अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
1
वस॑वस्त्वा दक्षिण॒त उ॑त्त॒रान्म॒रुत॑स्त्वा। आ॑दि॒त्याः प॒श्चाद्गो॑प्स्यन्ति॒ साग्नि॑ष्टो॒ममति॑ द्रव ॥
स्वर सहित पद पाठवस॑व: । त्वा॒ । द॒क्षि॒ण॒त: । उ॒त्त॒रात् । म॒रुत॑: । त्वा॒ । आ॒दि॒त्या: । प॒श्चात् । गो॒प्स्य॒न्ति॒ । सा । अ॒ग्नि॒ऽस्तो॒मम् । अति॑ । द्र॒व॒ ॥९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
वसवस्त्वा दक्षिणत उत्तरान्मरुतस्त्वा। आदित्याः पश्चाद्गोप्स्यन्ति साग्निष्टोममति द्रव ॥
स्वर रहित पद पाठवसव: । त्वा । दक्षिणत: । उत्तरात् । मरुत: । त्वा । आदित्या: । पश्चात् । गोप्स्यन्ति । सा । अग्निऽस्तोमम् । अति । द्रव ॥९.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(वसवः) श्रेष्ठ पुरुष (त्वा) तुझको (दक्षिणतः) दाहिनी ओर से, (मरुतः) शूर पुरुष (त्वा) तुझको (उत्तरात्) ऊँचे वा बाएँ स्थान से, (आदित्याः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी लोग] (पश्चात्) पीछे से (गोप्स्यन्ति) बचावेंगे, (सा) सो तू (अग्निष्टोमम्) सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति को (अति) अत्यन्त करके (द्रव) शीघ्र प्राप्त हो [ग्रहण कर] ॥८॥
भावार्थ
सब विद्वान् शूरवीर पुरुष वेद की रक्षा करें, जिससे ईश्वर के गुणों का अत्यन्त प्रकाश हो ॥८॥
टिप्पणी
८−(वसवः) श्रेष्ठाः पुरुषाः (त्वा) (दक्षिणतः) दक्षिणहस्तस्थितदेशात् (उत्तरात्) उच्चस्थानात्। वामदेशात् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः (त्वा) (आदित्याः) अ० १।९।१। अ+दिति-ण्य। अखण्डव्रता ब्रह्मचारिणः (पश्चात्) (गोप्स्यन्ति) (सा) सा त्वम् (अग्निष्टोमम्) अग्नेः सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य स्तुतिम् (अति) अत्यन्तम् (द्रव) शीघ्रं प्राप्नुहि ॥
विषय
अनिष्टोमम् अतिद्रव
पदार्थ
१. शतौदना वशा-शतवर्षपर्यन्त ज्ञानदुग्ध से हमारा सेचन करनेवाली वेदधेनु से कहते हैं कि (वसवः) = वसु ब्रह्मचारी-प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करनेवाले-Natural science का अध्ययन करनेवाले ये ब्रह्मचारी (दक्षिणत:) = दक्षिण की ओर से (त्वा गोप्यन्ति) = तेरा रक्षण करेंगे। (उत्तरात्) = उत्तर से (मरुतः) = [मितराविण:-महद् द्रवन्ति-नि०११।१३] मपा-तुला बोलनेवाले, खूब क्रियाशील व्यक्ति (त्वा) [गोप्स्यन्ति] = तुझे रक्षित करेंगे तथा (आदित्या:) = प्रकृति, जीव व परमात्मा के ज्ञान का आदान करनेवाले आदित्य ब्रह्मचारी (पश्चात्) = पीछे से-पश्चिम से तेरा रक्षण करेंगे। इसप्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर से रक्षित हुई-हुई (सा) = वह तू (अग्निष्टोमम्) = [अग्ने: स्तोमो यस्य] उस प्रभु का स्तवन करनेवाले की ओर (अतिद्रव) = अतिशयेन गतिवाली हो।
भावार्थ
इस वेदधेनु को वसु, मरुत् व आदित्य रक्षित कर रहे हैं। इनसे रक्षित हुई-हुई यह वेदधेनु प्रभु के स्तोता को अतिशयेन प्राप्त होती है।
भाषार्थ
(वसवः) वसु (त्वा) तुझे (दक्षिणतः) दक्षिण से, (मरुतः) मरुत् (त्वा) तुझे (उत्तरतः) उत्तर से (आदित्याः) आदित्य (पश्चात्) पश्चिम से (गोप्स्यन्ति) सुरक्षित करेंगे, (सा) वह तू (अग्निष्टोमम्) अग्निष्टोम को (अतिद्रव) अतिक्रान्त कर जा।
