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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    अ॒यं मे॑ वर॒ण उर॑सि॒ राजा॑ दे॒वो वन॒स्पतिः॑। स मे॒ शत्रू॒न्वि बा॑धता॒मिन्द्रो॒ दस्यू॑नि॒वासु॑रान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । मे॒ । व॒र॒ण: । उर॑सि । राजा॑ । दे॒व: । वन॒स्पति॑: । स: । मे॒ । शत्रू॑न् । वि । बा॒ध॒ता॒म् । इन्द्र॑: । दस्यू॑न्ऽइव । असु॑रान् ॥३.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं मे वरण उरसि राजा देवो वनस्पतिः। स मे शत्रून्वि बाधतामिन्द्रो दस्यूनिवासुरान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । मे । वरण: । उरसि । राजा । देव: । वनस्पति: । स: । मे । शत्रून् । वि । बाधताम् । इन्द्र: । दस्यून्ऽइव । असुरान् ॥३.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (राजा) राजा, (देवः) दिव्य गुणवाला (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक (वरणः) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] (मे) मेरे (उरसि) हृदय में है। (सः) वह (मे) मेरे (शत्रून्) शत्रुओं को (वि बाधताम्) हटा देवे, (इव) जैसे (इन्द्रः) इन्द्र [बड़ा ऐश्वर्यवान् पुरुष] (असुरान्) सज्जनों के विरोधी (दस्यून्) डाकुओं को [हटाता है] ॥११॥

    भावार्थ

    विद्वान् मनुष्य परमात्मा में श्रद्धा करके आत्मा और शरीर की उन्नति करता हुआ प्रतापी शूरों के समान शत्रुओं का नाश करे ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(उरसि) हृदये (राजा) ऐश्वर्यवान् (शत्रून्) अरीन् (वि) विशेषेण (बाधताम्) निवारयतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (दस्यून्) चौरान् महासाहसिकान् (इव) यथा (असुरान्) सज्जनविरोधकान् ॥

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    विषय

    राजा, देवः, वनस्पतिः

    पदार्थ

    १. (अयम्) = यह (मे) = मेरा (वरण:) = रोग एवं वासनारूप शत्रुओं का निवारक वीर्यमणि (राजा) = मेरे जीवन को दीस करनेवाला है, (देव:) = रोगों को जीतने की कामनावाला है। (वनस्पतिः)= संभजनीय तत्त्वों का रक्षक है। (सा) = वह मणि (उरसि) = छाती में उत्पन्न हो जानेवाले (मे शत्रुन्) = मेरे विनाशक रोगरूप शत्रुओं को इसप्रकार (विबाधताम्) = नष्ट करे (इव) = जैसे (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (दस्यून्) = [दसु उपक्षये] विनाशक (असुरान्) = आसुरभावों को विनष्ट करता है।

    भावार्थ

    वीर्यमणि का रक्षण सब हृद्रोगों का बाधन करनेवाला है।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह (वरणः) शत्रुनिवारक सेनाध्यक्ष (मे) मेरे (उरसि) हृदय में [बस गया है], (वनस्पतिः देवः) वनों की रक्षा करने वाला यह देव (राजा) वस्तुतः राष्ट्र का राजा है। (सः) वह (मे शत्रून्) मेरे शत्रुओं को (वि बाधताम्) विशेषरूप में विलोडित करे (इव) जैसे कि (इन्द्रः) सम्राट् (दस्यून्, असुरान्) दस्युओं और असुरों को विलोडित करता है।

    टिप्पणी

    [बाधताम् = बाधृ विलोडने (भ्वादिः। विलोडन = कम्पाना। इन्द्रः = सम्राट् (यजु० ८।३७)। दस्यून् = दसु उपक्षये (दिवादिः), क्षय करने वाले अत्याचारी डाकू आदि। असुरान् (मन्त्र १०)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    May this divine refulgent Varana-mani, Vanaspati, lord of light and nature reigning in the heart and soul ward off my enemies like Indra throwing off the wicked and demonic powers of nature and humanity.

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    Translation

    This protective blessing, shining, divine and the lord of forest is on my breast. May it harass my enemies, as the resplendent army-chief (vaja devah) harasses the robbers and the destroyers of life.

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    Translation

    This Varana is on my breast, it is very bright and efficacious, mighty plant. Let this afflict my inimical disase as Indra, the sun quells clouds which do not release water.

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    Translation

    This supreme, divine Vedic knowledge, affording shelter like a tree, resides in my breast. Let it afflict my foeman as a king quells fiends and profligates.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(उरसि) हृदये (राजा) ऐश्वर्यवान् (शत्रून्) अरीन् (वि) विशेषेण (बाधताम्) निवारयतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (दस्यून्) चौरान् महासाहसिकान् (इव) यथा (असुरान्) सज्जनविरोधकान् ॥

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