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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 12
    ऋषिः - रक्षोहाः देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
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    यस्ते॒ गर्भ॒ममी॑वा दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑। अ॒ग्निष्टं ब्रह्म॑णा स॒ह निष्क्र॒व्याद॑मनीनशत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ते॒ । गर्भ॑म् । अमी॑वा । दु॒:ऽनामा॑ । योनि॑म् । आ॒ऽशये॑ ॥ अ॒ग्नि: । तम् । ब्रह्म॑णा । स॒ह । नि: । क्र॒व्य॒ऽअद॑म् । अ॒नी॒न॒श॒त् ॥९६.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते गर्भममीवा दुर्णामा योनिमाशये। अग्निष्टं ब्रह्मणा सह निष्क्रव्यादमनीनशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । ते । गर्भम् । अमीवा । दु:ऽनामा । योनिम् । आऽशये ॥ अग्नि: । तम् । ब्रह्मणा । सह । नि: । क्रव्यऽअदम् । अनीनशत् ॥९६.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे गर्भिणी !] (यः) जो कोई (दुर्णामा) दुर्नामा [दुष्ट नामवाला बवासीर आदि रोग का कीड़ा] (अमीवा) पीड़ा होकर (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भाशय [कोख] और (योनिम्) योनि [गुप्त उत्पत्तिमार्ग] को (आशये) घेर लेता है, (ब्रह्मणा सह) विद्वान् वैद्य के साथ (अग्निः) अग्नि [अग्निसमान रोग भस्म करनेवाला औषध] (तम्) उस (क्रव्यादम्) मांस खानेवाले [रोग] का (निः) सर्वथा (अनीनशत्) नाश करे ॥१२॥

    भावार्थ

    मन्त्र ११ के समान है ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(यः ते गर्भम्....) इत्यादयो गताः सुगमाश्च (निः) निःशेषेण (क्रव्यादम्) मांसभक्षकं रोगम् (अनीनशत्) नाशयतु ॥

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    विषय

    क्रव्याद [क्रिमि] संहार

    पदार्थ

    १. (य:) = जो अमीवा रोग (ते) = तेरे (गर्भम्) = गर्भस्थान में (आशये) = निवास करता है और जो (दुर्णामा) = अशुभ नामबाला अर्शस् नामक रोग (योनिम्) = रेतस् के आधान स्थान में निवास करता है, (तम्) = उसको (अग्नि:) = यह कुशल, ज्ञानी वैद्य (नि: अनीनशत्) = बाहर करके नष्ट कर दे। २. यह ज्ञानी वैद्य (ब्रह्मणा सह) = ज्ञान के साथ, अर्थात् रोग को अच्छी प्रकार समझकर नष्ट करनेवाला हो। (क्रव्यादम्) = इस मांस खानेवाले [मांसानि शनम् सा०] क्रिमि को यह वैद्य नष्ट कर दे। इन क्रव्याद क्रिमियों के नाश से ही रोग का उन्मूलन होता है।

    भावार्थ

    ज्ञानी वैद्य मांस को खा जानेवाले क्रिमियों को नष्ट करके गर्भगत व योनिगत विकारों को नष्ट करता है।

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    भाषार्थ

    हे स्त्री! (यः) जो (अमीवा) रोगोत्पादक, (दुर्णामा) दुष्परिणाम पैदा करनेवाला कृमि, (ते) तेरे (गर्भम्) गर्भस्थ बच्चे में, तथा तेरी (योनिम्) योनि में (आ शये) गुप्तरूप में शयन कर रहा है, प्रविष्ट हुआ-हुआ है, (तम्) उस (क्रव्यादम्) कच्चा-मांस खानेवाले क्रिमि को, (अग्निः) चित्रक ओषधि ने (ब्रह्मणा सह) उदुम्बर ओषधि के साथ मिल कर (निः अनीनशत्) पूर्णतया नष्ट कर निकाल दिया है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    The acute infection that has entered your womb in the reproductive system and consumes your foetus, let Agni, ‘chitraka’, in combination with Brahma, ‘udumbara’, according to the specific formula, destroy and eliminate.

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    Translation

    Let the fire with the aid of medicine and treatment destroy that flesh-eating germ which known as Durnama, bearing malignancy has found place in your grasping womb.

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    Translation

    Let the fire with the aid of medicine and treatment destroy that flesh-eating germ which known as Durnama, bearing malignancy has found place in your grasping womb.

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    Translation

    O female, we shall destroy altogether from this world, the person or the disease-germ which kills the sperm in the very act of falling in thy organ of generation, which kills it in the iambic stage which kills it when it has begun its movements in the womb, which wishes to kill it when it is born.

    Footnote

    (13-16) we: the physician and the king.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(यः ते गर्भम्....) इत्यादयो गताः सुगमाश्च (निः) निःशेषेण (क्रव्यादम्) मांसभक्षकं रोगम् (अनीनशत्) नाशयतु ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্র ১১-১৬-গর্ভরক্ষোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে অন্তঃসত্ত্বা !] (যঃ) যা (দুর্ণামা) দুর্নাম/কুৎসিত [দুষ্ট নামযুক্ত অর্শাদি রোগের জীবাণু] (অমীবা) ব্যাধি হয়ে (তে) তব (গর্ভম্) গর্ভাশয় [জরায়ু] ও (যোনিম্) যোনিকে [গুপ্ত উৎপত্তিমার্গ] (আশয়ে) আক্রান্ত করে, (ব্রহ্মণা সহ) বিদ্বান্ বৈদ্যের সাথে (অগ্নিঃ) অগ্নি [অগ্নিসমান রোগ ভস্মকারী ঔষধ] (তম্) সেই (ক্রব্যাদম্) মাংসভক্ষক [রোগের] (নিঃ) সর্বদা (অনীনশৎ) বিনাশ করে/করুক॥১২॥

    भावार्थ

    স্ত্রীর গর্ভাশয় ও যোনির গুপ্ত রোগসমূহকে বিদ্বান্ বৈদ্যদের সম্মতিতে দূর করা উচিত।।১২।।

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    भाषार्थ

    হে স্ত্রী! (যঃ) যে (অমীবা) রোগোৎপাদক, (দুর্ণামা) দুষ্পরিণাম উৎপন্নকারী কৃমী, (তে) তোমার (গর্ভম্) গর্ভভূত সন্তানের মধ্যে, তথা তোমার (যোনিম্) যোনিতে (আশয়ে) গুপ্তরূপে শয়ন করছে, প্রবিষ্ট হয়েছে, (তম্) সেই (ক্রব্যাদম্) কাঁচা-মাংস ভক্ষণকারী কৃমিকে, (অগ্নিঃ) চিত্রক ঔষধি (ব্রহ্মণা সহ) উদুম্বর ঔষধির সাথে মিলে (নিঃ অনীনশৎ) পূর্ণরূপে নষ্ট করে বের করে দিয়েছে।

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