अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 24
ऋषिः - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
1
यत्ते॒ चर्म॑ शतौदने॒ यानि॒ लोमा॑न्यघ्न्ये। आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । चर्म॑ । श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒ । यानि॑ । लोमा॑नि । अ॒घ्न्ये॒ । आ॒मिक्षा॑म् । दु॒ह्र॒ता॒म् । दा॒त्रे । क्षी॒रम् । स॒र्पि: । अथो॒ इति॑ । मधु॑ ॥९.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते चर्म शतौदने यानि लोमान्यघ्न्ये। आमिक्षां दुह्रतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । चर्म । शतऽओदने । यानि । लोमानि । अघ्न्ये । आमिक्षाम् । दुह्रताम् । दात्रे । क्षीरम् । सर्पि: । अथो इति । मधु ॥९.२४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली ! और (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली ! [वेदवाणी] (यत्) जो (ते) तेरा (चर्म) चर्म और (यानि) जो (लोमानि) लोम हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा [पकाये उष्ण दूध में दही मिलाने से उत्पन्न वस्तु], (क्षीरम्) दूध, (सर्पिः) घी (अथो) और भी (मधु) मधुज्ञान [ब्रह्मविद्या] (दात्रे) दाता को (दुह्रताम्) भरपूर करें ॥२४॥
भावार्थ
मन्त्र १३ के समान है ॥२४॥
टिप्पणी
२४−(शतौदने) म० १। हे बहुप्रकारसेचनशीले (अघ्न्ये) म० ३। हे अहिंसिके वेदवाणि। अन्यद् गतम्−म० १३ स्पष्टं च ॥
विषय
वेदज्ञान व सात्विक अन्न
पदार्थ
१. (यत् ते मज्जा) = जो तेरी मज्जा [अस्थि की मींग] है, (यत् अस्थि) = जो हडी है, (यत् मांसम्) = जो मांस है (यत् च लोहितम्) = और जो रुधिर है। (यौ ते बाहू) = जो तेरी भुजाएँ हैं, (ये दोषणी) = जो भुजा के उपरले भाग हैं, (यौ अंसौ) = जो कन्धे है, (या च ते ककुत्) = और जो तेरा कुहान है। (या: ते ग्रीवा:) = जो तेरी गर्दन की हड्डियाँ हैं, (ये स्कन्धा:) = जो तेरे कन्धों की हड्डियाँ हैं, (याः पृष्टी:) = जो पीठ की हड्डियाँ हैं, (याः च पशर्व:) = और जो पसलियाँ हैं। (यौ ते उरू) = जो तेरी जाँचे हैं, (अष्ठीवन्तौ) = जो घुटने हैं, (ये श्रोणी) = जो कूल्हे हैं, (या च ते भसत) = जो तेरा पेड़ है, (यत् ते पुच्छम्) = जो तेरी पूँछ है, (ये ते बाला:) = जो तेरे बाल हैं, (यत् ऊध:) = जो तेरा दुग्धाशय है, (ये च ते स्तना:) = और जो तेरे स्तन हैं। (याः ते जंघा:) = जो तेरी जाँचे है, (याः कुष्ठिका:) = जो कुष्टिकाएँ हैं-खुट्टियाँ हैं [The mouth or openings], छिद्र हैं, (ऋच्छरा:) = खुट्टों के ऊपर के भाग [कलाइयाँ] है, (ये च ते शफा:) = और जो तेरे खुर हैं। हे (शतौदने) = शतवर्षपर्यन्त हमारे जीवनों को आनन्दसिक्त करनेवाली वेदधेनो! (यत् ते चर्म) = जो तेरा चाम है और है (अघ्न्ये) = अहन्तव्ये वेदधेनो! (यानि लोमानि) = जो तेरे लोम हैं। २. ये सब, अर्थात् सब लोक-लोकान्तरों का ज्ञान (दात्रे) = तेरे प्रति अपने को दे डालनेवाले के लिए (आमिक्षाम्) = श्रीखण्ड को, (क्षीरम्) = दूध को, (सर्पिः) = घृत को (अथो मधु) = और मधु को दहताम्-प्रपूरित करें।
भावार्थ
वेदधेनु के ज्ञानदुग्ध का पान करते हुए हम 'आमिक्षा, क्षीर, सर्पि व मधु' जैसे उत्तम पदार्थों का ही प्रयोग करनेवाले बनते हैं।
भाषार्थ
(शतौदने) हे शतौदने ! (ते) तेरा (यत् चर्म) चमड़ा है, (अघ्न्ये) हे अहन्तव्ये ! (यानि लोमानि) जो लोम है, वे (दात्रे) दाता के लिये आमिक्षा, क्षीर, सर्पि:, और और मधु (दुह्रताम् दोहे, प्रदान करें।
टिप्पणी
[शतौदना= सैकड़ों प्रकार के ओदन आदि ओज्य पदार्थ देने वाली पारमेश्वरी माता,अघ्न्ये=अ+हन्+यक् (उणा० ४।१३)। चर्म=विश्वव्यचाः, विश्व में फैला हुआ आकाश या अन्तरिक्ष। लोमानि=ओषधयः (अथर्व० ९।१२(७)।१५), व्रह्माण्ड-गौ पक्ष में जिस की अधिष्ठात्री परमेश्वरी माता है। दाता= पारमेश्वरी माता का दर्शन करा देने वाला अध्यात्म गुरु।]
इंग्लिश (4)
Subject
Shataudana Cow
Meaning
Whatever is your skin cover, O cosmic mother of a hundred gifts of food and enlightenment, whatever is your hair, O sacred mother inviolable, let them all yield curd and cheese, milk, ghrta, and the honey sweets of life’s nourishments for the generous giver. (Shataudana Cow is Invioable.)
Translation
May your this hide, O Sataudana, and these hairs, O inviolable one, yield to your donor mingled curd, milk, melted butter and honey as well.
Translation
Let the skin and hair of this Shataudana, which is not to be killed pour Amiksha and the seet milk for the giver.
Translation
O Non-violent Vedic Speech, Imparter of Hundred-fold knowledge, let thy principles and teachings grant for a charitably disposed person, curd, milk, butter and the knowledge of God.
Footnote
चर्म : Skin, principles लोमानि: Hair, teachings.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२४−(शतौदने) म० १। हे बहुप्रकारसेचनशीले (अघ्न्ये) म० ३। हे अहिंसिके वेदवाणि। अन्यद् गतम्−म० १३ स्पष्टं च ॥
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