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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    यथा॒ वात॑श्चा॒ग्निश्च॑ वृ॒क्षान्प्सा॒तो वन॒स्पती॑न्। ए॒वा स॒पत्ना॑न्मे प्साहि॒ पूर्वा॑ञ्जा॒ताँ उ॒ताप॑रान्वर॒णस्त्वा॒भि र॑क्षतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । वात॑: । च॒ । अ॒ग्नि: । च॒ । वृ॒क्षान् । प्सा॒त: । वन॒स्पती॑न् । ए॒व । स॒ऽपत्ना॑न् । मे॒ । प्सा॒हि॒ । पूर्वा॑न् । जा॒तान् । उ॒त । अप॑रान् । व॒र॒ण: । त्वा॒ । अ॒भि । र॒क्ष॒तु॒ ॥३.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा वातश्चाग्निश्च वृक्षान्प्सातो वनस्पतीन्। एवा सपत्नान्मे प्साहि पूर्वाञ्जाताँ उतापरान्वरणस्त्वाभि रक्षतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । वात: । च । अग्नि: । च । वृक्षान् । प्सात: । वनस्पतीन् । एव । सऽपत्नान् । मे । प्साहि । पूर्वान् । जातान् । उत । अपरान् । वरण: । त्वा । अभि । रक्षतु ॥३.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) वायु (च च) और (अग्निः) अग्नि (वृक्षान्) वृक्षों और (वनस्पतीन्) वनस्पतियों को (प्सातः) खाते हैं, (एव) वैसे ही (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (प्साहि) खा ले, (पूर्वान्) पहिले.... म० १३ ॥१४॥

    भावार्थ

    मन्त्र १३ के समान है ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(प्सातः) भक्षतः (प्साहि) भक्ष। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    रोगरूप शत्रुओं का भञ्जन

    पदार्थ

    १. हे वरणमणे । (यथा) = जैसे (वातः) = तेज वायु (वनस्पतीन्) = बिना फूल के फल देनेवाले पीपल आदि को तथा (वृक्षान्) = अन्य वृक्षों को (ओजसा भनक्ति) = शक्ति से तोड़ डालता है, (एव) = इसी प्रकार (मे) = मेरे (पूर्वान् जातान्) = पहले पैदा हुए-हुए (उत्त) = और (अपरान्) = पीछे आनेवाले (सपत्नान्) = भङ्ग्धि रोगरूप शत्रुओं को विदीर्ण कर दे। २. (यथा) = जैसे  (वता: च अग्नि च) = वायु और अग्नि (वनस्पतीन्) = वनस्पतियों को व (वृक्षान्) = वृक्षों को (प्सातः) = खा जाते हैं, एक-उसी प्रकार (मे) = मेरे (पूर्वान् जातान् उत अपरान्) = पहले पैदा हुए-हुए और पिछले (सपत्नान्) = शत्रुओं को खा डाल। ३. (यथा) = जैसे (वातेन) = तीन वायु से (प्रक्षीणा:) = पत्तों आदि के गिर जाने से क्षीण हुए (न्यर्पिता:) = नीचे अर्पित किये गये-गिराये गये (वृक्षाः) = वृक्ष (शेरे) = भूमि पर लेट जाते हैं-गिर जाते हैं, (एव) = इसी प्रकार है वरणमणे! (त्वम्) = तू (मम) = मेरे (सपत्नान्) = रोगरूप शत्रुओं को (प्रक्षिणीहि) = क्षीण कर दे और उन्हें (न्यर्पय) = नीचे दबा देनेवाला हो। तेरे द्वारा मैं रोगों को पादाक्रान्त कर पाऊँ। ४. प्रभु अपने आराधक से कहते हैं कि (वरण:) = यह वरणमणि (त्वा अभि रक्षतु) = तेरे शरीर व मन दोनों क्षेत्रों को रक्षित करनेवाली हो। शरीर में यह तुझे रोगों से बचानेवाली हो तथा मन में वासनाओं से रक्षित करनेवाली हो।

    भावार्थ

    वरणमणि रोग व वासनारूप शत्रुओं को इसप्रकार विनष्ट कर दे जैसेकि तीववायु वृक्षों को। जिस प्रकार जंगल की आग वनस्पतियों को खा जाती है, इसी प्रकार यह वरणमणि रोगों को खा जाए। जैसे तीन वायु से वृक्ष गिर जाते हैं, उसी प्रकार इस वरणमणि द्वारा मेरे रोग समास हो जाएँ।

     

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    भाषार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (वातः च अग्निः च) प्रबल वायु और अग्नि (वनस्पतीन् वृक्षान्) वन के पति अर्थात् बड़े-बड़े वृक्षों का (प्सातः) भक्षण करते हैं, उन्हें विनष्ट करते हैं, (एवा) इसी प्रकार [हे सेना के सर्वोच्चाधिकारिन्] तू (पूर्वान् जातान्) पूर्वकाल के, (उत) और (अपरान्) उन से भिन्न अवरकाल के (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (भङ्ग्धि) तोड़-फोड़ दे। हे राजन् ! (त्वा) तुझे (वरणः) शत्रुनिवारक-सेनाध्यक्ष (अभि रक्षतु) सब ओर से सुरक्षित करे।

    टिप्पणी

    [वायु के प्रबल प्रवाह में वनाग्नि के अधिक प्रचण्ड हो जाने से मानो वायु और अग्नि दोनों वनों का भक्षण करते हैं। अभिप्राय पूर्ववत् (१३)। प्सातः प्सा भक्षणे (अदादिः)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    Just as wind and fire break down and devour trees of the forest, so O Ruler of the commonwealth, crush my enemies whether they are old or newly arisen. And may Varana, commander of the forces of law and defence, guard you against external and internal dangers.

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    Translation

    Just as the wind and the fire destroy the trees, the lords of forest even so may destroy my rivals, born before, and also the latter born. May the protective blessing guard you well.

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    Translation

    As fire and wind devour the trees and big trees of wood so this plant my davour inemical diseases born before or born afterwards. Let this mighty plant protect you, O man!

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    Translation

    As fire and the wind devour the trees, the lords of the wood; even so devour my rivals, O king, born before me and born after. Let the Vedic knowledge protect thee well.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(प्सातः) भक्षतः (प्साहि) भक्ष। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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