अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 19
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-९६
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हृद॑यात्ते॒ परि॑ क्लो॒म्नो हली॑क्ष्णात्पा॒र्श्वाभ्या॑म्। यक्ष्मं॒ मत॑स्नाभ्यां प्ली॒ह्नो य॒क्नस्ते॒ वि वृ॑हामसि ॥
स्वर सहित पद पाठहृद॑यात् । ते॒ । परि॑ । क्लो॒म्न: । हली॑क्ष्णात् । पा॒र्श्वाभ्या॑म् ॥ यक्ष्म॑म् । मत॑स्नाभ्याम् । प्ली॒ह्न: । य॒क्न: । ते॒ । वि । वृ॒हा॒म॒सि॒ ॥९६.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
हृदयात्ते परि क्लोम्नो हलीक्ष्णात्पार्श्वाभ्याम्। यक्ष्मं मतस्नाभ्यां प्लीह्नो यक्नस्ते वि वृहामसि ॥
स्वर रहित पद पाठहृदयात् । ते । परि । क्लोम्न: । हलीक्ष्णात् । पार्श्वाभ्याम् ॥ यक्ष्मम् । मतस्नाभ्याम् । प्लीह्न: । यक्न: । ते । वि । वृहामसि ॥९६.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
शारीरिक विषय में शरीररक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से, (क्लोम्नः) फेफड़े से, (हलीक्ष्णात्) पित्ते से, (पार्श्वाभ्यां परि) दोनों काँखों [कक्षाओं] से और (ते) तेरे (मतस्नाभ्याम्) दोनों मतस्नों [गुर्दों] से, (प्लीह्नः) प्लीहा वा पिलई [तिल्ली] से, (यक्नः) यकृत् [काल खण्ड वा कलेजा] से (यक्ष्मम्) क्षयी रोग को (वि वृहामसि) हम उखाड़े देते हैं ॥१९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में कन्धों के नीचे के अवयवों का वर्णन है। भावार्थ मन्त्र १७ के समान है ॥१९॥
टिप्पणी
१७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥
विषय
हृदयादि दोष-दूरीकरण
पदार्थ
१. हे रुग्ण पुरुष! (ते) = तेरे (हृदयात्) = हृदय-पुण्डरीक से, (परिक्लोम्नः) = हृदय-समीपस्थ फेफड़े से (हलीक्षणात्) = पित्ताशय से, (पाश्र्वाभ्याम्) = दोनों कोखों से-पावियवों से (यक्ष्मम्) = रोग को विवृहामसि-पृथक् करते हैं। २. (ते) = तेरे (मतस्नाभ्याम्) = गुदों से (प्लीह्नाः) = तिल्ली से और (यवन:) = जिगर से रोग को दूर करते हैं।
भावार्थ
ज्ञानी वैद्य हृदय आदि प्रदेशों से रोग को दूर करता है।
भाषार्थ
हे रोगी! (ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से, (क्लोम्नः परि) दाहिने फेफड़ें से, (हलीक्ष्णात्) बाएँ फेफड़े से, (पार्श्वाभ्याम्) दोनों कोखों से, (मतस्नाभ्याम्) दोनों गुर्दों से, (प्लीह्नः) तिल्ली से, (यक्नः) यकृत् अर्थात् गुर्दे से (यक्ष्मम्) यक्ष्मा रोग को (विवृहामसि) हम दूर करते हैं।
टिप्पणी
[क्लोमा=“वामतः प्लीहा फुप्फुसः, दक्षिणतो यकृत् क्लोम च” (सुश्रुत शरीर০ ४.३७)। मतस्नाभ्याम्=मद से शोधन करनेवाले, शारीरिक मादक तत्त्वों को मूत्र द्वारा निकाल कर शरीर की शुद्धि करनेवाले; मत (मद)+स्ना (शौचे)। प्लीहा = Spleen। परिक्लोमा = Gonorrhea। ]
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
I remove and uproot the consumptive, cancerous disease from your heart, lungs, gall bladder, sides, kidneys, spleen and liver.
Translation
I drive away disease from viseera and all within, from rectum, from the heart, from kidneys, liver and from spleen.
Translation
I drive away disease from viscera and all within, from rectum, from the heart, from kidneys, liver and from spleen.
Translation
See Atha, 2.33. 4.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ ১৭-২৩-শারীরিকবিষয়ে শরীররক্ষোপদেশঃ
भाषार्थ
(তে) তোমার (হৃদয়াৎ) হৃদয় থেকে, (ক্লোম্নঃ) ফুসফুস থেকে, (হলীক্ষ্ণাৎ) পিত্ত থেকে, (পার্শ্বাভ্যাম্ পরি) দুই কুক্ষি [কক্ষা বা বগল থেকে] এবং (তে) তোমার (মতস্নাভ্যাম্) দুই মতস্ন [পাছা] থেকে, (প্লীহ্নঃ) প্লীহা থেকে এবং (যক্নঃ) যকৃৎ থেকে (যক্ষ্মম্) ক্ষয়ী রোগকে (বি বৃহামসি=০–মঃ) আমি উৎখাত করে দিই ॥১৯॥
भावार्थ
এই মন্ত্রে কাঁধের নীচের অবয়বের বর্ণনা হয়েছে। ভাবার্থ মন্ত্র ১ এর সমান॥১৯॥
भाषार्थ
হে রোগী! (তে) তোমার (হৃদয়াৎ) হৃদয় থেকে, (ক্লোম্নঃ পরি) ডান ফুসফুস থেকে, (হলীক্ষ্ণাৎ) বাম ফুসফুস থেকে, (পার্শ্বাভ্যাম্) দুই পার্শ্ব/কুক্ষি/বাহুমূল থেকে, (মতস্নাভ্যাম্) দুই বৃক্ক থেকে, (প্লীহ্নঃ) প্লীহা থেকে, (যক্নঃ) যকৃৎ থেকে (যক্ষ্মম্) যক্ষ্মা রোগ (বিবৃহামসি) আমরা দূর করি।
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