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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 9
    ऋषिः - पूरणः देवता - इन्द्राग्नी, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - शक्वरीगर्भा जगती सूक्तम् - सूक्त-९६
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    श॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानः श॒तं हे॑म॒न्ताञ्छ॒तमु॑ वस॒न्तान्। श॒तं त॒ इन्द्रो॑ अ॒ग्निः स॑वि॒ता बृह॒स्पतिः॑ श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । जी॒व॒ । श॒रद॑: । वर्ध॑मान: । श॒तम् । हे॒म॒न्तान् । श॒तम् । ऊं॒ इति॑ । व॒स॒न्तान् ॥ श॒तम् । ते॒ । इन्द्र॑: । अ॒ग्नि: । स॒वि॒ता । बृह॒स्पति॑: । श॒तऽआ॑युषा । ह॒वि॒षा॑ । आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । ए॒न॒म् ॥९६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं जीव शरदो वर्धमानः शतं हेमन्ताञ्छतमु वसन्तान्। शतं त इन्द्रो अग्निः सविता बृहस्पतिः शतायुषा हविषाहार्षमेनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । जीव । शरद: । वर्धमान: । शतम् । हेमन्तान् । शतम् । ऊं इति । वसन्तान् ॥ शतम् । ते । इन्द्र: । अग्नि: । सविता । बृहस्पति: । शतऽआयुषा । हविषा । आ । अहार्षम् । एनम् ॥९६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (वर्धमानः+त्वम्) बढ़ती करता हुआ तू (शतं शरदः) सौ शरद् ऋतुओं तक, (शतं हेमन्तान्) सौ शीत ऋतुओं तक (उ) और (शतं वसन्तान्) सौ वसन्त ऋतुओं तक (जीव) जीता रह। (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, (अग्निः) तेजस्वी विद्वान्, (सविता) सबके चलानेवाले, (बृहस्पतिः+अहं जीवः) बड़े-बड़ों के रक्षक मैंने (शतम्) अनेक प्रकार से (ते) तेरे लिये (शतायुषा) सैकड़ों जीवन शक्तिवाले (हविषा) आत्मदान वा भक्ति से (एनम्) इस [आत्मा] को (आ अहार्षम्) उभारा है ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य उचित रीति से वर्षा, शीत और उष्ण ऋतुओं को सहकर बहुप्रकार मन्त्रोक्त विधि पर विद्या आदि बल से शक्तिमान् होकर जीविका उपार्जन करता हुआ आत्मा की उन्नति करे ॥९॥

    टिप्पणी

    ६-९−व्याख्याताः-अ० ३।११।१-४ ॥

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    विषय

    'इन्द्र, अग्नि, सविता तथा बृहस्पति'

    पदार्थ

    १. हे मनुष्य! तू (वर्धमान:) = सब शक्तियों की दृष्टि से वृद्धि प्राप्त करता हुआ (शतं शरदः जीव) = सौ शरद् ऋतुओं तक जीनेवाला हो। (शतं हेमन्तान) = सौ हेमन्त ऋतुओं तक जी (उ) = और (शतं वसन्तान्) = सौ बसन्त ऋतुओं तक जीनेवाला बन । २. (इन्द्रः अग्निः) = सूर्य और अग्नि तथा (सविता बृहस्पति:) = उत्पादक वीर्यशक्ति तथा उत्कृष्ट ज्ञान-ये सब (ते) = तेरे लिए (शतम्) = शतवर्ष का जीवन दें। मैं (एनम्) = इस रुग्ण पुरुष को (शतायुषा) = शत वर्षों का जीवन देनेवाली (हविषा) = हवि के द्वारा (आहाम्) = रोग से बाहर ले-जाता हूँ। 'सूर्यकिरणों के सम्पर्क में रहना, अग्निहोत्र द्वारा वायु-शुद्धि, उत्पादक शक्ति का शरीर में रक्षण तथा ज्ञान' ये सब दीर्घजीवन की प्राप्ति के साधन हैं।

