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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    व॑र॒णेन॒ प्रव्य॑थिता॒ भ्रातृ॑व्या मे॒ सब॑न्धवः। अ॒सूर्तं॒ रजो॒ अप्य॑गु॒स्ते य॑न्त्वध॒मं तमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒र॒णेन॑ । प्रऽव्य॑थिता: । भ्रातृ॑व्या: । मे॒ । सऽब॑न्धव: । अ॒सूर्त॑म् । रज॑: । अपि॑ । अ॒गु॒: । ते । य॒न्तु॒ । अ॒ध॒मम् । तम॑: ॥३.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वरणेन प्रव्यथिता भ्रातृव्या मे सबन्धवः। असूर्तं रजो अप्यगुस्ते यन्त्वधमं तमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वरणेन । प्रऽव्यथिता: । भ्रातृव्या: । मे । सऽबन्धव: । असूर्तम् । रज: । अपि । अगु: । ते । यन्तु । अधमम् । तम: ॥३.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (वरणेन) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] द्वारा (प्रव्यथिताः) पीड़ित किये गये (मे) मेरे (भ्रातृत्याः) वैरी लोग (सबन्धवः) अपने बन्धुओं सहित (असूर्तम्) न जाने योग्य (रजः) लोक [देश] में (अपि) ही (अगुः) गये हैं। (ते) वे लोग (अधमम्) अति नीचे (तमः) अन्धकार में (यन्तु) जावें ॥९॥

    भावार्थ

    सर्वनियन्ता परमेश्वर द्वारा और बलवान् राजा की नीति से दुष्ट लोग सदा बन्दीगृह आदि भोगते रहे हैं और सदा भोगते रहें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(वरणेन) म० १। श्रेष्ठेन (प्रव्यथिताः) अतिपीडिताः (भ्रातृव्याः) शत्रवः (मे) मम (सबन्धवः) बान्धवैः सहिताः (असूर्तम्) नसत्तनिषत्तानुत्त०। पा० ८।२।६१। नञ्+सृ गतौ-क्त, ऋकारस्य उत्वम्। असरणीयमगन्तव्यम् (रजः) लोकम् (अपि) एव (अगुः) प्रापुः (ते) शत्रवः (यन्तु) गच्छन्तु (अधमम्) अतिनीचम् (तमः) अन्धकारम् ॥

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    विषय

    सबन्धवः भ्रातृव्या:

    पदार्थ

    १. (वरणेन) = शरीर में सुरक्षित शत्रुविनाशक वीर्यरूप वरणमणि से (प्रव्यथिता) = भय-संचलित हुए-हुए (मे) = मेरे (भ्रातृव्या:) = शत्रु (सबन्धवः) = अपने बन्धुओंसहित-सब रोग अपने उपद्रवोसहित, (असूर्तम्) = गतिशुन्य (रज:) = लोक की (अपि अगु:) = ओर गये हैं। वीर्यरक्षण द्वारा सब रोग उपद्रवोंसहित जड़ीभूत हो गये हैं। (ते अधर्म तमः यन्तु) = वे अधम तम को प्राप्त हों-घने अन्धकार में विलीन हो जाएँ।

    भावार्थ

    वीर्यरूप वरणमणि के रक्षण से शरीर में आ जानेवाले रोग अपने उपद्रवोसहित जड़ीभूत होकर विलीन हो जाएँ।

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    भाषार्थ

    (वरणेन) शत्रूनिवारक सेनाध्यक्ष द्वारा (प्रव्यथिताः) उग्र व्यथा को प्राप्त हुई (मे) मेरे (भ्रातृव्याः) भाई की सन्तानें, (सबन्धवः) बन्धुओं सहित, (असूर्तम्) हम द्वारा अप्रेरित, अशासित (रजः) प्रदेशों में (अपि अगुः) चली गई हैं, छिप गई हैं। (ते) वे (अधमम् तमः) अधम तम अर्थात् अन्धकार को (यन्तु) प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में सेनाध्यक्ष का वर्णन है। असुर और देव दोनों भाई हैं। "द्वया ह प्राजापत्या देवाश्चासुराश्च" (वृहदा० उप० १।३।१)। असुर निज भोगः प्रवृत्ति के कारण दूषित हो गए। परिणामतः उन की सन्ताने भी दुष्प्रवृत्तियों वाली हो गईं। ये सन्तानें हैं, भ्रातृव्य अर्थात् भाई के पुत्र आदि। इन के अन्य सम्बन्धी भी, अर्थात् इन के साथ जिन अन्यों ने वैवाहिक सम्बन्ध किये हैं वे हैं "सबन्धवः"। वे भी दूषितप्रकृति के सम्भावित हैं, "यतः समानशीलव्यसनेषु सख्यम्"। ऐसे व्यक्तियों को सेनाध्यक्ष उग्र व्यथाओं में डाले, ऐसा वैदिकविधान मन्त्र द्वारा द्योतित होता है। तथा उन्हें तमः प्रधान स्थानों में बन्द करदे, यह वेदोक्त दण्ड१ है। असूर्तम् = अ + सू (प्रेरणे, तुदादिः) + क्त; रकारस्यागमः, अर्थात् हम शासकों द्वारा अप्रेरित, अशासित प्रदेश। रजः = "लोका रजांस्युच्यन्ते" (निरुक्त ४।३।१९)। अप्यगुः= अपि + अगुः][१. अपराधियों की अनुपस्थिति में भी यह दण्ड है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    Let my adversaries along with their kin, distressed and broken by Varana, gone already to unknown regions of dust, fall further to the lowest dark of darkness.

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    Translation

    Afflicted by the protective blessing, my hostile cousins along, with their kinsman have gone to the lightless region. May l they go to the vilest darkness (andham-tamah).

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    Translation

    Led my inimical diseases which are accompanied by other comlications crushed by this Varana plant reach to that region which is devoid of light and to deepest darkness.

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    Translation

    Eclipsed by Vedic knowledge, let my rivals along with their relatives, pass to the low sentiment of anger devoid of light, to deepest darkness let them go.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(वरणेन) म० १। श्रेष्ठेन (प्रव्यथिताः) अतिपीडिताः (भ्रातृव्याः) शत्रवः (मे) मम (सबन्धवः) बान्धवैः सहिताः (असूर्तम्) नसत्तनिषत्तानुत्त०। पा० ८।२।६१। नञ्+सृ गतौ-क्त, ऋकारस्य उत्वम्। असरणीयमगन्तव्यम् (रजः) लोकम् (अपि) एव (अगुः) प्रापुः (ते) शत्रवः (यन्तु) गच्छन्तु (अधमम्) अतिनीचम् (तमः) अन्धकारम् ॥

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