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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - शतौदना (गौः) छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
    1

    बाला॑स्ते॒ प्रोक्ष॑णीः सन्तु जि॒ह्वा सं मा॑र्ष्ट्वघ्न्ये। शु॒द्धा त्वं य॒ज्ञिया॑ भू॒त्वा दिवं॒ प्रेहि॑ शतौदने ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बाला॑: । ते॒ । प्र॒ऽउक्ष॑णी: । स॒न्तु॒ । जि॒ह्वा । सम् । मा॒र्ष्टु॒ । अ॒घ्न्ये॒ । शु॒ध्दा । त्वम् । य॒ज्ञिया॑ । भू॒त्वा । दिव॑म् । प्र । इ॒हि॒ । श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒ ॥९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बालास्ते प्रोक्षणीः सन्तु जिह्वा सं मार्ष्ट्वघ्न्ये। शुद्धा त्वं यज्ञिया भूत्वा दिवं प्रेहि शतौदने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बाला: । ते । प्रऽउक्षणी: । सन्तु । जिह्वा । सम् । मार्ष्टु । अघ्न्ये । शुध्दा । त्वम् । यज्ञिया । भूत्वा । दिवम् । प्र । इहि । शतऽओदने ॥९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली शक्ति ! [वेदवाणी] (ते) तेरी (प्रोक्षणीः) शोधन शक्तियाँ [मेरे लिये] (बालाः) बाल [कूची समान] (सन्तु) होवें, [मेरी] (जिह्वा) जीभ (सम्) यथावत् (मार्ष्टु) शुद्ध होवे। (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली ! [वेदवाणी] (त्वम्) तू (शुद्धा) शुद्ध और (यज्ञिया) यज्ञयोग्य (भूत्वा) होकर (दिवम्) प्रकाश को (प्र) अच्छे प्रकार (इहि) प्राप्त हो ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य सदा रक्षा और वृद्धि करने हारी वेदवाणी द्वारा सत्यभाषण आदि से शुद्ध होकर वेदविद्या का प्रकाश करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(बालाः) केशाः। कूर्चिका यथा (ते) तव (प्रोक्षणीः) शोधनशक्तयः (सन्तु) (जिह्वा) (सम्) सम्यक् (मार्ष्टु) शुध्यतु (अघ्न्ये) अ० ७।३।८। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्, उपधालोपः, टाप्। अघ्न्यः प्रजापतिः। हे अहिंसिके रक्षिके वेदविद्ये (शुद्धा) पवित्रा (त्वम्) (यज्ञिया) यज्ञार्हा (भूत्वा) (दिवम्) प्रकाशम् (प्र) प्रकर्षेण (इहि) प्राप्नुहि (शतौदने) म० १। शतप्रकारेण सेचिके ॥

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    विषय

    यज्ञिया वेदवाणी [वेदधेनु]

    पदार्थ

    १. वेदवाणी को धेनु के रूप में चित्रित करते हुए कहते हैं कि (ते चर्म) = तेरा चर्म (वेदिः भवतु) = यज्ञ की वेदि बने। (यानि ते लोमानि) = जो तेरे लोम हैं, वे (बर्हिः) = कुशासन हैं। (एषा) = यह जो (रशनाम्) = रज्जु (त्वा अग्रभीत्) = तुझे ग्रहण करती है-बौंधती है, यह (ग्रावा) = स्तत्रों का उच्चारण करनेवाला स्तोता है। (एष:) = यह स्तोता (त्वा अधिनृत्यतु) = तुझपर नृत्य करनेवाला हो। वेदाध्ययन ही इसका यज्ञ है-इस यज्ञ में वह आनन्द लेनेवाला हो। २. हे (अघ्न्ये) = अहन्तव्ये वेदधेनो! (ते बाला:) = तेरे बाल (प्रोक्षणी: सन्त) = यज्ञवेदि के शोधन-जल हों। जिला-तेरी जिला (संमार्ष्टं) = सम्यक शोधन करनेवाली हो। हे (शतौदने) = शतवर्षपर्यन्त हमारे जीवन को सुखों से सींचनेवाली वेदवाणि! (त्वम्) = तू (शुद्धा) = शुद्धव (यज्ञिया भूत्वा) = यज्ञ के योग्य व यज्ञशीला होकर (दिवं प्रेहि) = प्रकाशमय स्वर्गलोक को पास कर । वेदाध्ययन करनेवाला पुरुष अपने जीवन को शुद्ध व यज्ञशील बनाकर स्वर्ग को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    वेदाध्ययन को यज्ञ ही समझना चाहिए। इसमें कभी विच्छेद न करते हुए हम अपने जीवनों को शुद्ध व यज्ञिय बनाकर अपने घरों को स्वर्गोपम बनाने में समर्थ हों।