    भावार्थ

    'इन्द्र, अग्नि, सविता तथा बृहस्पति' हमें दीर्घ जीवन प्राप्त कराएँ।

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    भाषार्थ

    (वर्धमानः) वृद्धि को प्राप्त हुआ तू (शतं शरदः जीव) सौ शरदृतुओं तक जीवित रह, (शतं हेमन्तान्) सौ हेमन्त ऋतुओं तक, (उ शतं वसन्तान्) और सौ वसन्त ऋतुओं तक जीवित रह। (इन्द्रः) परमेश्वर, (अग्निः) यज्ञियाग्नि, (सविता) सूर्य, (बृहस्पतिः) वायु तुझे सौ वर्षों तक जीवित रखें। मैं चिकित्सक (शतायुषा हविषा) सौ वर्षों तक जीवित रखनेवाली हवि द्वारा (एनम्) इस रोगी को (आहार्षम्) मृत्यु से छीन लाया हूँ।

    टिप्पणी

    [“अयं वै बृहस्पतिर्योऽयं वायुः पवते” (श০ ब्रा০ १४.२.२.१०)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    O patient, live a hundred years through autumn, winter and spring seasons, rising, growing and advancing. May Indra, lord of strength, power and glory, Agni, lord of light and fire in the fore front, Savita, lord of life’s generation and sustenance, and Brhaspati, lord of space and radiant knowledge, bless you with hundredfold joy and vest you with hundredfold span of life again with herbs and medications of high order for good health.

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    Translation

    O man, you increasing your strength live a hundred autumns liye through a hundred springs and a hundred winters. Let elctricity, fire, sun and air through the medicine lasting hundred years’ life restore him for hundred autumns.,

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    Translation

    O man, you increasing your strength live a hundred autumns live through a hundred springs and a hundred winters. Let electricity, fire, sun and air through the medicine lasting hundred years life restore him for hundred autumns.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६-९−व्याख्याताः-अ० ३।११।१-४ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ৬-১০-রোগনাশনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বর্ধমানঃ+ত্বম্) বৃদ্ধি প্রাপ্ত হয়ে তুমি (শতম্ শরদঃ) শত শরদ্ ঋতু পর্যন্ত (শতম্ হেমন্তান্) শত শীত ঋতু পর্যন্ত (উ) এবং (শতম্ বসন্তান্) শত বসন্ত ঋতু পর্যন্ত (জীব) জীবিত থাকো। (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্যবান্ (অগ্নিঃ) তেজস্বী বিদ্বান্, (সবিতা) সকলকে চালনা কারী/সকলের পরিচালক, (বৃহস্পতিঃ+অহং জীবঃ) মহান-মহান এর রক্ষক আমি (শতম্) অনেক প্রকারে (তে) তোমার জন্য (শতায়ুষা) শত জীবন শক্তিসম্পন্ন (হবিষা) আত্মদান বা ভক্তি দ্বারা (এনম্) এই [আত্মা] কে (আ অহার্ষম্) উদ্গম করেছি॥৯॥

    भावार्थ

    মনুষ্য উচিত রীতিতে বর্ষা, শীত ও উষ্ণ ঋতু সহ্য করে অনেক প্রকার মন্ত্রোক্ত বিধির ওপর বিদ্যাদিবল দ্বারা শক্তিশালী হয়ে জীবিকা উপার্জন করে আত্মার উন্নতি করে ॥৯॥

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    भाषार्थ

    (বর্ধমানঃ) বৃদ্ধি প্রাপ্ত তুমি (শতং শরদঃ জীব) শত শরৎ-ঋতু পর্যন্ত জীবিত থাকো, (শতং হেমন্তান্) শত হেমন্ত ঋতু পর্যন্ত, (উ শতং বসন্তান্) এবং শত বসন্ত ঋতু পর্যন্ত জীবিত থাকো। (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর, (অগ্নিঃ) যজ্ঞিয়াগ্নি, (সবিতা) সূর্য, (বৃহস্পতিঃ) বায়ু তোমাকে শত বর্ষ পর্যন্ত জীবিত রাখুক। আমি চিকিৎসক (শতায়ুষা হবিষা) শত বর্ষ পর্যন্ত জীবিত রাখতে সহায়ক হবি দ্বারা (এনম্) এই রোগীকে (আহার্ষম্) মৃত্যু থেকে ছিনিয়ে এনেছি।

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