Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 5
    ऋषिः - पूरणः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
    0

    अ॑श्वा॒यन्तो॑ ग॒व्यन्तो॑ वा॒जय॑न्तो॒ हवा॑महे॒ त्वोप॑गन्त॒वा उ॑। आ॒भूष॑न्तस्ते सुम॒तौ नवा॑यां व॒यमि॑न्द्र त्वा शु॒नं हु॑वेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्व॒ऽयन्त॑: । ग॒व्यन्त॑: । वा॒जय॑न्त: । हवा॑महे । त्वा॒ । उप॑ऽग॒न्‍त॒वै । ऊं॒ इति॑ ॥ आ॒ऽभूष॑न्त: । ते॒ । सु॒ऽम॒तौ । नवा॑याम् । व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ । शु॒नम् । हु॒वे॒म॒॥९६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वायन्तो गव्यन्तो वाजयन्तो हवामहे त्वोपगन्तवा उ। आभूषन्तस्ते सुमतौ नवायां वयमिन्द्र त्वा शुनं हुवेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वऽयन्त: । गव्यन्त: । वाजयन्त: । हवामहे । त्वा । उपऽगन्‍तवै । ऊं इति ॥ आऽभूषन्त: । ते । सुऽमतौ । नवायाम् । वयम् । इन्द्र । त्वा । शुनम् । हुवेम॥९६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (अश्वायन्तः) घोड़े चाहते हुए (गव्यन्तः) भूमि चाहते हुए, (वाजयन्तः) बल वा अन्न चाहते हुए हम (त्वा) तुझे (उपगन्तवै) आने के लिये (उ) अवश्य करके (हवामहे) बुलाते हैं। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (ते) तेरी (नवायाम्) श्रेष्ठ (सुमतौ) सुमति में (आभूषन्तः) शोभा पाते हुए (वयम्) हम (त्वा) तुझको (शुनम्) सुख से (हुवेम) बुलावें ॥॥

    भावार्थ

    प्रजागण धर्मात्मा राजा की नीति में चलकर सदा उन्नति करें ॥॥

    टिप्पणी

    −(अश्वायन्तः) अश्व-क्यच, शतृ। अश्वाघस्यात्। पा० ७।४।३७। इत्वात्त्वम्। अश्वान् इच्छन्तः (गव्यन्तः) गो-क्यच्, शतृ। वान्तो यि प्रत्यये। पा० ६।–१।७९। अवादेशः। गां भूमिमिच्छन्तः (वाजयन्तः) बलमन्नां वेच्छन्तः (हवामहे) आह्वयामः (त्वा) त्वाम् (उपगन्तवै) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। गमेः-तवैप्रत्ययः। आगन्तुम् (उ) अवधारणे (आभूषन्तः) अलंक्रियमाणाः। शोभायमानाः (ते) तव (सुमतौ) शोभनायां बुद्धौ (नवायाम्) णु स्तुतौ-अप्। स्तुत्यायाम् (वयम्) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (त्वा) (शुनम्) सुखेन (हुवेम) आह्वयेम ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    तपस्वी जीवन

    पदार्थ

    १. (अश्वायन्त:) = उत्तम कर्मेन्द्रियों की कामना करते हुए, (गव्यन्तः) = ज्ञानेन्द्रियों को प्रशस्त बनाते हुए, (वाजयन्त:) = शक्ति की कामना करते हुए हम (उपगन्तवा उ) = हे प्रभो! आपके समीप प्राप्त होने के लिए (त्वा हवामहे) = आपको पुकारते हैं। प्रभु की आराधना से ही हम जीवन में विलास से बचकर उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, उत्तम कर्मेन्द्रियों व शक्ति को प्राप्त करते हैं। २. हे प्रभो ! इसप्रकार ते आपकी (नवायाम्) = अतिशयेन (स्तुत्य सुमती) = कल्याणी मति में (आभूषन्तः) = सदा वर्तमान होते हुए (वयम्) = हम, हे इन्द्र-सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (शुनम्) = आनन्दस्वरूप (त्वा) = आपको हुवेम-पुकारते हैं। आपकी आराधना ही तो हमें कल्याणी मति प्राप्त कराएगी।

