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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 22
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - यक्ष्मनाशनम् छन्दः - उष्णिग्गर्भा निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
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    अ॒स्थिभ्य॑स्ते म॒ज्जभ्यः॒ स्नाव॑भ्यो ध॒मनि॑भ्यः। यक्ष्मं॑ पा॒णिभ्या॑म॒ङ्गुलि॑भ्यो न॒खेभ्यो॒ वि वृ॑हामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्थिभ्य॑: । ते॒ । म॒ज्जऽभ्य॑: । स्नाव॑ऽभ्य: । ध॒मनि॑ऽभ्य: ॥ यक्ष्म॑म् । पा॒णिऽभ्या॑म् । अ॒ङ्गुलि॑ऽभ्य: । न॒खेभ्य॑: । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥९६.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्थिभ्यस्ते मज्जभ्यः स्नावभ्यो धमनिभ्यः। यक्ष्मं पाणिभ्यामङ्गुलिभ्यो नखेभ्यो वि वृहामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्थिभ्य: । ते । मज्जऽभ्य: । स्नावऽभ्य: । धमनिऽभ्य: ॥ यक्ष्मम् । पाणिऽभ्याम् । अङ्गुलिऽभ्य: । नखेभ्य: । वि । वृहामि । ते ॥९६.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    शारीरिक विषय में शरीररक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) तेरे (अस्थिभ्यः) हड्डियों से, (मज्जभ्यः) मज्जा धातु [हड्डी के भीतर के रस] से, (स्नावभ्यः) सूक्ष्म नाड़ियों [वा पुट्ठों] से, और (धमनिभ्यः) स्थूल नाड़ियों से, और (ते) तेरे (पाणिभ्याम्) दोनों हाथों से, (अङ्गुलिभ्यः) अङ्गुलियों से और (नखेभ्यः) नखों से (यक्ष्मम्) क्षयी रोग को (वि वृहामि) मैं जड़ से उखाड़ता हूँ ॥२२॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपने शरीर के भीतरी धातुओं, नाड़ियों और हाथ आदि बाहिरी अङ्गों को यथायोग्य आहार-विहार से पुष्ट और स्वस्थ रक्खें, जिससे आत्मिक शक्ति सदा बढ़ती रहे ॥२२॥

    टिप्पणी

    १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥

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    विषय

    अस्थ्यादि दोष-विध्वंस

    पदार्थ

    १. (ते) = तेरी (अस्थिभ्यः) = हड्डियों से (मजभ्यः) = मज्जा से (यक्ष्मम्) = रोग को (विवहामि) = दूर करता हूँ। (स्नावभ्यः) = सूक्ष्म सिराओं से तथा (धमनिभ्य:) = स्थूल सिराओं से तेरे रोग को दूर करता हूँ। २.(ते) = तेरे (पाणिभ्याम्) = हाथों से, (अंगुलिभ्यः) = अंगुलियों से तथा (नखेभ्य:) = नखों से रोग को दूर करता हूँ।

    भावार्थ

    अस्थि आदि में आ गये रोग को दूर किया जाए।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरी (अस्थिभ्यः) हड्डियों से, (मज्जभ्यः) मज्जाओं से, (स्नावभ्यः) मांस-बन्धनियों से, (धमनिभ्यः) धमनि-नाड़ियों से, (पाणिभ्याम्) हाथों से, (अङ्गुलिभ्यः) अङ्गुलियों से, (नखेभ्यः) नखों से, (ते) तेरे (यक्ष्मम्) यक्ष्म-रोग को (वि वृहामि) मैं चिकित्सक दूर करता हूँ।

    टिप्पणी

    [स्नाव=वे मांस-तन्तु जिनके द्वारा मासंपेशियाँ हड्डियों के साथ बन्धी रहती हैं। धमनि=Arteries। ]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    I remove and uproot the consumptive, cancerous disease from your bones, marrow, tendons, veins, hands, fingers and nails.

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    Translation

    I drive away disease from what is voided from within from fingers, from hair, from nails, from all your self and from top to toe, from bones, from marrouls, from nerves and from veins.

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    Translation

    I drive away disease from what is voided from within from fingers, from hair, from nails, from all yourself and from top to toe, from bones, from marrouls, from nerves and from veins.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७-२३−व्याख्याताः-अ० २।३३।१-७ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ ১৭-২৩-শারীরিকবিষয়ে শরীররক্ষোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তে) তোমার (অস্থিভ্যঃ) অস্থি থেকে (মজ্জভ্যঃ) মজ্জা ধাতু [অস্থির ভেতরের রস] থেকে (স্নাবভ্যঃ) পাছা থেকে এবং (ধমনিভ্যঃ) নাড়ি থেকে এবং (তে) তোমার (পাণিভ্যাম্) দুই হাত থেকে, (অঙ্গুলিভ্যঃ) অঙ্গুলি থেকে এবং (নখেভ্যঃ) নখ থেকে (যক্ষ্মম্) ক্ষয়ী রোগকে (বি বৃহামি) আমি সমূলে উৎখাত করি ॥২২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য নিজের শরীরের আন্তরিক ধাতু, নাড়ি এবং হাত আদি বাহ্যিক অঙ্গের যথাযোগ্য আহার-বিহার দ্বারা পুষ্ট ও সুস্থ রাখুক, যাতে আত্মিক শক্তি সদা বাড়তে থাকে ॥২২॥

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    भाषार्थ

    (তে) তোমার (অস্থিভ্যঃ) অস্থিসমূহ থেকে, (মজ্জভ্যঃ) মজ্জা-সমূহ থেকে, (স্নাবভ্যঃ) মাংস-বন্ধনি থেকে, (ধমনিভ্যঃ) ধমনি-নাড়ি থেকে, (পাণিভ্যাম্) হাত থেকে, (অঙ্গুলিভ্যঃ) আঙুল থেকে, (নখেভ্যঃ) নখ থেকে, (তে) তোমার (যক্ষ্মম্) যক্ষ্মা-রোগ (বি বৃহামি) আমি চিকিৎসক দূর করি।

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