अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 14
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
2
यौ त॒ ओष्ठौ॒ ये नासि॑के॒ ये शृङ्गे॒ ये च॒ तेऽक्षि॑णी। आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयौ । ते॒ । ओष्ठौ॑ । ये । इति॑ । नासि॑के॒ । इति॑ । ये इति॑ । शृङ्गे॒ इति॑ । ये इति॑ । च॒ । ते॒ । अक्षि॑णी॒ इति॑ । अ॒मिक्षा॑म् । दु॒ह्र॒ता॒म् । दा॒त्रे । क्षी॒रम् । स॒र्पि:। अथो॒ इति॑ । मधु॑ ॥९.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
यौ त ओष्ठौ ये नासिके ये शृङ्गे ये च तेऽक्षिणी। आमिक्षां दुह्रतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥
स्वर रहित पद पाठयौ । ते । ओष्ठौ । ये । इति । नासिके । इति । ये इति । शृङ्गे इति । ये इति । च । ते । अक्षिणी इति । अमिक्षाम् । दुह्रताम् । दात्रे । क्षीरम् । सर्पि:। अथो इति । मधु ॥९.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(यौ) जो (ते) तेरे (ओष्ठौ) दो ओठ, (ये) जो (नासिके) दो नथने, (ये) जो (शृङ्गे) दो सींग (च) और (ये) जो (ते) तेरी (अक्षिणी) दो आँखें हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा.... म० १३ ॥१४॥
भावार्थ
मन्त्र १३ के समान है ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(अक्षिणी) नेत्रे। अन्यत् स्पष्टम् ॥
विषय
आमिक्षा, क्षीर, सर्पि, मधु
पदार्थ
१. हे वेदधेनो! (यत् ते शिर:) = जो तेरा सिर है, (यत् ते मुखम्) = जो तेरा मुख है, (यौ कर्णौ) = जो कान हैं, (ये च ते हनू) = और जो तेरे जबड़े हैं। इसी प्रकार (यौ ते ओष्ठौ) = जो तेरे ओष्ठ हैं, ये नासिके जो नासाछिद्र हैं, (ये शङ्गे) = जो सींग हैं, (ये च ते अक्षिणी) = जो तेरी आँखें हैं। (यत् ते क्लोमा) = जो तेरा फेफड़ा है (यत् हृदयम्) = जो हृदय है, (सहकण्ठिका पुरीतत्) = कण्ठ के साथ मल की बड़ी आँत है, (यत् ते यकृत्) = जो तेरा कलेजा है, (ये मतस्ने) = जो गुर्दे हैं, (यत् आन्त्रम्) = जो आँत है, (याः च ते गुदा) = और जो तेरी मलत्याग करनेवाली नाडियाँ हैं। (यः ते प्लाशि:) = जो तेरी अन्न की आधारभूत आँत है, (य: वनिष्ठुः) = जो अन्त:रक्त को बाँटनेवाली आँत है, (यौ कक्षी) = जो कुक्षिप्रदेश हैं, (यत् च ते चर्म) = और जो तेरी चमड़ी है, २. ये सब-के-सब अवयव अर्थात् भिन्न-भिन्न लोक-लोकान्तरों व पदार्थों का ज्ञान (दात्रे) = तेरे प्रति अपने को देनेवाले के लिए [दादाने] वासनाओं का विनाश करनेवाले के लिए [दाप लवने] और इसप्रकार अपने जीवन को शुद्ध बनानेवाले के लिए [दैप शोधने] (आमिक्षाम्) = [तसे पयसि दध्यानयति सा वैश्वदेवी आमिक्षा भवति] गर्म दूध में दही के मिश्रण से उत्पन्न पदार्थ को (क्षीरः सर्पिः अथो मधु) = दूध, घृत व शहद को (दुह्रताम्) = दूहें-प्राप्त कराएं।
भावार्थ
वेदज्ञान हमारे लिए 'आमिक्षा-सर्पि, क्षीर व मधु' को प्राप्त कराता है, अर्थात् हमें इनके प्रयोग के लिए प्रेरित करता है।
भाषार्थ
जो तेरे दो होठ है, जो दो नासिका छिद्र है, जो दो सींग है, और जो तेरी दो आखें है वे दाता के लिये आमिक्षा, क्षीर, सर्पिः और मधु (दुह्रताम्) दोहन करें, प्रदान करें।
टिप्पणी
[नासिके=श्वास प्रश्वास, यभा "नसोः प्राणः" (अथर्व० १९।६०।१)। शृङ्गे =प्रजापति और परमेष्ठी (अथर्व० ९।१२।१)। अक्षिणी = सूर्य और चन्द्र (अथर्व० १०।७।३३)]।
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
Let your lips, your nostrils, your horns and your eyes yield curd and cheese, milk, ghrta and the honey sweets of life’s nourishments for the generous giver.
Translation
May your these two lips, these two nostrils, these two horns, your these two eyes, yield to your donor mingled curd, milk, melted butter and honey as well.
Translation
Let both of its lips, its nostrils, both of its horns and these two eyes of it pour Amiksha, and sweet milk for the giver.
Translation
Let both thy lips, thy nostrils, both thy horns, and these two eyes of thine, grant for a charitably disposed person, curd, milk, butter and the knowledge of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(अक्षिणी) नेत्रे। अन्यत् स्पष्टम् ॥
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