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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 96/ मन्त्र 15
    ऋषिः - रक्षोहाः देवता - गर्भसंस्रावप्रायश्चित्तम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९६
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    यस्त्वा॒ भ्राता॒ पति॑र्भू॒त्वा जा॒रो भू॒त्वा नि॒पद्य॑ते। प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । त्वा॒ । भ्राता॑ । पति॑: । भू॒त्वा । जा॒र: । भू॒त्वा । नि॒पद्य॑ते ॥ प्र॒ऽजाम् । य: । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥९६.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वा भ्राता पतिर्भूत्वा जारो भूत्वा निपद्यते। प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । त्वा । भ्राता । पति: । भूत्वा । जार: । भूत्वा । निपद्यते ॥ प्रऽजाम् । य: । ते । जिघांसति । तम् । इत: । नाशयामसि ॥९६.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 96; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गर्भरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे स्त्री !] (यः) जो कोई (जारः) व्यभिचारी (भ्राता) भाई (भूत्वा) होकर [अथवा] (पतिः) पति (भूत्वा) होकर (त्वा) तेरे पास (निपद्यते) आ जावे, [अथवा] (यः) जो कोई [दुष्ट] (ते) तेरे (प्रजाम्) सन्तान को (जिघांसति) मारना चाहे, (तम्) उसको (इतः) यहाँ से (नाशयामसि) हम नाश करें ॥१॥

    भावार्थ

    जो कोई दुराचारी जन भाई वा पति के समान बनकर घर में आकर उपद्रव करे, उसका नाश करना चाहिये ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(यः) दुराचारी (त्वा) त्वाम् (भ्राता) भ्रातृरूपः (पतिः) भर्तृरूपः (भूत्वा) (जारः) व्यभिचारी (भूत्वा) (निपद्यते) अभिगच्छति (प्रजाम्) सन्तानम् (यः) दुराचारी (ते) तव (जिघांसति) हन्तुमिच्छति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    बालक की गर्भ-स्थिति में संयम का महत्त्व

    पदार्थ

    १. हे नारि! (यः) = जो (भ्राता) = भरण करनेवाल (पति: भूत्वा) = पति बनकर (त्वा) = गर्भस्थ बालकवाली तुझे (निपद्यते) = भोग के लिए प्राप्त होता है अथवा (जार:) = तेरी शक्तियों को जीर्ण करनेवाला (भूत्वा) = होकर तुझे प्राप्त होता है और इसप्रकार (यः) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = गर्भस्थ सन्तति को (जिघांसति) = मारने की कामनावाला होता है, (तम्) = उसको हम (इत:) = यहाँ से (नाशायामसि) = दूर करते हैं, अर्थात् ऐसी व्यवस्था करते हैं कि तुझ गर्मिणि के साथ भोगवृत्ति से कोई भी बर्ताव करनेवाला न हो। २. गर्भिणि स्त्री के पति का यह कर्तव्य है कि बच्चे के गर्भस्थ होने के समय वह 'भ्राता' ही बना रहे। उस समय भोग द्वारा स्त्री की शक्तियों को जीर्ण करनेवाला 'जार' न बने।

    भावार्थ

    बालक के गर्भस्थ होने पर पति 'भ्राता' के समान वर्ते। उस समय पति के रूप में वर्तना 'जारवृत्ति' है।

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    भाषार्थ

    हे स्त्री! (यः) जो (जारः) व्यभिचारी पुरुष, (भ्राता भूत्वा) धोखे का भाई बन कर, और (पतिः भूत्वा) धोखे का पति बन कर, (त्वा निपद्यते) तुझ पर बलात्कार करता है, और इस प्रकार (यः) जो (ते) तेरी (प्रजाम्) गर्भस्थ-सन्तान का (जिघांसति) गर्भपातरूप में हनन करता है, (तम्) उसे (इतः) इस जीवन से (नाशयामसि) हम राज्याधिकारी विनष्ट कर देते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Whatever evil and afflication comes as brother, i.e., genetically, or as husband, i.e., through conjugal relationship, or otherwise through love and passion, and hurts, damages or destroys your progeny, we destroy and eliminate from here.

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    Translation

    I, the physician exterminate from here that germ of disease which rests with you in borrowed form of brother, lover and husband and destroys your progeny.

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    Translation

    I, the physician exterminate from here that germ of disease which rests with you in borrowed form of brother, lover and husband and destroys your progeny.

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    Translation

    O lady, we will exterminate from this world, the wicked person, who enjoys thee, making thee unconscious or enticing away through sleep or darkness, and kills thy progeny.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(यः) दुराचारी (त्वा) त्वाम् (भ्राता) भ्रातृरूपः (पतिः) भर्तृरूपः (भूत्वा) (जारः) व्यभिचारी (भूत्वा) (निपद्यते) अभिगच्छति (प्रजाम्) सन्तानम् (यः) दुराचारी (ते) तव (जिघांसति) हन्तुमिच्छति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্র ১১-১৬-গর্ভরক্ষোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে স্ত্রী !] (যঃ) যদি কোনো (জারঃ) ব্যভিচারী (ভ্রাতা) ভ্রাতার সমান (ভূত্বা) হয়ে [অথবা] (পতিঃ) পতির সমান (ভূত্বা) হয়ে (ত্বা) তোমার নিকট (নিপদ্যতে) আসে, [অথবা] (যঃ) যদি কেউ [দুষ্ট] (তে) তোমার (প্রজাম্) সন্তানকে (জিঘাংসতি) হত্যা করতে চায়, তবে (তম্) তাকে (ইতঃ) এখান থেকে (নাশয়ামসি) আমরা বিনাশ করি॥১৫॥

    भावार्थ

    কোনো দুরাচারী ভ্রাতা বা পতি সেজে, ঘরে এসে উপদ্রব করলে, তাঁর বিনাশ করা উচিত ॥১৫॥

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    भाषार्थ

    হে স্ত্রী! (যঃ) যে (জারঃ) ব্যভিচারী পুরুষ, (ভ্রাতা ভূত্বা) মিথ্যা ভাই হয়ে, এবং (পতিঃ ভূত্বা) মিথ্যার পতি হয়ে, (ত্বা নিপদ্যতে) তোমার ওপর নির্যাতন করে, এবং এইভাবে (যঃ) যে (তে) তোমার (প্রজাম্) গর্ভস্থ-সন্তানের (জিঘাংসতি) গর্ভপাত দ্বারা হনন করতে চায়, বা হনন করে, (তম্) তাঁকে (ইতঃ) এই জীবন থেকে (নাশয়ামসি) আমরা রাজ্যাধিকারী বিনষ্ট করি।

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