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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    इ॒मं बि॑भर्मि वर॒णमायु॑ष्माञ्छ॒तशा॑रदः। स मे॑ रा॒ष्ट्रं च॑ क्ष॒त्रं च॑ प॒शूनोज॑श्च मे दधत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । बि॒भ॒र्मि॒ । व॒र॒णम् । आयु॑ष्मान् । श॒तऽशा॑रद: । स: । मे॒ । रा॒ष्ट्रम् । च॒ । क्ष॒त्रम् । च॒ । प॒शून् । ओज॑: । च॒ । मे॒ । द॒ध॒त् ॥३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं बिभर्मि वरणमायुष्माञ्छतशारदः। स मे राष्ट्रं च क्षत्रं च पशूनोजश्च मे दधत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । बिभर्मि । वरणम् । आयुष्मान् । शतऽशारद: । स: । मे । राष्ट्रम् । च । क्षत्रम् । च । पशून् । ओज: । च । मे । दधत् ॥३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (आयुष्मान्) उत्तम जीवनवाला, (शतशारदः) सौ वर्ष जीवनवाला (इमम्) वरणम्) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] को (बिभर्मि) धारण करता हूँ। (सः) वह (मे) मेरे (राष्ट्रम्) राज्य (च) और (क्षत्रम्) क्षत्रिय धर्म को (च) और (पशून्) पशुओं (च) और (मे) मेरे (ओजः) बल को (दधत्) पुष्ट करे ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्य को योग्य है कि आत्मिक और शरीरिक बल द्वारा संसार की रक्षा करें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(इमम्) प्रत्यक्षम् (बिभर्मि) धरामि (वरणम्) म० १। श्रेष्ठम् (आयुष्मान्) (शतशारदः) अ० १।३५।१। शतसंवत्सरयुक्तः (सः) वरणः (मे) मम (राष्ट्रम्) राज्यम् (च) (क्षत्रम्) क्षत्रियधर्मम् (च) (पशून्) (ओजः) बलम् (च) (मे) (दधत्) पोषयेत् ॥

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    विषय

    'राष्ट्र, बलं, पशून् ओजः'

    पदार्थ

    १. (इमम्) = इस (वरणम्) = रोगादि शत्रुओं के बारक वीर्यमणि को (बिभर्मि) = मैं धारण करता हूँ, परिणामतः (आयुष्मान्)= प्रशस्त दीर्घजीवनवाला होता हूँ, (शतशारदः) = सौ वर्ष तक जीनेवाला होता हैं। (सः) = वह वीर्यरूप वरणमणि (मे) = मेरे (राष्ट्रं च क्षत्रं च) = राष्ट्र व बल को, (पशून् ओजः च) = गौ आदि पशुओं व ओज को (मे दधत्) = मेरे लिए धारण करे। 'पशु' शब्द का अर्थ अग्नि [fire] भी है। तब अर्थ इसप्रकार होगा कि अग्नितत्त्वों व बल को मेरे लिए धारण करे।

    भावार्थ

    वीर्यरूप वरणमणि का रक्षण करता हुआ मैं प्रशस्त जीवनवाला बनूं। 'राष्ट्र, बल, अग्नितत्त्व व ओज' को यह मेरे लिए धारण कराए।

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    भाषार्थ

    (इमम्) इस (वरणम्) शत्रुनिवारक सेनाध्यक्ष का (दधत्) धारणपोषण करता हुआ मैं राजा (आयुष्मान्) दीर्घ आयु वाला, (शतशारदः) सौ वर्षो का (बिभर्मि) हो गया हूं। (सः) वह सेनाध्यक्ष (मे) मेरे (राष्ट्रम् च) राष्ट्र का, (क्षत्रम् च) और क्षात्रशक्ति तथा धन सम्पत् का, (मे पशून्, ओजः च) मेरे पशुओं और ओज का (दधत्) धारण-पोषण करता है।

    टिप्पणी

    [क्षत्रं घननाम (निघं० २।१०)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    Blest with health and age for a full life of hundred years, I wear and bear with Varana-mani. May it sustain and promote my nation, the social order, national wealth and our power and honour.

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    Translation

    I put on this protective blessing, so that I may have a long life of a hundred autumns. May it bestow on me kingdom (rāstra) and ruling power (ksarta), on me cattle (pašu) and vigour (oja).

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    Translation

    I wear this Varana plant to live a long life which have the duration of hundred autumns. Let this making me healthy cause me gain vigorous strength, cattle, royalty and power.

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    Translation

    I accept the Vedic knowledge, so that it may help me in living a long life of hundred years. May it bestow on me royalty, power, cattle and vitality.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(इमम्) प्रत्यक्षम् (बिभर्मि) धरामि (वरणम्) म० १। श्रेष्ठम् (आयुष्मान्) (शतशारदः) अ० १।३५।१। शतसंवत्सरयुक्तः (सः) वरणः (मे) मम (राष्ट्रम्) राज्यम् (च) (क्षत्रम्) क्षत्रियधर्मम् (च) (पशून्) (ओजः) बलम् (च) (मे) (दधत्) पोषयेत् ॥

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