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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    यथा॒ वातो॒ वन॒स्पती॑न्वृ॒क्षान्भ॒नक्त्योज॑सा। ए॒वा स॒पत्ना॑न्मे भङ्ग्धि॒ पूर्वा॑ञ्जा॒ताँ उ॒ताप॑रान्वर॒णस्त्वा॒भि र॑क्षतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । वात॑: । वन॒स्पती॑न् । वृ॒क्षान् । भ॒नक्ति॑ । ओज॑सा । ए॒व । स॒ऽपत्ना॑न् । मे॒ । भ॒ङ्ग्धि॒ । पूर्वा॑न् । जा॒तान् । उ॒त । अप॑रान् । व॒र॒ण: । त्वा॒ । अ॒भि । र॒क्ष॒तु॒ ॥३.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा वातो वनस्पतीन्वृक्षान्भनक्त्योजसा। एवा सपत्नान्मे भङ्ग्धि पूर्वाञ्जाताँ उतापरान्वरणस्त्वाभि रक्षतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । वात: । वनस्पतीन् । वृक्षान् । भनक्ति । ओजसा । एव । सऽपत्नान् । मे । भङ्ग्धि । पूर्वान् । जातान् । उत । अपरान् । वरण: । त्वा । अभि । रक्षतु ॥३.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) वायु (वनस्पतीन्) वनस्पतियों [बिना फूल-फल देनेवाले पीपल आदि] और (वृक्षान्) वृक्षों को (ओजसा) बल से (भनक्ति) तोड़ता है, (एव) वैसे ही (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (भङ्ग्धि) तोड़ डाल, (पूर्वान्) पहिले (जातान्) उत्पन्नों (उत) और (अपरान्) पिछलों को (वरणः) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध वा वरना औषध] (त्वा) तेरी (अभि) सब ओर से (रक्षतु) रक्षा करे ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्य आत्मिक और शारीरिक बल से वायुसमान शीघ्रगामी होकर दोषों और शत्रुओं का नाश करे ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (वनस्पतीन्) पुष्पं विना जायमानफलान् अश्वत्थादीन् वृक्षान् (वृक्षान्) स्थावरयोनिविशेषान् विटपान् (भनक्ति) छिनत्ति (ओजसा) बलेन (एव) तथा (सपत्नान्) शत्रून् (मे) मम (भङ्ग्धि) भिन्धि (पूर्वान्) प्रथमान् (जातान्) उत्पन्नान् (उत्) अपि (अपरान्) अर्वाचीनान् (वरणः) म० १। स्वीकरणीयः (त्वा) (अभि) सर्वतः (रक्षतु) पातु ॥

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    विषय

    रोगरूप शत्रुओं का भञ्जन

    पदार्थ

    १. हे वरणमणे । (यथा) = जैसे (वातः) = तेज वायु (वनस्पतीन्) = बिना फूल के फल देनेवाले पीपल आदि को तथा (वृक्षान्) = अन्य वृक्षों को (ओजसा भनक्ति) = शक्ति से तोड़ डालता है, (एव) = इसी प्रकार (मे) = मेरे (पूर्वान् जातान्) = पहले पैदा हुए-हुए (उत्त) = और (अपरान्) = पीछे आनेवाले (सपत्नान्) = भङ्ग्धि रोगरूप शत्रुओं को विदीर्ण कर दे। २. (यथा) = जैसे  (वता: च अग्नि च) = वायु और अग्नि (वनस्पतीन्) = वनस्पतियों को व (वृक्षान्) = वृक्षों को (प्सातः) = खा जाते हैं, एक-उसी प्रकार (मे) = मेरे (पूर्वान् जातान् उत अपरान्) = पहले पैदा हुए-हुए और पिछले (सपत्नान्) = शत्रुओं को खा डाल। ३. (यथा) = जैसे (वातेन) = तीन वायु से (प्रक्षीणा:) = पत्तों आदि के गिर जाने से क्षीण हुए (न्यर्पिता:) = नीचे अर्पित किये गये-गिराये गये (वृक्षाः) = वृक्ष (शेरे) = भूमि पर लेट जाते हैं-गिर जाते हैं, (एव) = इसी प्रकार है वरणमणे! (त्वम्) = तू (मम) = मेरे (सपत्नान्) = रोगरूप शत्रुओं को (प्रक्षिणीहि) = क्षीण कर दे और उन्हें (न्यर्पय) = नीचे दबा देनेवाला हो। तेरे द्वारा मैं रोगों को पादाक्रान्त कर पाऊँ। ४. प्रभु अपने आराधक से कहते हैं कि (वरण:) = यह वरणमणि (त्वा अभि रक्षतु) = तेरे शरीर व मन दोनों क्षेत्रों को रक्षित करनेवाली हो। शरीर में यह तुझे रोगों से बचानेवाली हो तथा मन में वासनाओं से रक्षित करनेवाली हो।