टिप्पणी
[प्रचलित प्रथानुसार वसु हैं ८; मरुत् हैं ४९; आदित्य हैं १२। इन का दक्षिण आदि दिशाओं के साथ किस प्रकार सम्बन्ध है, यह अनुसन्धेय है। मन्त्र में "वसु" द्वारा वसुकोटि के विद्वान्, “मरुतः" द्वारा ऋत्विक, तथा आदित्यों द्वारा आदित्य कोटि के विद्वान् भी सम्भावित हैं, परन्तु इन का भी दक्षिण आदि दिशाओं के साथ किस प्रकार सम्बन्ध है - यह भी अनुसन्धेय है। पारमेश्वरी-माता [सा] का वर्णन प्रकरणानुसार प्रतीत होता है। इस की रक्षा का अभिप्राय यह है कि "वसु" आदि विद्वान् तेरा प्रचार करके, तेरे नाम को सुरक्षित कर, जगत् से नास्तिकता का उच्छेद करेंगे। अग्निष्टोम के अतिक्रमण करने का अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि अग्निष्टोम यज्ञ द्वारा जो फल प्राप्त होता है उस से अधिक फलदायिनी पारमेश्वरी माता है। इस द्वारा अग्निष्टोम की हेयता प्रतीत होती है और पारमेश्वरी माता की स्तुति, प्रार्थना, उपासना के लिये प्रेरित किया है। "मरुत् ऋत्विङ्नाम (निघं० ३।१८)]।
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
Sacred life-giving mother, Vasus, generous people, from the right, Maruts, smart soldiers from the left, and Adityas, brilliant pursuers of the Veda in Brahmacharya, will protect you. Let you be proudly dedicated to the worship of Agni, lord of light and leadership, in Jyotishtoma yajnic congregations.
Translation
From the south the young sages (vasavah), from the north the brave soldiers (maruts), and from the west the old sages (ādityāh) will guard you. As such, may you excel even the Agnistoma (the fire sacrifice).
Translation
May Vasus, the learned who have attained knowledge by keeping up the discipline of celibacy for 24 years, guard it from south, may the Maruth, the learned who have attained knowledge by keeping up the discipline of celibacy for 44years protect it form north and may Adityas the learned who have attained knowledge by keeping up the discipline of continent tor 48 years gurad it from behind or west and let this Shataudana. Shataudana go to the place of Agni-stoma where it is required for Dakshina.
Translation
O Vedic speech, the sages will guard thee from the right, the valiant from the left, the celibates will guard the from behind, so sing thou quickly in full the praise of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(वसवः) श्रेष्ठाः पुरुषाः (त्वा) (दक्षिणतः) दक्षिणहस्तस्थितदेशात् (उत्तरात्) उच्चस्थानात्। वामदेशात् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः (त्वा) (आदित्याः) अ० १।९।१। अ+दिति-ण्य। अखण्डव्रता ब्रह्मचारिणः (पश्चात्) (गोप्स्यन्ति) (सा) सा त्वम् (अग्निष्टोमम्) अग्नेः सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य स्तुतिम् (अति) अत्यन्तम् (द्रव) शीघ्रं प्राप्नुहि ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal