अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
0
व॑र॒णो वा॑रयाता अ॒यं दे॒वो वन॒स्पतिः॑। यक्ष्मो॒ यो अ॒स्मिन्नावि॑ष्ट॒स्तमु॑ दे॒वा अ॑वीवरन् ॥
स्वर सहित पद पाठव॒र॒ण: । वा॒र॒या॒तै॒ । अ॒यम् । दे॒व: । वन॒स्पति॑: । यक्ष्म॑: । य: । अ॒स्मिन् ।आऽवि॑ष्ट: । तम् । ऊं॒ इति॑ । दे॒वा: । अ॒वी॒व॒र॒न् ॥३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
वरणो वारयाता अयं देवो वनस्पतिः। यक्ष्मो यो अस्मिन्नाविष्टस्तमु देवा अवीवरन् ॥
स्वर रहित पद पाठवरण: । वारयातै । अयम् । देव: । वनस्पति: । यक्ष्म: । य: । अस्मिन् ।आऽविष्ट: । तम् । ऊं इति । देवा: । अवीवरन् ॥३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।
पदार्थ
(अयम्) यह (देवः) दिव्यगुणवाला (वनस्पतिः) सेवनीय गुणों का रक्षक (वरणः) वरण [वैदिक बोध वा वरना औषध] [उस राजरोग को] (वारयातै) हटावे (यः) जो (यक्ष्मः) राजरोग (अस्मिन्) इस [पुरुष] में (आविष्टः) प्रवेश कर गया है, (तम्) उस को (उ) निश्चय करके (देवाः) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों ने (अवीवरन्) हटाया है ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान प्रयत्न करके आत्मिक और शारीरिक रोगों का नाश करे ॥५॥ यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व० ६।८५।१ ॥
टिप्पणी
५−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अथर्व० ६।८५।१ ॥
विषय
देवः वनस्पतिः
पदार्थ
१. (वरण:) = ये वीर्यरूप वरणमणि (वारयातै) = सब रोगों का निवारण करती है। (अयं देव:) = यह रोगों को जीतने की कामनावाली है। (वनस्पति:) = यह सेवनीय वस्तुओं की रक्षक है [वन् संभक्ती]।२. (य:) = जो (यक्ष्म:) = रोग (अस्मिन् आविष्ट:) = इस शरीर में प्रविष्ट हो गया है, (तम् उ) = उसे निश्चय से (देवा:) = विजिगीषु लोग [दिव् विजिगीषायाम्] (अवीवरन्) = इसके द्वारा रोकते हैं।
भावार्थ
वीर्यमणि रोगों का निवारण करने से 'वरण' है। यह रोगों को जीतने की कामनावाली होने से 'देव' है। संभजनीय तत्त्वों के रक्षण से यह 'बनस्पति' है।
भाषार्थ
(अयम्) यह (देवः) दिव्यगुणों वाला (वरणः वनस्पतिः) वरण-नामक वनस्पति, (वारयातै) तुझे [यक्ष्म रोग सें] निवारित करे। (यः) जो (यक्ष्मः) यक्ष्म रोग (अस्मिन्) इस रोगी में (आविष्टः) प्रविष्ट हो गया था (तम्) उसे (देवाः) दिव्यगुणी वैद्यों ने (अवीवरन्) निवारित कर दिया है। इस प्रकार मन्त्र में औषध और वैद्य दोनों का वर्णन है।
टिप्पणी
[मन्त्र में मुख्यरूप से यक्ष्मरोग तथा वरण-ओषधि का वर्णन है। वरण नामक सेनाध्यक्ष का भी वर्णन गौणरूप में हुआ है। सेनाध्यक्ष पक्ष में यक्ष्म रोग है पराधीनता। और वनस्पति है वनों का भी स्वामी सेनाध्यक्ष, ताकि वह राष्ट्र के वनों में छिपे शत्रुओं को पकड़ सके। "अस्मिन्" का अभिप्राय है इस स्वकीय-राष्ट्र में। देवः= विजिगीषुसेनाध्यक्ष। देवाः = विजिगीषु निज सैनिक। वनस्पतिः = वनानां पाताः पालयिता वा।]
इंग्लिश (4)
Subject
Warding off Rival Adversaries
Meaning
This Varana-mani of masterly character is divine, a protective against danger and disease. The cancerous consumption that has entered, infects and afflicts this patient (person or people), noble specialists and strategists will ward off.
Translation
This protective divine plant is a warder off the troubles. The enlightened ones have driven away the wasting disease, which had entered into this person.
Translation
This varana plant is the mighty medicinal herb and is a guard against diseases. Let the learned physicians drive away the consumption which has made its entry in this man.
Translation
Guard against ill of varied kind is this divine Vedic knowledge, that affords shelter like a tree. The learned take shelter under the Adorable, Mighty soul, that exists in man.
Footnote
See Atharva, 6-85-1.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अथर्व० ६।८५।१ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal