अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 14
विदे॑वस्त्वा म॒हान॑ग्नी॒र्विबा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म्। कु॑मारी॒का पि॑ङ्गलि॒का कार्द॒ भस्मा॑ कु॒ धाव॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठविदे॑व: । त्वा । म॒हान् । अग्नी: । विबा॑धते । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् । कु॒मा॒रि॒का । पि॑ङ्गलि॒का । कार्द॒ । भस्मा॑ । कु॒ । धाव॑ति ॥१३६.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
विदेवस्त्वा महानग्नीर्विबाधते महतः साधु खोदनम्। कुमारीका पिङ्गलिका कार्द भस्मा कु धावति ॥
स्वर रहित पद पाठविदेव: । त्वा । महान् । अग्नी: । विबाधते । महत: । साधु । खोदनम् । कुमारिका । पिङ्गलिका । कार्द । भस्मा । कु । धावति ॥१३६.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे प्रजा जन !] (विदेवः) मदरहित [निरहंकारी], (महान्) महान् पुरुष (त्वा) तुझसे (महतः) बड़े (अग्नीः) अग्नियों [आत्मिक और सामाजिक बलों] के द्वारा (खोदनम्) खोदने के कर्म [सैंध सुरंग आदि] को (साधु) भले प्रकार (विबाधते) हटा देता है। (पिङ्गलिका) शोभायमान (कुमारिका) कामना योग्य कुमारी [कन्या] (कार्द) कीचड़ और (भस्मा) भस्म [राख आदि] को (कु) भूमि पर (धावति) शुद्ध कर देती है ॥१४॥
भावार्थ
राजा और प्रजा मिलकर चोर आदि दुष्टों को हटावें, जैसे शुद्ध स्वभाववाली स्त्री कूड़े-करकट को घर से बाहिर फैंक देती है ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(विदेवः) दिवु क्रीडामदादिषु−अच्। विगतमदः। निरहंकारः पुरुषः (विबाधते) निवारयति (कुमारिका) कमेः किदुच्चोपधायाः। उ० ३।१३८। कमु कान्तौ-आरन्, कन् टाप् अकारस्य उकारः, अत इत्त्वम्। कमनीया कन्या (पिङ्गलिका) कलस्तृपश्च। उ० १।१०४। पिजि दीप्तौ, वासे, बले, हिंसायां दाने च-कलप्रत्ययः, कन्, टाप्, अत इत्त्वम्। दीप्यमाना। शोभमाना (कार्द) कर्द कुत्सिते शब्दे-घञ्, विभक्तेर्लुक्। कार्दम् कर्दमम्। पङ्कम् (भस्मा) छान्दसो दीर्घः। भस्म। दग्धगोमयादिविकारम् (कु) कौ। भूम्याम् (धावति) धावु गतिशुद्ध्योः। शोधयति। अन्यद् यथा म० १२ ॥
विषय
कुमारिका पिङ्गलिका
पदार्थ
१. हे प्रजे! (विदेव:) = [दिव् क्रीडायां मदे स्वप्ने च] व्यर्थ की क्रीड़ाओं, मद व स्वप्न से रक्षित यह (महान) = महनीय राजा (त्वा) = तेरा लक्ष्य करके (अग्नी:) = अग्नि आदि से होनेवाले उपद्रवों को (विबाधते) = उत्तम व्यवस्था द्वारा रोकता है। राजा के लिए यही उचित है कि शिकार आदि में समय का व्यर्थ यापन न करे। सदा अप्रमत्त व जागरित रहकर राजकार्यों में ध्यान दे। (महत:) = इस महनीय राजा का (खोदनम्) = शत्रुओं के विदारण का कार्य (साधु) = उत्तम है। २. इस राजा की (कुमारिका) = [कु मार्] बुरी तरह से शत्रुओं को मारनेवाली (पिङ्गलिका) = तेजस्विनी सेना-तेज से रक्तवर्णवाली सेना (कार्द भस्मा) = राष्ट्र की उन्नति में विघ्नरूप कीचड़ व राख को (कुधावति) = बुरी तरह से सफाया कर देती है। सेना किन्हीं भी अन्त: या बाह्य उपद्रवों को शान्त करती हुई राष्ट्र के उत्थान में सहायक होती है।
भावार्थ
राजा शिकार आदि में समय न गवाकर राष्ट्र के अन्दर व बाहर के उपद्रवों को शान्त करने का प्रयत्न करता है। इसकी तेजस्विनी सेना सब विघ्नों के कीचड़ व भस्मों को दूर कर देती है।
भाषार्थ
हे पत्नी! (त्वा) तुझ और अन्य (महानग्नीः) महा-अपठिता पत्नियों को, (महतः साधु खोदनम्) घर के बड़ों की कठोरवाणी द्वारा पिसाई से (विदेवः) कोई विशेष देव ही (वि बाधते) हटाएगा। देख, (कुमारिका) कुत्सित कामवासनावाली, और इसलिए (पिङ्गलिका) पीली पड़ गई स्त्री (कार्द भस्मा) कर्दम अर्थात् कीचड़ों तथा भस्मों के सदृश (कु धावति) धरा-शायी हो जाती है, अथवा उसकी कुत्सित-गति होती है।
टिप्पणी
[कु=पृथिवी; और कुत्सित। धावति=धावु गतौ।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O great man of two fires, the Great lord of peace of all the world well spares and protects you against the possible dangers of social breach and divisions of great order. The holy maiden, innocent and beautiful, with mud and ash, washes and sanctifies the floor of the house, saves it from internal dirt.
