अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
1
ये ते॑ देवि शमि॒तारः॑ प॒क्तारो॒ ये च॑ ते॒ जनाः॑। ते त्वा॒ सर्वे॑ गोप्स्यन्ति॒ मैभ्यो॑ भैषीः शतौदने ॥
स्वर सहित पद पाठये । ते॒ । दे॒वि॒ । श॒मि॒तार॑: । प॒क्तार॑: । ये । च॒ । ते॒ । जना॑: । ते । त्वा॒ । सर्वे॑ । गो॒प्स्य॒न्ति॒ । मा । ए॒भ्य॒: । भै॒षी॒: । श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒ ॥९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते देवि शमितारः पक्तारो ये च ते जनाः। ते त्वा सर्वे गोप्स्यन्ति मैभ्यो भैषीः शतौदने ॥
स्वर रहित पद पाठये । ते । देवि । शमितार: । पक्तार: । ये । च । ते । जना: । ते । त्वा । सर्वे । गोप्स्यन्ति । मा । एभ्य: । भैषी: । शतऽओदने ॥९.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(देवि) हे देवी ! [विजयिनी वेदवाणी] (ये) जो (ते) तेरे (शमितारः) विचारनेवाले (च) और (ये जनाः) जो जन (ते) तेरे (पक्तारः) पक्के [निश्चय] करनेवाले हैं, (ते सर्वे) वे सब (त्वा) तेरी (गोप्स्यन्ति) रक्षा करेंगे, (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली वेदवाणी ! (एभ्यः) इन [शत्रुओं] से (मा भैषीः) मत भय कर ॥७॥
भावार्थ
विचारवान् और दृढ़ विश्वासी पुरुष वेदविद्या की रक्षा करके शत्रुओं से निर्भय रहते हैं ॥७॥
टिप्पणी
७−(ये) (ते) तव (देवि) हे विजयिनि वेदवाणि (शमितारः) अ० ९।५।५। शम आलोचने−तृच्। विचारवन्तः (पक्तारः) पक्वकारकाः। निश्चयकारकाः (ये) (च) (ते) (जनाः) मनुष्याः (ते) (त्वा) (सर्वे) (गोप्स्यन्ति) रक्षिष्यन्ति (एभ्यः) शत्रुभ्यः (मा भैषीः) भयं मा प्राप्नुहि (शतौदने) अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
विषय
शमितार:+पक्तारः
पदार्थ
१. हे (देवि) = प्रकाशमयी शतीदने वेदवाणि! (ये ते शमितार:) = [शम् आलोचने] जो नियमपूर्वक तेरा आलोचन करनेवाले-ज्ञान प्राप्त करनेवाले पुरुष हैं, (च) = और (ये जना:) = जो मनुष्य (ते पक्तार:) = अपने में तेरा परिपाक करनेवाले आचार्य [भृगु] हैं, (ते सर्वे) = वे सब शिष्य और आचार्य (त्वा) = तेरा (गोप्स्यन्ति) = रक्षण करेंगे। हे (शतौदने) = शतवर्षपर्यन्त जीवन को आनन्दसिक्त करनेवाली वेदवाणि! तू (एभ्यः मा भैषी:) = इनसे भयभीत न हो। इनके होते हुए तेरे विनाश [विलोप] का किसी प्रकार भी भय नहीं।
भावार्थ
जब आचार्यकुल में रहते हुए विद्यार्थी, परिपक्व ज्ञानवाले आचार्यों से इस वेदज्ञान का ग्रहण करते हुए इसका आलोचन करते हैं तब इस वेदज्ञान के शमन [आलोचन] व पचन से इसके विलोप का भय नहीं होता।
भाषार्थ
(देवि) हे पारमेश्वरी मातृदेवते ! (ये जनाः) जो जन (ते शमितारः) तुझे शान्त करते हैं, (ये च) और जो (ते पक्तारः) तुझे परिपक्व करते हैं (ते सर्वे) वे सब (त्वा) तेरी (गोप्स्यन्ति) रक्षा करेंगे (एभ्यः) इनसे (मा भैषीः) तू न भयभीत हो (शतौदने) हे सैकड़ों ओदन आदि भोज्य पदार्थों को देने वाली पारमेश्वरी मातः !
टिप्पणी
[शमितारः = शान्त करने वाले; तुम क्रुद्ध हुई को स्तुति-प्रार्थनाओं द्वारा शान्त करनेवाले जन। शमनम् = Appeasing, soothing, calmnen (आप्टे)। परमेश्वर क्रुद्ध भी हो जाता है। यथा क्रुद्धस्य (अथर्व० (१३।३।१-२५)। उग्रभूचाल, अग्निकाण्ड, अतिवर्षा, वर्षाभाव अर्थात् सूखापन, महामारियां आदि परिणाम हैं उस के क्रोध के। पक्तारः= पकाने वाले जन, ध्यानाभ्यास द्वारा तुझे परिपक्व स्वरूप करते हैं। परिपाकः यथा "परिपक्वबुद्धिः"। सर्वे गोप्स्यन्ति = जब सब जन शतौदना की रक्षा करेंगे तब जनों द्वारा इसकी हत्या तथा अग्नि पर उसे पकाना कैसे युक्तिसंगत है। मा भैषीः = तुझे उपासक, अपात्रों तथा कुपात्रों में प्रदान करेंगे इस का भय मत कर। ऐसे व्यक्तियों को, शतौदना का परिज्ञान, उपासक नहीं देते। ऐसा ही भय, कविता में विद्या के सम्बन्ध में भी प्रकट किया है। यथा "विद्या ह वै ब्राह्मणमाजगाम गोपाय मा शेवदिष्टेऽहमस्मि। असूयकायानृजवेऽयताय न मा ब्रूया वीर्यवती यथा स्याम्”(निरुक्त २।१।३)]।
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
O sacred cow of a hundred gifts of nourishment, divine mother, those people who serve and beautify you, those who raise you to perfection of maturity and fertility, they all will protect you. Do not fear any violators.
Translation
O divine one, they, who keep you calm, and who bring you to maturity, all of then will protect you well. O Sataudana, be not afraid of them.
Translation
Let not this shataudana be afraid of those persons who guard it and those persons who train and properly domesticate it as all these men will guard this cow and not hurt it.
Translation
O Vedic speech, be not afraid of thy foes, as all those who study thee, and strengthen their faith in thy infallibility will guard thee.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(ये) (ते) तव (देवि) हे विजयिनि वेदवाणि (शमितारः) अ० ९।५।५। शम आलोचने−तृच्। विचारवन्तः (पक्तारः) पक्वकारकाः। निश्चयकारकाः (ये) (च) (ते) (जनाः) मनुष्याः (ते) (त्वा) (सर्वे) (गोप्स्यन्ति) रक्षिष्यन्ति (एभ्यः) शत्रुभ्यः (मा भैषीः) भयं मा प्राप्नुहि (शतौदने) अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
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