अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 12
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
1
ये दे॒वा दि॑वि॒षदो॑ अन्तरिक्ष॒सद॑श्च॒ ये ये चे॒मे भूम्या॒मधि॑। तेभ्य॒स्त्वं धु॑क्ष्व सर्व॒दा क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठये । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽसद॑: । अ॒न्त॒रि॒क्ष॒ऽसद॑: । च॒ । ये । ये । च॒ । इ॒मे । भूम्या॑म् । अधि॑ । तेभ्य॑: । त्वम् । धु॒क्ष्व॒ । स॒र्व॒दा । क्षी॒रम् । स॒र्पि: । अथो॒ इति॑ । मधु॑ ॥९.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ये देवा दिविषदो अन्तरिक्षसदश्च ये ये चेमे भूम्यामधि। तेभ्यस्त्वं धुक्ष्व सर्वदा क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥
स्वर रहित पद पाठये । देवा: । दिविऽसद: । अन्तरिक्षऽसद: । च । ये । ये । च । इमे । भूम्याम् । अधि । तेभ्य: । त्वम् । धुक्ष्व । सर्वदा । क्षीरम् । सर्पि: । अथो इति । मधु ॥९.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (देवाः) दिव्य गुण (दिविषदः) सूर्य में वर्तमान (च) और (ये) जो (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्ष में व्याप्तिवाले (च) और (ये) जो (इमे) यह (भूम्याम् अधि) भूमि पर हैं, (त्वम्) तू (तेभ्यः) उन सब से (सर्वदा) सर्वदा (क्षीरम्) दूध (सर्पिः) घी (अथो) और भी (मधु) मधुविद्या [ब्रह्मज्ञान] (धुक्ष्व) भरपूर कर ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्य वेद द्वारा संसार के सब पदार्थों से यथावत् उपकार लेकर दुग्ध, घृत आदि पदार्थ शरीरपुष्टि के लिये और ब्रह्मज्ञान, आत्मतुष्टि के लिये सदा प्राप्त करें ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (ये) (च) (इमे) (भूम्याम्) (अधि) उपरि (तेभ्यः) देवेभ्यः सकाशात् (त्वम्) (धुक्ष्व) दुग्धि। प्रपूरय (सर्वदा) (क्षीरम्) दुग्धम् (सर्पिः) घृतम् (अथो) अपि च (मधु) मधुज्ञानम्। ब्रह्मविद्याम् ॥
विषय
क्षीर, सर्पि, मधु
पदार्थ
१. (ये देवा:) = जो देव (दिविषदः) = धुलोक में आसीन हैं, (ये च अन्तरिक्षसदः) = और जो अन्तरिक्ष में स्थित है, (ये च इमे) = और जो ये (भूम्याम् अधि) = इस पृथिवी पर हैं [ये देवा दिव्येकादश स्थ, ये देवा अन्तरिक्ष एकादश स्थ, ये देवाः पृथिव्यामेकादश स्थ-अथर्व० १९।२७।११-१३] (तेभ्य:) = उनके लिए (त्वम्) = तू सर्वदा-सदा (क्षीरं सर्पिः अथो मधु) = दूध, घी व शहद को (धुक्ष्व) = प्रपूरित कर। हमारा मस्तिष्क ही धुलोक है, हृदय अन्तरिक्षलोक है तथा शरीर पृथिवीलोक है। बाहर के सब देव शरीर में आकर स्थित हुए हैं ('सर्वा हस्मिन् देवता गावो गोष्ठइवासते')। इन सब देवों के लिए यह वेदवाणी क्षीर, सर्पि व मधु के प्रयोग का उपदेश करती है। इनका प्रयोग इन सब देवों को सशक्त बनाये रखता है।
भावार्थ
'पयः पशूनां रसमोषधीनाम्' इस वेदनिर्देश के अनुसार दूध व रस आदि का ही प्रयोग शरीरस्थ सब देवों [इन्द्रियों] को सशक्त बनाये रखता है।
भाषार्थ
(ये) जो (देवाः) देव (दिविषदः) द्युलोक में स्थित हैं (ये च) और जो (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्ष में स्थित है (ये च) और जो (इमे) ये (भूम्याम् अधि) भूमि में हैं, (तेभ्यः) उन [सब] के लिये (त्वम्) तू [हे पारमेश्वरी मातः!] (सर्वदा) सदा (क्षीरम्) दूध (सर्पिः) घृत, (अथो) और (मधु) मधु (धुक्ष्व) दोहन कर, प्रदान कर ।
टिप्पणी
[याज्ञिक पद्धति के अनुसार शतौदना-गौ का शमन अर्थात् हनन और पकाना हो जाने पर (मन्त्र ७), जब वह शरीर से न रही, तो वह त्रिलोकस्थ देवों के लिये क्षीर आदि कैसे दोहन कर सकती है। मधु के दो अर्थ हैं, (१) जल यथा "मधु उदकनाम" (निघं० १।१२) तथा (२) प्रसिद्ध शहद। मधु क्षीरम् का विशेषण नहीं, क्योंकि "अथो" द्वारा मधु का स्वतन्त्र वर्णन हुआ है। अतः मन्त्र में चतुष्पाद् प्राणि गौ का वर्णन नहीं। यह न जल देती है, न शहद। अतः मन्त्र में पारमेश्वरी माता का वर्णन है। परमेश्वरी माता सर्वशक्तिमती है। उसने तो समग्र सृष्टि को प्रदान किया हुआ है। जल भी वही प्रदान करती हैं और शहद भी]।
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
For and from the divinities which are in heaven, in the sky, and these which are on this earth, always draw and yield milk, ghrta and the honey sweets of life’s nourishment for body, mind and soul.
Translation
The enlightened ones, who dwell in the sky, who dwell in the midspace, and those, who dwell on earth for them may you always yield milk, melted butter and honey as well.
Translation
Let this cow give always sweet milk and ghee for those physical forces which are the Devas of yajna and who are in heaven, who are residing in atmosphere and who are residing on the earth.
Translation
For the learned, who reside in the Sun, roam in the atmosphere or dwell on the Earth, grant thou, o Vedic speech, milk, butter and knowledge of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (ये) (च) (इमे) (भूम्याम्) (अधि) उपरि (तेभ्यः) देवेभ्यः सकाशात् (त्वम्) (धुक्ष्व) दुग्धि। प्रपूरय (सर्वदा) (क्षीरम्) दुग्धम् (सर्पिः) घृतम् (अथो) अपि च (मधु) मधुज्ञानम्। ब्रह्मविद्याम् ॥
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