अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 15
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
4
यत्ते॑ क्लो॒मा यद्धृद॑यं पुरी॒तत्स॒हक॑ण्ठिका। आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । क्लो॒मा । यत् । हृद॑यम् । पु॒रि॒ऽतत् । स॒हऽक॑ण्ठिका । अ॒मिक्षा॑म् । दु॒ह्र॒ता॒म् । दा॒त्रे । क्षी॒रम् । स॒र्पि:। अथो॒ इति॑ । मधु॑ ॥९.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते क्लोमा यद्धृदयं पुरीतत्सहकण्ठिका। आमिक्षां दुह्रतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । क्लोमा । यत् । हृदयम् । पुरिऽतत् । सहऽकण्ठिका । अमिक्षाम् । दुह्रताम् । दात्रे । क्षीरम् । सर्पि:। अथो इति । मधु ॥९.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जो (ते) तेरा (क्लोमा) फेफड़ा, (यत्) जो (हृदयम्) हृदय और (सहकण्ठिका) कण्ठ के सहित (पुरीतत्) पुरीतत् [शरीर को फैलानेवाली सूक्ष्म आँत] है, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा..... म० १३ ॥१५॥
भावार्थ
मन्त्र १३ के समान है ॥१५॥
टिप्पणी
१५−(क्लोमा) अ० २।३३।३। फुप्फुसम् (पुरीतत्) अ० ९।७।११। पुरिं शरीरं तनोतीति। सूक्ष्मान्तरम् (सहकण्ठिका) कण्ठेन सहिता। अन्यत् स्पष्टं गतं च ॥
विषय
आमिक्षा, क्षीर, सर्पि, मधु
पदार्थ
१. हे वेदधेनो! (यत् ते शिर:) = जो तेरा सिर है, (यत् ते मुखम्) = जो तेरा मुख है, (यौ कर्णौ) = जो कान हैं, (ये च ते हनू) = और जो तेरे जबड़े हैं। इसी प्रकार (यौ ते ओष्ठौ) = जो तेरे ओष्ठ हैं, ये नासिके जो नासाछिद्र हैं, (ये शङ्गे) = जो सींग हैं, (ये च ते अक्षिणी) = जो तेरी आँखें हैं। (यत् ते क्लोमा) = जो तेरा फेफड़ा है (यत् हृदयम्) = जो हृदय है, (सहकण्ठिका पुरीतत्) = कण्ठ के साथ मल की बड़ी आँत है, (यत् ते यकृत्) = जो तेरा कलेजा है, (ये मतस्ने) = जो गुर्दे हैं, (यत् आन्त्रम्) = जो आँत है, (याः च ते गुदा) = और जो तेरी मलत्याग करनेवाली नाडियाँ हैं। (यः ते प्लाशि:) = जो तेरी अन्न की आधारभूत आँत है, (य: वनिष्ठुः) = जो अन्त:रक्त को बाँटनेवाली आँत है, (यौ कक्षी) = जो कुक्षिप्रदेश हैं, (यत् च ते चर्म) = और जो तेरी चमड़ी है, २. ये सब-के-सब अवयव अर्थात् भिन्न-भिन्न लोक-लोकान्तरों व पदार्थों का ज्ञान (दात्रे) = तेरे प्रति अपने को देनेवाले के लिए [दादाने] वासनाओं का विनाश करनेवाले के लिए [दाप लवने] और इसप्रकार अपने जीवन को शुद्ध बनानेवाले के लिए [दैप शोधने] (आमिक्षाम्) = [तसे पयसि दध्यानयति सा वैश्वदेवी आमिक्षा भवति] गर्म दूध में दही के मिश्रण से उत्पन्न पदार्थ को (क्षीरः सर्पिः अथो मधु) = दूध, घृत व शहद को (दुह्रताम्) = दूहें-प्राप्त कराएं।
भावार्थ
वेदज्ञान हमारे लिए 'आमिक्षा-सर्पि, क्षीर व मधु' को प्राप्त कराता है, अर्थात् हमें इनके प्रयोग के लिए प्रेरित करता है।
भाषार्थ
(यत् ते) जो तेरे (क्लोमा) फेफड़े, (यत् हृदयम्) जो हृदय, तथा (सहकण्ठिका, पुरीतत्) कण्ठ के साथ आन्तें है, वे (दात्रे) दाता के लिये आमिक्षा, क्षीर, सर्पिः और मधु (दुह्रताम्) प्रदान करें।
टिप्पणी
[हृदयम्= चेतः। पुरीतत्=व्रतम् (अथर्व० ९।१२ (४)।११)। व्रत का अभिप्राय है व्रतानुकूल भोज्यपदार्थ]।
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
Let that which is your lungs, your heart, your pericardium with all the throat area yield curd and cheese, milk, ghrta and the honey sweets of life’s nourishments for the generous giver.
Translation
May your these lungs (kloma) this heart, the pericardium (puritat) with the throat, (kanthika), yield to your donor mingled curd, milk, melted butter and honey as well.
Translation
Let the heart and pericardium of this cow, let its lungs with all the bronchial tubes pour Amiksha and the sweet milk for the giver.
Translation
Let thy lungs, thy heart, and thy throat with all the bronchial tubes, grant for a charitably disposed person, curd, milk, butter and the knowledge of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१५−(क्लोमा) अ० २।३३।३। फुप्फुसम् (पुरीतत्) अ० ९।७।११। पुरिं शरीरं तनोतीति। सूक्ष्मान्तरम् (सहकण्ठिका) कण्ठेन सहिता। अन्यत् स्पष्टं गतं च ॥
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