Translation
O people the great man free from arrogance through and through powerful fires checke the digging at social order as the beautiful girl with ashes cleans the mud on the earth.
Translation
O people the great man free from arrogance through and through powerful fires checke the digging at social order as the beautiful girl with ashes cleans the mud on the earth.
Translation
O great parliament, the victorious king of manifold fine qualities, exploits thee in various ways and extracts the best fortunes from the vast state under him. The glorious army, like a charming young girl, finishing its job, goes running forward to the higher ranks.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(विदेवः) दिवु क्रीडामदादिषु−अच्। विगतमदः। निरहंकारः पुरुषः (विबाधते) निवारयति (कुमारिका) कमेः किदुच्चोपधायाः। उ० ३।१३८। कमु कान्तौ-आरन्, कन् टाप् अकारस्य उकारः, अत इत्त्वम्। कमनीया कन्या (पिङ्गलिका) कलस्तृपश्च। उ० १।१०४। पिजि दीप्तौ, वासे, बले, हिंसायां दाने च-कलप्रत्ययः, कन्, टाप्, अत इत्त्वम्। दीप्यमाना। शोभमाना (कार्द) कर्द कुत्सिते शब्दे-घञ्, विभक्तेर्लुक्। कार्दम् कर्दमम्। पङ्कम् (भस्मा) छान्दसो दीर्घः। भस्म। दग्धगोमयादिविकारम् (कु) कौ। भूम्याम् (धावति) धावु गतिशुद्ध्योः। शोधयति। अन्यद् यथा म० १२ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে প্রজা জন!] (বিদেবঃ) মদ রহিত [নিরহঙ্কারী], (মহান্) মহান পুরুষ (ত্বা) তোমাদের (মহতঃ) মহান (অগ্নীঃ) অগ্নির [আত্মিক এবং সামাজিক বলের] দ্বারা (খোদনম্) খনন কার্য [সৈন্ধ সুরঙ্গ আদি] (সাধু) যথাযথ উপায়ে (বিবাধতে) নিবারিত করে। (পিঙ্গলিকা) শোভায়মান (কুমারিকা) কামনা যোগ্য কুমারী [কন্যা] (কার্দ) পঙ্কিল এবং (ভস্মা) ভস্ম [ছাই আদি] (কু) ভূমিকে (ধাবতি) শুদ্ধ করে ॥১৪॥
भावार्थ
রাজা এবং প্রজা মিলে চোর আদি দুষ্টদের দূর করুক, যেভাবে শুদ্ধ স্বভাবযুক্ত স্ত্রী আবর্জনা ঘরের বাহিরে ফেলে দেয় ॥১৪॥
भाषार्थ
হে পত্নী! (ত্বা) তোমাকে এবং (মহানগ্নীঃ) মহা-অপঠিতা পত্নীদের, (মহতঃ সাধু খোদনম্) ঘরের বড়োদের কঠোরবাণী দ্বারা পিষ্ট হওয়ার থেকে (বিদেবঃ) কোনো বিশেষ দেবই (বি বাধতে) দূর করবে। দেখো, (কুমারিকা) কুৎসিত কামবাসনাযুক্ত, এবং এইজন্য (পিঙ্গলিকা) ভীতসন্ত্রস্ত স্ত্রী (কার্দ ভস্মা) কর্দম তথা ভস্মের সদৃশ (কু ধাবতি) ধরা-শায়ী হয়ে যায়, অথবা তাঁর কুৎসিত-গতি হয়।
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