে] (বাধতাম্) দূরীভূত করুক, (যঃ) যা কিছু (দুর্ণামা) দুর্নাম/কুৎসিত [দুষ্ট নামযুক্ত অর্শাদি রোগের জীবাণু] (অমীবা) ব্যাধি হয়ে (তে) তোমার (গর্ভম্) গর্ভাশয় [জরায়ু] এবং (যোনিম্) যোনিকে [গুপ্ত উৎপত্তিমার্গকে] (আশয়ে) আক্রান্ত করে ॥১১॥
भावार्थ
স্ত্রীর গর্ভাশয় ও যোনির গুপ্ত রোগসমূহকে বিদ্বান্ বৈদ্যদের সম্মতিতে দূর করা উচিত ॥১১॥ মন্ত্র ১১-১৬ ঋগ্বেদ বিদ্যমান-১০।১৬২।১-৬ ॥
भाषार्थ
হে স্ত্রী! (যঃ) যে (অমীবা) রোগোৎপাদক, (দুর্ণামা) দুষ্পরিণাম উৎপন্নকারী কৃমী, (তে) তোমার (গর্ভম্) গর্ভভূত সন্তানের মধ্যে, তথা তোমার (যোনিম্) যোনিতে (আশয়ে) গুপ্তরূপে শয়ন করছে, প্রবিষ্ট হয়েছে উহাকে, (ইতঃ) এই স্থান থেকে, (রক্ষোহা) কৃমিরূপ রাক্ষসের হননকারী (অগ্নিঃ) চিত্রক অর্থাৎ চীতা নামের ঔষধি, (ব্রহ্মণা) উদুম্বর-এর সাথে (সম্বিদানঃ) মিলে, (বাধতাম্) দূর করুক, নষ্ট করুক।
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