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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
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    अ॒यं ते॑ कृ॒त्यां वित॑तां॒ पौरु॑षेयाद॒यं भ॒यात्। अ॒यं त्वा॒ सर्व॑स्मात्पा॒पाद्व॑र॒णो वा॑रयिष्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । ते॒ । कृ॒त्याम् । विऽत॑ताम् । पौरु॑षेयात् । अ॒यम् । भ॒यात् । अ॒यम् । त्वा॒ । सर्व॑स्मात् । पा॒पात् । व॒र॒ण: । वा॒र॒यि॒ष्य॒ते॒ ॥३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं ते कृत्यां विततां पौरुषेयादयं भयात्। अयं त्वा सर्वस्मात्पापाद्वरणो वारयिष्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । ते । कृत्याम् । विऽतताम् । पौरुषेयात् । अयम् । भयात् । अयम् । त्वा । सर्वस्मात् । पापात् । वरण: । वारयिष्यते ॥३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम् अयम्) यही [वरण] (ते) तेरे लिये (वितताम्) फैली हुई (कृत्याम्) हिंसा को (पौरुषेयात्) मनुष्य से किये हुए (भयात्) भय से, और (अयम्) यह (वरणः) वरण [वैदिक बोध वा वरना औषध ही] (त्वा) तुझको (सर्वस्मात्) सब (पापात्) पाप से (वारयिष्यते) रोकेगा ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य वैदिक ज्ञान और पथ्य खान-पान से बलवान् होवें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(अयम्) (ते) तुभ्यम् (कृत्याम्) अ० ४।९।५। हिंसाम् (वितताम्) विस्तृताम् (पौरुषेयात्) अ० ७।१०५।१। पुरुषेण कृतात् (भयात्) दरात् (अयम्) (त्वा) सर्वस्मात् (पापात्) दुःखात् (वरणः) म० १। वैदिकबोधो वरुणौषधं वा (वारयिष्यते) वृञ् आवरणे−लृट्। प्रतिरोत्स्यति ॥

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    विषय

    'कृत्या, भय व पाप' का निवारण

    पदार्थ

    १. (अयम्) = यह वीर्यरूप (वरण:) = वरणमणि (ते) = तेरे वितता (कृत्याम्) = विस्तृत 'छेदन-भेदन' को (वारयिष्यते) = रोक देगी। (अयम्) = यह मणि (पौरुषेयात् भयात्) = पुरुषों में प्राप्त होनेवाले भय से रोकेगी। २. (अयं) [वरुणः] (मणि:) = यह वरणमणि (त्वा) = तुझे (सर्वस्मात् पापात्) = [वारयिष्यते] सारे पापों से रोकेगी।

    भावार्थ

    यह वीर्यमणि 'छेदन-भेदन, पुरुष में प्राप्त होनेवाले भय व पाप' का निवारण करने से 'वरण' इस अन्वर्थ नामवाली है।

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    भाषार्थ

    (अयम्) यह (वरणः) शत्रूनिवारक सेनाध्यक्ष (ते) तेरे [विरोध में] (वितताम्) विस्तृत (कृत्याम्) विनाशिनी सेना को (वारयिष्यते) निवारित करेगा, (अयम्) यह (पौरुषेयात्, भयात्) सैनिक पुरुषों से होने वाले भय से [तेरी रक्षा करेगा]। (अयम्) यह (सर्वस्मात् पापात्) शत्रु द्वारा किये जाने वाले सब पापकृत्यों से (त्वा) तुझे (वारयिष्यते) निवारित करेगा, तुझे सुरक्षित करेगा।

    टिप्पणी

    [मुख्यरूप में सेनाध्यक्ष के कर्तव्यों का वर्णन हुआ है। राजा की उक्ति सैनिक सर्वोच्चाधिकारी के प्रति है। मन्त्र में कृत्या का वर्णन हुआ है। इस द्वारा सूक्त का समन्वय पूर्व सूक्त १ के साथ दर्शाया है। सूक्त ३ गौणरूप में रोगरूपी कृत्या का भी वर्णन अभिप्रेत है। रोगरूपी कृत्या का वर्णन पूर्व सूक्त १ में नहीं हुआ। जनपद-ध्वंसी रोगों को "वितताम् कृत्याम्" द्वारा निर्दिष्ट किया है। और "पौरुषेयाद् वधात्" द्वारा माता-पिता से प्राप्त होने वाले रोगों को निर्दिष्ट किया है (८)। "पापात्" द्वारा दर्शाया है कि रोग पापजन्य हैं। इस प्रकार "वरण-ओषधि" का भी सम्बन्ध मन्त्र में है। मन्त्र में युद्ध को भी पापकर्म कहा है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Warding off Rival Adversaries

    Meaning

    This Varana would protect you against all evil designs and fears caused by human enemies rising and spreading around. It will also safeguard you from sin and evil which you or others might also commit out of fear and panic of supposed dangers.

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    Translation

    This protective blessing will ward off the harmful designs Spread out for you; this will protect you from danger from men, and from all sorts of the calamities.

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    Translation

    This Varana plant will slay the effect and disease caused by artificial device wrought by anyone and this will guard you, O man! from fear of wound caused by any man. This will shield you well from all the distress which are the offshoot of disease.

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    Translation

    This will stay the violence wrought for thee, will guard thee from the fear of man: from all sin this Vedic knowledge will shield thee well.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(अयम्) (ते) तुभ्यम् (कृत्याम्) अ० ४।९।५। हिंसाम् (वितताम्) विस्तृताम् (पौरुषेयात्) अ० ७।१०५।१। पुरुषेण कृतात् (भयात्) दरात् (अयम्) (त्वा) सर्वस्मात् (पापात्) दुःखात् (वरणः) म० १। वैदिकबोधो वरुणौषधं वा (वारयिष्यते) वृञ् आवरणे−लृट्। प्रतिरोत्स्यति ॥

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