    भावार्थ

    उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों व शक्ति का सम्पादन करते हुए हम प्रभु का उपासन करें। प्रभु का उपासन हमें शुभ बुद्धि को प्राप्त कराता है। यह उत्तम बुद्धिवाला तपस्वी जीवन को, नकि विलासी जीवन को बिताता हुआ पूर्ण नीरोग बनता है। सब रोगों को नष्ट करता हुआ 'यक्ष्मनाशनम्' होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अश्वायन्तः) अश्व चाहते हुए, (गव्यन्तः) गौंए चाहते हुए, (वाजयन्तः) आत्मिक बल चाहते हुए हम, हे परमेश्वर! (त्वा) आपका (हवामहे) आह्वान करते हैं, ताकि हम (उप गन्तवे) आपके समीप पहुँच सकें। (ते) आपकी (नवायाम्) सदा नवीन (सुमतौ) वैदिक सुमति में (आभूषन्तः) अपने आपको विभूषित करते हुए हम (इन्द्र) हे परमेश्वर! (शुनं त्वा) सुखस्वरूप आपका (हुवेम) सदा आह्वान करते रहें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में अभ्युदय और निःश्रेयस का समन्वय किया गया है। इसलिए अश्व प्राप्ति और गौओं की प्राप्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रार्थना भी हुई है। शुनम्=सुखम् (निघं০ ३.६)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Enthusiastic and advancing for progress, prosperity and pride of achievement, we call upon you, Indra, ruling lord of the world, to come close to us and be with us. Winning the graces of life and doing glory to divinity, we pray, let us abide in your favour and adorable good will. We pray for peace and well being, we ask for divine grace.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O mighty ruler, we desiring horses, desiring land, desiring grain call on you to come to us. O strong one, may we occopying proper place in your good intention easly call on you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O mighty ruler, we desiring horses, desiring land, desiring grain call on you to come to us. O strong one, may we occupying proper place in your good intention easily call on you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(अश्वायन्तः) अश्व-क्यच, शतृ। अश्वाघस्यात्। पा० ७।४।३७। इत्वात्त्वम्। अश्वान् इच्छन्तः (गव्यन्तः) गो-क्यच्, शतृ। वान्तो यि प्रत्यये। पा० ६।–१।७९। अवादेशः। गां भूमिमिच्छन्तः (वाजयन्तः) बलमन्नां वेच्छन्तः (हवामहे) आह्वयामः (त्वा) त्वाम् (उपगन्तवै) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। गमेः-तवैप्रत्ययः। आगन्तुम् (उ) अवधारणे (आभूषन्तः) अलंक्रियमाणाः। शोभायमानाः (ते) तव (सुमतौ) शोभनायां बुद्धौ (नवायाम्) णु स्तुतौ-अप्। स्तुत्यायाम् (वयम्) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (त्वा) (शुनम्) सुखेन (हुवेम) आह्वयेम ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন্ !] (অশ্বায়ন্তঃ) অশ্ব অভিলাষী, (গব্যন্তঃ) ভূমি অভিলাষী, (বাজয়ন্তঃ) বল বা অন্ন অভিলাষী আমরা (ত্বা) তোমাকে (উপগন্তবৈ) আসার/আগমনের জন্য (উ) অবশ্যই (হবামহে) আহ্বান করছি/করি। (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহাপ্রতাপী রাজন্] (তে) তোমার (নবায়াম্) শ্রেষ্ঠ (সুমতৌ) সুমতি/বুদ্ধিতে (আভূষন্তঃ) শোভায়মান/শোভাপ্রাপ্ত (বয়ম্) আমরা (ত্বা) তোমাকে (শুনম্) সুখপূর্বক (হুবেম) আহ্বান করছি/করি ॥৫॥

    भावार्थ

    প্রজাগণ ধর্মাত্মা রাজার নীতি অবলম্বন পূর্বক নিজেদের সদা উন্নতি করে/করুক॥৫॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (অশ্বায়ন্তঃ) অশ্ব কামনা করে, (গব্যন্তঃ) গাভী কামনা করে, (বাজয়ন্তঃ) আত্মিক বল কামনা করে আমরা, হে পরমেশ্বর! (ত্বা) আপনার (হবামহে) আহ্বান করি, যাতে আমরা (উপ গন্তবে) আপনার সমীপ পৌঁছাতে পারি। (তে) আপনার (নবায়াম্) সদা নবীন (সুমতৌ) বৈদিক সুমতিতে (আভূষন্তঃ) নিজেকে বিভূষিত করে আমরা (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (শুনং ত্বা) সুখস্বরূপ আপনার (হুবেম) সদা আহ্বান করতে থাকি।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top