    भावार्थ

    वरणमणि रोग व वासनारूप शत्रुओं को इसप्रकार विनष्ट कर दे जैसेकि तीववायु वृक्षों को। जिस प्रकार जंगल की आग वनस्पतियों को खा जाती है, इसी प्रकार यह वरणमणि रोगों को खा जाए। जैसे तीन वायु से वृक्ष गिर जाते हैं, उसी प्रकार इस वरणमणि द्वारा मेरे रोग समास हो जाएँ।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (वातः) प्रबल वायु (ओजसा) ओज द्वारा (वनस्पतीन्) वन के बड़े-बड़े (वृक्षान्) वृक्षों को (भनक्ति) भग्न करती है, तोड़ देती है (एवा) इसी प्रकार [हे सेना के सर्वोच्चाधिकारिन्!] तू (पूर्वान् जातान्) पूर्व काल के, (उत) और (अपरान्) उन से भिन्न अवर काल के, (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (भङ्ग्धि) तोड़-फोड़ दे। हे राजन् ! (त्या) तुझे (वरणः) शत्रुनिवारक सेनाध्यक्ष (अभिरक्षतु) सब ओर से सुरक्षित करे।

    टिप्पणी

    [राष्ट्र के शत्रु जब बहुसंख्या में हो जांय, तब उन के पूर्ण संहार के लिये राजा, सेना के सर्वोच्चाधिकारी को आज्ञा दे। यह अधिकारी तब स्वयं अग्रसर हो कर, शत्रु सेनाओं के साथ युद्ध करने में व्यापृत हो जाता है। ऐसी अवस्था में, जब कि समग्रसेना युद्ध में व्याप्त हो, कहीं प्रजा बलवा न करदे, इसलिये सर्वोच्चाधिकारी सुपरीक्षित वरण को राजा और राजधानी की सुरक्षा के लिये नियुक्त करता है, और राजा को आश्वासन देता है कि वरण तुम्हारी रक्षा सब ओर से करेगा।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    Just as the wind breaks down the trees by its stormy force so, O Vanaspati, lord of the common wealth, break down my enemies whether they are traditional or newly arisen. O Ruler, may Varuna, commander of the defence and law and order forces, protect you from external and internal dangers.

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    Translation

    Just as the wind with its face breaks the trees (vrksa), the -lords of the forest (vanaspati), even so may you break my rivals, born before, and also the latter. May the protective blessing guard you well. (purvan-jati = born-before; utāparān = born latter).

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    Translation

    As with its mighty operation wind breaks down the trees and big trees of wood so break and rend my inimical diseases born before and born afterwards. Let this mighty plant protect you. O man!

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    Translation

    As with its might the wind uproots the trees the lords of the wood, even so rend my rivals, O king, born before me and born after! Let the Vedic knowledge protect thee well.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (वनस्पतीन्) पुष्पं विना जायमानफलान् अश्वत्थादीन् वृक्षान् (वृक्षान्) स्थावरयोनिविशेषान् विटपान् (भनक्ति) छिनत्ति (ओजसा) बलेन (एव) तथा (सपत्नान्) शत्रून् (मे) मम (भङ्ग्धि) भिन्धि (पूर्वान्) प्रथमान् (जातान्) उत्पन्नान् (उत्) अपि (अपरान्) अर्वाचीनान् (वरणः) म० १। स्वीकरणीयः (त्वा) (अभि) सर्वतः (रक्षतु) पातु ॥

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