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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    स्वप्नं॑ सु॒प्त्वा यदि॒ पश्या॑सि पा॒पं मृ॒गः सृ॒तिं यति॒ धावा॒दजु॑ष्टाम्। प॑रिक्ष॒वाच्छ॒कुनेः॑ पापवा॒दाद॒यं म॒णिर्व॑र॒णो वा॑रयिष्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वप्न॑म् । सु॒प्त्वा । यदि॑ । पश्या॑सि । पा॒पम् । मृ॒ग: । सृ॒तिम् । यति॑ । धावा॑त् । अजु॑ष्टाम् । प॒रि॒ऽक्ष॒वात् । श॒कुने॑: । पा॒प॒ऽवा॒दात् । अ॒यम् । म॒णि: । व॒र॒ण: । वा॒र॒यि॒ष्य॒ते॒ ॥३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वप्नं सुप्त्वा यदि पश्यासि पापं मृगः सृतिं यति धावादजुष्टाम्। परिक्षवाच्छकुनेः पापवादादयं मणिर्वरणो वारयिष्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वप्नम् । सुप्त्वा । यदि । पश्यासि । पापम् । मृग: । सृतिम् । यति । धावात् । अजुष्टाम् । परिऽक्षवात् । शकुने: । पापऽवादात् । अयम् । मणि: । वरण: । वारयिष्यते ॥३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो तू (सुप्त्वा) सोकर (पापम्) बुरे (स्वप्नम्) स्वप्न को (पश्यासि) देखे, (यति=यदि) जो (मृगः) वनैला पशु (अजुष्टाम्) अप्रिय (सृतिम्) मार्ग में (धावात्) दौड़े। (शकुनेः) पक्षी [गिद्ध वा चील्ह] के (परिक्षवात्) नाक के फुरफुराहट से और (पापवादात्) [मुख के] कठोर शब्द से (अयम्) यह (मणिः) प्रशंसनीय (वरणः) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] (वारयिष्यते) रोकेगा ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य आत्मिक और शारीरिक बल बढ़ाकर कुस्वप्न आदि रोगों और हिंसक पशुओं और पक्षियों की दुष्टता से निर्भय रहें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(स्वप्नम्) सुप्तस्य मानसिकवृत्तिभेदम् (सुप्त्वा) शयित्वा (यदि) सम्भावनायाम् (पश्यासि) अवलोकेथाः (पापम्) दुःखप्रदम् (मृगः) अरण्यपशुः (सृतिम्) मार्गम् (यति) दस्य तः। यदि (धावात्) शीघ्रं गच्छेत् (अजुष्टाम्) अप्रियाम् (परिक्षवात्) टुक्षु नासाशब्दे-अप्। नासातो वायुनिःसरणजन्यशब्दात् (शकुनेः) पक्षिणः। गृध्रचिल्हादेः (पापवादात्) दुष्टशब्दात्। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

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    विषय

    अशुभ स्वप्न व अपशकुन

    पदार्थ

    १. (स्वप्नं सुप्त्वा) = नींद में जाकर [सोकर] यदि (पापं पश्यासि) = यदि तू अशुभ को देखता है, और (मृगः) = कोई आरण्य पशु (यति) = जितना (अजुष्टाम् सतिं धावात्) = अप्रीतिकर मार्गों में गति करे-रास्ता काट जाए तो इन अपशुकनों से तथा (शकुने:) = पक्षी के (परिक्षवात्) = नथुनों के फरफराहट से व (पापवादात्) = अमङ्गल शब्दों से (अयम्) = यह (वरण: मणि:) = वीर्यरूप वरणमणि (वारयिष्यते) = तुझे बचाएगा। २. यह बीर्यरूप मणि शरीर में सुरक्षित होने पर अशुभ स्वप्नों से बचाती है। साथ ही यह हृदय को दृढ़ करके अपशकुनों का हृदय पर भयजनक प्रभाव नहीं पड़ने देती।

    भावार्थ

    वीर्यमणि के शरीर में सुरक्षित होने पर शरीर के स्वस्थ होने से अशुभ स्वप्न नहीं आते, न ही मन के दृढ़ होने से पशु-पक्षियों के शब्दों व गतियों में अपशकुन का भय होता है।

