अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 15
म॒हान्वै॑ भ॒द्रो बि॒ल्वो म॒हान्भ॑द्र उदु॒म्बरः॑। म॒हाँ अ॑भि॒क्त बा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हान् । वै । भ॒द्र: । बि॒ल्व: । म॒हान् । भ॑द्र: । उदु॒म्बर॑: ॥ म॒हान् । अ॑भि॒क्त । बा॑धते । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् ॥१३६.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
महान्वै भद्रो बिल्वो महान्भद्र उदुम्बरः। महाँ अभिक्त बाधते महतः साधु खोदनम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहान् । वै । भद्र: । बिल्व: । महान् । भद्र: । उदुम्बर: ॥ महान् । अभिक्त । बाधते । महत: । साधु । खोदनम् ॥१३६.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(भद्रः) मङ्गलदाता (महान्) महान् पुरुष (वै) ही (बिल्वः) बेल [वृक्ष के समान उपकारी] है, (भद्रः) मङ्गलदाता (महान्) महान् पुरुष (उदुम्बरः) गूलर [वृक्ष के समान उपकारी] है। (अभिक्त) हे विख्यात ! (महान्) महान् पुरुष (महतः) बड़े [आत्मिक और सामाजिक बलों-म० १४] से (खोदनम्) खोदने के कर्म [सैंध सुरंग आदि] को (साधु) भले प्रकार (बाधते) हटाता है ॥१॥
भावार्थ
सब महान् पुरुष प्रयत्न करके प्रजा को दुष्टों से बचावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(महान्) (वै) एव (भद्रः) मङ्गलप्रदः (बिल्वः) उल्वादयश्च। उ० ४।९। बिल भेदने−वन्। फलवृक्षविशेषः। शिवद्रुमः (महान्) (भद्रः) (उदुम्बरः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। उडु संहतौ सौत्रो धातुः−कु। संज्ञायां भृतॄवृ०। पा० ३।२।४६। उडु+वृञ् वरणे−खच्, मुम् च, डस्य दः, वस्य बः। वृक्षविशेषः। जन्तुफलः। यज्ञीयः (महान्) (अभिक्त) अभि+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त, अकारलोपः। अभ्यक्त। हे विख्यात (बाधते) निवारयति। अन्यद् यथा म० १२ ॥
विषय
बिल्व+उदुम्बर
पदार्थ
१. (महान्) = = महनीय राजा (वै) = निश्चय से (भद्रः) = राष्ट्र का कल्याण करनेवाला है। यह (बिल्व:) = [विल्वं भिल्म भेदनात् । नि०] यह शत्रुओं का विदारण करनेवाला है। यह (महान्) = महनीय राजा (भद्रः) = बड़ा भला है-राष्ट्र का कल्याण करनेवाला है। (उदुम्बर:) = [उत् अतिशयेन अम्बते, अबि शके] राष्ट्र में खूब ही ज्ञान का प्रचार करनेवाला है अथवा प्रभु का स्तवन करनेवाला है। यह प्रभु-स्तवन ही इसे कर्तव्यकर्म की समुचित प्रेरणा प्राप्त कराता है। २. यह (महान्) = महनीय पूजनीय राजा (अभिक्त) = [अभिक्त:-अभि अक्तः, अञ्ज गती] शत्रु के प्रति गया हुआ, अर्थात् शत्रु पर आक्रमण करनेवाला होकर उन शत्रुओं को (बाधते) = पीड़ित करता है। (महत:) = इस महनीय राजा का (खोदनम्) = शत्रुभेदनरूपी कार्य साधु-बड़ा उत्तम है। यह शत्रुओं का सम्यक विदारण करके राष्ट्र-रक्षण का कार्य करता है।
भावार्थ
राजा शत्रुओं का भेदन करके प्रजा का कल्याण करता है। यह प्रजा में ज्ञान का प्रसार करके उसे उन्नत करता है।
भाषार्थ
पति के प्रति अन्य लोग (परे, १३) कहते हैं कि (महान्) गृहस्थ-जीवन में जो बड़ा होता है, वह (वै) निश्चय से, (बिल्वः) बिल्व के सदृश (भद्रः) कल्याणकारी और सुखदायी होता है, (महान्) गृहस्थ में बड़ा ही (उदुम्बरः) गूलर के सदृश (भद्रः) कल्याणकारी और सुखदायी होता है। (अभिक्त) हे गृहस्थ-प्राप्त पति! (महान्) गृहस्थ में बड़ा ही (बाधते) गृहस्थ के कष्टों को दूर करता है। (महतः) गृहस्थ में बड़े को ही (साधु) अच्छे प्रकार से (खोदनम्) कमाई आदि कामों में पिसना होता है। [अभिक्त=अभिगत, प्राप्त।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
The great one is good and kind for the social order, beneficent like a bilva tree, abundant and generous like the udumbara tree. O renowned ruler and citizen, the great one well protects you and the social order against terrible dissensions and calamities.
