अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 10
म॑हान॒ग्नी कृ॑कवाकं॒ शम्य॑या॒ परि॑ धावति। अ॒यं न॑ वि॒द्म यो मृ॒गः शी॒र्ष्णा ह॑रति॒ धाणि॑काम् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हा॒न् । अ॒ग्नी इति॑ । कृ॑कवाक॒म् । शम्य॑या॒ । परि॑ । धावति ॥ अ॒यम् । न । वि॒द्म । य: । मृ॒ग॒: । शी॒र्ष्णा । ह॑रति॒ । धाणिकम् ॥१३६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
महानग्नी कृकवाकं शम्यया परि धावति। अयं न विद्म यो मृगः शीर्ष्णा हरति धाणिकाम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहान् । अग्नी इति । कृकवाकम् । शम्यया । परि । धावति ॥ अयम् । न । विद्म । य: । मृग: । शीर्ष्णा । हरति । धाणिकम् ॥१३६.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(महान्) महान् पुरुष (अग्नी) दोनों अग्नियों [आत्मिक और सामाजिक बलों] से और (शम्यया) जूये की कील [के समान शस्त्र] से (कृकवाकम् परि) बनावटी बोलीवाले पर (धावति) दौड़ता है। [उसको] (न) अब (विद्म) हम जानते हैं, (अयम् यः) यह जो (मृगः) पशु [के तुल्य मूर्ख] (शीर्ष्णा) शिर से [कल्पित विचार से] (धाणिकाम्) बस्ती [राजधानी आदि] को (हरति) लूटता है ॥१०॥
भावार्थ
जो ठग छल से झूँठी बनावटी बोली बोलकर राजधानी आदि बस्ती को लूटें, राजा उनको यथावत् दण्ड देवें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(महान्) (अग्नी) म० ६। अग्निभ्याम्। आत्मिकसामाजिकबलाभ्याम् (कृकवाकम्) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। करोतेः−कक्+वच कथने−घञ्। कृकः कृत्रिमः कल्पितो वाको वचनं यस्य तम्। कृत्रिमवाचिनम् (शम्यया) अथ० ६।१३८।४। शान्तिकरेण युगकीलतुल्यशस्त्रेण (परि) प्रति (धावति) शीघ्रं गच्छति (अयम्) (न) सम्प्रति−निरु० ७।३१। (विद्म) जानीमः (यः) (मृगः) पशुतुल्यो मूर्खः (शीर्ष्णा) शिरसा। कल्पितविचारेण (हरति) लुण्टति (धाणिकाम्) आणको लूघूशिङ्घिधाञ्भ्यः। उ० ३।८३। दधातेः-आणकप्रत्ययः, टाप् अत इत्त्वम्। वस्तीम्। राजधान्यादिकाम् ॥
विषय
[मृग] मुख्य राजपुरुष की नियुक्ति
पदार्थ
१. (महान्) = महनीय राजा (अग्नी) = सभा व समिति के सदस्यों के प्रति (परिधावति) = शीघ्रता से जाता है, उसी प्रकार जाता है जैसे कि (शम्यया) = [शमी-कर्म नि० २.१] शान्तभाव से किये जानेवाले कर्मों के हेतु से (कृकवाकम्) = कण्ठ से बोलनेवाले-सम्मति देनेवाले पुरुष को कोई प्राप्त होता है। सभा व समिति के परामर्श से ही राजा कार्यों को करता है। २. राजा सभा ब समिति के सदस्यों से यही पूछता है कि 'मुझे (न विद्म) = समझ नहीं पड़ रहा कि (अयम्) = वह कौन-सा (मृग:)= -आत्मान्वेषण करनेवाला तथा प्रत्येक राजकार्य का ठीक से अन्वेषण करनेवाला व्यक्ति है (य:) = जो (धाणिकाम्) = इस प्रजा की धारक पृथिवी को (शीर्ष्णा हरति) = आपने सिर पर उठाता है, अर्थात् किस व्यक्ति के कन्धे पर मुख्यरूप से राज्यभार डाला जाए। सभा व समिति के सदस्यों से सलाह करके ही राजा इस मुख्य राजपुरुष की नियुक्ति करता है। ['सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितरौं संविदाने । येना संगच्छा उप मा स शिक्षाच्चारु वदानि पितरः संगतेषु।' इस अथर्वमन्त्र में स्पष्ट है कि राजा सभा व समिति के सदस्यों से परामर्श करता है और उस सारे कार्य में बड़े मधुर शब्दों का ही प्रयोग होता है।]
भावार्थ
राजा सभा व समिति के सदस्यों के परामर्श से मुख्य राजपुरुष की नियुक्ति करता है। यह राजपुरुष पृथिवी के बोझ को धारण करने के लिए एक-एक राजकार्य को सूक्ष्मता से देखता है।
भाषार्थ
(महानग्नी) महा-अपठिता पत्नी, (कृकवाकम्) पुरुष बोली बोलने वाले पति की ओर, (शम्यया) उसे शान्त करनेवाली लाठी लेकर, (परि धावति) इधर-उधर दौड़ती है, और कहती है कि (न विद्म) हम नही जानतीं कि (अयम्) यह कौन (मृगः) जङ्गली पशु है, (यः) जो कि (शीर्ष्णा) सिर पर (धानिकाम्) धान का गठ्ठर रखे (हरति) ला रहा है।
टिप्पणी
[कृकवाकु=कड़कती वाणीवाला। धाणिकाम्=मन्त्र ९ में अन्नविभाजन का वर्णन है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
The man of two great fires courts the peacock with bird feed in a sacred vessel and says: it is so because we do not know any musk deer that holds the musk on is head for the hunter nor any hunter who carries the bait on his head.