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    भाषार्थ

    (स्वप्नम् सुप्त्वा) सोने से उठ कर (यदि) यदि (पापम्, पक्ष्यासि) पाप अर्थात् बुरा दृश्य तू देखे कि (यति = यदि) यदि (मृगः) छिद्रान्वेषी शत्रुगुप्तचर (अजुष्टाम्) अप्रिय या उस द्वारा असेवित (सृतिम्) मार्ग में (धावात्) दौड़-धूप कर रहा है, या मृगरूपी शत्रु दौड़-धूप कर रहा है, तो उस दृश्य से; (परिक्षवात्) यदि सब और शोर-शराबा हो रहा है, उससे (शकुनेः) या शक्तिशाली शत्रु के (पापवादात्) पापमय कथनों से (अयं, वरणः, मणिः) यह शत्रुनिवारक श्रेष्ठ सेनाध्यक्ष (वारयिष्यते) उस सब का निवारण कर देगा।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में वरणनामक सेनाध्यक्ष का मुख्यरूप में वर्णन है। "स्वप्नंसुप्त्वा" में "क्त्वा" प्रत्यय द्वारा यह अर्थ होता है कि "सोकर उठने पर" अर्थात् जागने पर, न कि स्वप्नावस्था में। राजा या सेना का सर्वोच्चाधिकारी जागने पर यदि मन्त्रोक्त दृश्यों को देखता है तो उन के निवारण के लिये वह यत्नवान् होता है। "मृग" का अभिप्राय है "छिद्रान्वेषी गुप्तचर" "मृग" अन्वेषणे" (चुरादिः), अथवा 'मृगः स मृगयुस्त्वम्" (अथर्व० १०।१।२६) अर्थात् शत्रु का सेनाध्यक्ष "मृग" है, और तू निज सेनाध्यक्ष "मृगयु" है, मृग का शिकारी है। पापमय दृश्य निम्नलिखित मन्त्र में दर्शाए हैं, (१) शत्रुपक्ष के गुप्तचरों का राष्ट्र में घुस कर राष्ट्र के मार्गों में दौड़-धूप करना (२) उन द्वारा राष्ट्र या राजधानी में सब ओर शोर मचाना। परिक्षव= परि (सब ओर) + क्षव (टक्षु शब्दे, अदादिः)। (३) पापवादात् = पापकथन, अर्थात् राजा या सेनाधिकारी की निन्दा और अपमानजनक शब्दों का कथन करना। मन्त्र में यत्किंचित् वरण-औषध का भी निर्देश किया है। "परिक्षव" का अर्थ है "सब ओर हो रही "छींकें", तथा "पापवादात्" का अर्थ है कण्ठ की बुरी आबाज, खांसना। ये अवस्थाएं जुकाम में हो जाती है। वरण-ओषधि के सेवन से ये अवस्थाएं निवारित हो सकती हैं। पैप्पलाद शाखा में "यति" के स्थान में "यदि" पाठ है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    If having slept you dream something evil and sinful, or if a surreptitious enemy stealthily prowls around by uncommon ways, or from the voice of the plotting enemy you hear something evil and foreboding, this Varana-mani will protect you against all that.

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    Translation

    If, while sleeping, you see an evil dream; if a wild animal Stalks you ominously on the way from that, and from sneezing, and from the evil cry of a bird, this protective blessing will shield you.

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    Translation

    If in your sleep you see bad dream, O man! if the beast causes intolerable bad nausea this Varana plant will guard you and deliver you from sneeze and the misery of which the bird’s (Owl’s) speech is a fore-runner,

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    Translation

    I in thy sleep thou feel an evil dream, or see the deer running in unpleasant paths, this excellent Vedic knowledge will guard thee from the sneeze and the bird’s ill-omened words.

    Footnote

    Man should develop his physical and spiritual force to be free from bad dreams and the violence of cattle and birds. Bird: Vulture.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(स्वप्नम्) सुप्तस्य मानसिकवृत्तिभेदम् (सुप्त्वा) शयित्वा (यदि) सम्भावनायाम् (पश्यासि) अवलोकेथाः (पापम्) दुःखप्रदम् (मृगः) अरण्यपशुः (सृतिम्) मार्गम् (यति) दस्य तः। यदि (धावात्) शीघ्रं गच्छेत् (अजुष्टाम्) अप्रियाम् (परिक्षवात्) टुक्षु नासाशब्दे-अप्। नासातो वायुनिःसरणजन्यशब्दात् (शकुनेः) पक्षिणः। गृध्रचिल्हादेः (पापवादात्) दुष्टशब्दात्। अन्यद् व्याख्यातम् ॥

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