Translation
The great man doing good of all is benevolent like the Vilva tree and benevolent like the Udumbara tree. O famous one, great man through fires check the dig at society.
Translation
The great man doing good of all is benevolent like the Vilva tree and benevolent like the Udumbara tree. O famous one, great man through fires check the dig at society.
Translation
The mighty king, capable of smashing the enemy, can bring peace and prosperity to the people. Only the highly powerful king is a surity for peace and happiness of the state. The great king alone is capable of securing the good persperity and well-being of the big state on all sides.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(महान्) (वै) एव (भद्रः) मङ्गलप्रदः (बिल्वः) उल्वादयश्च। उ० ४।९। बिल भेदने−वन्। फलवृक्षविशेषः। शिवद्रुमः (महान्) (भद्रः) (उदुम्बरः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। उडु संहतौ सौत्रो धातुः−कु। संज्ञायां भृतॄवृ०। पा० ३।२।४६। उडु+वृञ् वरणे−खच्, मुम् च, डस्य दः, वस्य बः। वृक्षविशेषः। जन्तुफलः। यज्ञीयः (महान्) (अभिक्त) अभि+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त, अकारलोपः। अभ्यक्त। हे विख्यात (बाधते) निवारयति। अन्यद् यथा म० १२ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(ভদ্রঃ) মঙ্গলদাতা (মহান্) মহান পুরুষ (বৈ) কেবল (বিল্বঃ) বিশ্ব/বেল [বৃক্ষের মতো উপকারী], (ভদ্রঃ) মঙ্গলদাতা (মহান্) মহান পুরুষ (উদুম্বরঃ) যজ্ঞডুমুর [বৃক্ষের মতো উপকারী]। (অভিক্ত) হে বিখ্যাত! (মহান্) মহান পুরুষ (মহতঃ) মহান [আত্মিক এবং সামাজিক বল-ম০ ১৪] দ্বারা (খোদনম্) খনন কার্য [সৈন্ধ সুরঙ্গ আদি] (সাধু) যথাযথ উপায়ে (বাধতে) দূর করো॥১৫॥
भावार्थ
সকল মহান পুরুষ প্রযত্ন করে দুষ্টদের থেকে প্রজাদের রক্ষা করুক ॥১৫॥
भाषार्थ
পতির প্রতি অন্য লোকেরা (পরে, ১৩) বলে, (মহান্) গৃহস্থ-জীবনে যে বড়ো হয়, সে (বৈ) নিশ্চিতরূপে, (বিল্বঃ) বিল্বের সদৃশ (ভদ্রঃ) কল্যাণকারী এবং সুখদায়ী হয়, (মহান্) গৃহস্থের মধ্যে বড়োই (উদুম্বরঃ) উদুম্বর/ডুমুর-এর সদৃশ (ভদ্রঃ) কল্যাণকারী এবং সুখদায়ী হয়। (অভিক্ত) হে গৃহস্থ-প্রাপ্ত পতি! (মহান্) গৃহস্থে বড়ো/জৈষ্ঠ (বাধতে) গৃহস্থের কষ্ট দূর করে। (মহতঃ) গৃহস্থে জৈষ্ঠকেই (সাধু) ভালোভাবে (খোদনম্) উপার্জন আদি কাজে পিষ্ট হতে হয়। [অভিক্ত=অভিগত, প্রাপ্ত।]
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