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    भाषार्थ

    (प्रोक्षणीः) यज्ञ में जल सींचने वाला पात्र (ते) तेरे लिये (बालाः) [पूंछ के] बाल (सन्तु) हों, (अघ्न्ये) हे अहन्तव्ये ! अत्याज्ये (जिह्वा) वेदवाणी [मार्जनी होकर] (संमार्ष्ट्र) सम्यकरूप में तेरे स्वरूप का संमार्जनकरे। इस प्रकार (शतौदने) सैंकड़ों ओदन आदि भोज्य पदार्थों वाली हे परमेश्वरी मातः ! तू (शुद्धा) शुद्ध स्वरूप और (यज्ञिया) पूजित तथा संगत (भूत्वा) हो कर, (दिवं प्रेहि) हमारे मूर्धा अर्थात् मस्तिष्क में प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    [जिह्वा = जिह्वा वाङ् नाम (निघं० १।११)। दिवम् = "दिवं यश्चक्रे मूर्धानाम्" (अथर्व० १०।७।३२), तथा “शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत" (यजु० ३१।१३)। अभिप्राय है मस्तिष्कस्थ सहस्रार चक्र में तू प्राप्त हो। संमार्ष्ट=मार्जनी अर्थात् झाड़ू जैसे यज्ञ स्थल का संमार्जन कर उसे शुद्ध रूप में प्रकट करती है ऐसे वेदवाक् तेरे शुद्ध स्वरूप को प्रकट करे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shataudana Cow

    Meaning

    O mother voice of divinity, holy cow inviolable, giver of a hundred nourishments, let the vessels of consecrating yajna waters be your hair, let the tongue that utters the words sanctify us to purity. Having been energised and purified by the holy chant, be adorable on the vedi and rise to the heavens without prayers.

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    Translation

    May your tail-hair (balah) be the water-sprinkless (proksani); O inviolable (cow), may your tongue cleanse you. Becoming clean and worthy of worship, O Sataudana, may you go to heaven.

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    Translation

    Let the hair of this cow which is not to be killed be like Prokshanis and the tongue be the cleaning comb (as it has thormy substance over the tongue). Let this Shataudana becoming theirs purely by nature and becoming the means of yajna with its milk and ghee send the yajmana to heaven, the state of light and happiness.

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    Translation

    O unviolate Vedic speech, may thy purifying forces be a brush for me. May my tongue be pure. O Vedic speech, being sincere and adorable, attain to renown and glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(बालाः) केशाः। कूर्चिका यथा (ते) तव (प्रोक्षणीः) शोधनशक्तयः (सन्तु) (जिह्वा) (सम्) सम्यक् (मार्ष्टु) शुध्यतु (अघ्न्ये) अ० ७।३।८। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्, उपधालोपः, टाप्। अघ्न्यः प्रजापतिः। हे अहिंसिके रक्षिके वेदविद्ये (शुद्धा) पवित्रा (त्वम्) (यज्ञिया) यज्ञार्हा (भूत्वा) (दिवम्) प्रकाशम् (प्र) प्रकर्षेण (इहि) प्राप्नुहि (शतौदने) म० १। शतप्रकारेण सेचिके ॥

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