Translation
The great man through these fires and through the nail of axle makes the man of artificial voice run away. Now we know that he is that fool who through his head robs the kingdom.
Translation
The great man through these fires and through the nail of axle makes the man of artificial voice run away. Now we know that he is that fool who through his head robs the kingdom.
Translation
The great council of state peacefully follows the sweet-tongued head of the state. They say, “We know not as to which lion-hearted person bears on his head all the burden of nourishing and feeding the populace (i.e., everything goes on smoothly and imperceptibly).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(महान्) (अग्नी) म० ६। अग्निभ्याम्। आत्मिकसामाजिकबलाभ्याम् (कृकवाकम्) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। करोतेः−कक्+वच कथने−घञ्। कृकः कृत्रिमः कल्पितो वाको वचनं यस्य तम्। कृत्रिमवाचिनम् (शम्यया) अथ० ६।१३८।४। शान्तिकरेण युगकीलतुल्यशस्त्रेण (परि) प्रति (धावति) शीघ्रं गच्छति (अयम्) (न) सम्प्रति−निरु० ७।३१। (विद्म) जानीमः (यः) (मृगः) पशुतुल्यो मूर्खः (शीर्ष्णा) शिरसा। कल्पितविचारेण (हरति) लुण्टति (धाणिकाम्) आणको लूघूशिङ्घिधाञ्भ्यः। उ० ३।८३। दधातेः-आणकप्रत्ययः, टाप् अत इत्त्वम्। वस्तीम्। राजधान्यादिकाम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(মহান্) মহান পুরুষ (অগ্নী) উভয় অগ্নি [আত্মিক এবং সামাজিক বল] দ্বারা এবং (শম্যযা) জোয়ালের সূঁচালো অগ্রভাগ [এর মতো শস্ত্র] দ্বারা (কৃকবাকম্ পরি) কৃত্রিম বচনকারীর প্রতি (ধাবতি) ধাবন করে। [তাকে] (ন) এখন (বিদ্ম) আমরা জানি, (অয়ম্ যঃ) এই যে (মৃগঃ) পশু [এর তুল্য মূর্খ] (শীর্ষ্ণা) শির দ্বারা [কল্পিত বিচার দ্বারা] (ধাণিকাম্) বস্তী [রাজধানী আদি] (হরতি) লুট/হরণ করে ॥১০॥
भावार्थ
যে ঠগ ছলনা করে মিথ্যা কথা বলে রাজধানী আদি বাসস্থান লুটপাট করে, রাজা অবশ্যই তাঁকে যথাবৎ শাস্তি দেবে॥১০॥
भाषार्थ
(মহানগ্নী) মহা-অপঠিতা পত্নী, (কৃকবাকম্) বজ্র সদৃশ বাণী কথনকারী পতির দিকে, (শম্যযা) তাঁকে শান্ত করার লাঠি নিয়ে, (পরি ধাবতি) এদিক-ওদিক দৌড়ে, এবং বলে, (ন বিদ্ম) আমি জানি না যে (অয়ম্) এ কোন (মৃগঃ) বন্য পশু, (যঃ) যে (শীর্ষ্ণা) মাথায় (ধানিকাম্) ধানের গাদা রেখে (হরতি) নিয়ে আসছে।
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