अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 11
म॑हान॒ग्नी म॑हान॒ग्नं धाव॑न्त॒मनु॑ धावति। इ॒मास्तद॑स्य॒ गा र॑क्ष॒ यभ॒ माम॑द्ध्यौद॒नम् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हा॒न् । अ॒ग्नी इति॑ । म॑हान् । अ॒ग्नम् । धाव॑न्त॒म् । अनु॑ । धावति ॥ इ॒मा: । तत् । अ॑स्य॒ । गा: । र॑क्ष॒ । यभ॒ । माम् । अ॑द्धि॒ । औद॒नम् ॥११३६.११॥
स्वर रहित मन्त्र
महानग्नी महानग्नं धावन्तमनु धावति। इमास्तदस्य गा रक्ष यभ मामद्ध्यौदनम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहान् । अग्नी इति । महान् । अग्नम् । धावन्तम् । अनु । धावति ॥ इमा: । तत् । अस्य । गा: । रक्ष । यभ । माम् । अद्धि । औदनम् ॥११३६.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(महान्) महान् पुरुष (अग्नी) दोनों अग्नियों [आत्मिक और सामाजिक बलों] के, और (महान्) महान् पुरुष (अग्नम्) ज्ञानवान् (धावन्तम् अनु) दौड़ते हुए के पीछे (धावति) दौड़ता है। (तत्) सो (अस्य) इस [पुरुष] को (इमाः) इन (गाः) भूमियों की (रक्ष) रक्षा कर, (यभ) हे न्यायकारी ! (माम्) मुझको (औदनम्) भोजन (अद्धि) खिला ॥११॥
भावार्थ
महान् पुरुष आत्मिक और सामाजिक बल प्राप्त करके ज्ञानियों का अनुकरण करे और राज्य की रक्षा करके प्रजा को पाले ॥११॥
टिप्पणी
११−(महान्) (अग्नी) म० । आत्मिकसामाजिकपराक्रमौ (महान्) (अग्नम्) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। अग गतौ−न प्रत्ययः। ज्ञानवन्तम् (धावन्तम्) शीघ्रं गच्छन्तम् (अनु) अनुकृत्य (धावति) शीघ्रं गच्छति (इमाः) (तत्) ततः (अस्य) पुरुषस्य (गाः) भूमीः, (रक्ष) (यभ) मस्य भः। हे यम। न्यायकारिन् (माम्) प्रजाजनम् (अद्धि) अद भक्षणे, अन्तर्गतणिजर्थः। आदय। खादय। (औदनम्) स्वार्थे अण्। भोजनम् ॥
विषय
राजा पति है, प्रजा पत्नी
पदार्थ
१. गतमन्त्र में वर्णित मुख्य राजपुरुष को प्रस्तुत मन्त्र में 'अग्न' कहा गया है-राष्ट्र को आगे और आगे ले-चलनेवाला। (महान्) = महनीय राजा (अग्नी) = सभा व समिति के सदस्यों के (अनुधावति) = पीछे तो जाता ही है, अर्थात् प्रत्येक कार्य में उनका परामर्श तो लेता ही है। यह (महान्) = महनीय राजा (धावन्तम्) = गति के द्वारा प्रजा के जीवन को शुद्ध करते हुए [धाव गतिशुद्धयोः] (अग्नम्) = इस मुख्य राजपुरुष को भी (अनुधावति) = अनुसृत करता है, अर्थात् इस मुख्य राजपुरुष के अनुकूल होता है। २. इस मुख्य राजपुरुष से प्रजाएँ कहती हैं कि (तत्) = सो (अस्य) = इस राजा की (इमा: गा:) = इन भूमियों का तू रक्ष-रक्षण कर । (माम् यभ) = मेरे साथ तेरा निवास हो [co-habit]| प्रजा पत्नी हो तो तू उसका पति बन। पति पत्नी की रक्षा करता है। इसी प्रकार यह मुख्य राजपुरुष प्रजा की रक्षा करनेवाला हो। प्रजारक्षक तू (ओदनम् अद्धि) = ओदन खानेवाला बन। उसी राजा को खाने का अधिकार है जो प्रजा का रक्षण करता है। राजा का भोजन भी सात्त्विक ही होना चाहिए। मांसभोजन राजा की वृत्ति को क्रूर बना देगा-यह राजा प्रजा पर अत्याचार करेगा।
भावार्थ
राजा मुख्य राजपुरुष के अनुकूल होता है। यह राजपुरुष राजा की भूमियों का रक्षण करता है। सदा सात्विक भोजन ही करता है।
भाषार्थ
(महानग्नी) महा-अपठिता पत्नी, (धावन्तम्) भय से दौड़ते हुए (महानग्नम्) महा-अपठित पति के (अनु) पीछे-पीछे लाठी लेकर (१०) (धावति) दौड़ती है, और कहती है कि (तद्) सो (अस्य) इस घर की (इमाः गाः) इन गौओं की (रक्ष) तू रक्षा कर, (मा यभ) मेरे साथ गृहस्थधर्म का पालन कर, और खुशी से (ओदनम्) भात (आ अद्धि) पेट भर खा।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
The man of two great fires follows after the greater man of both the fires, spiritual and social. O Yama, lord of law and human destiny, protect the lands, cows and cultural traditions of this great man and provide the rice meal for me.
Translation
The great man runs after these two fires moving fast and the man of great proninence follows the quick-knowing learned man. O strong man, you guard these cows. O just man, you feed me with food.
Translation
The great man runs after these two fires moving fast and the man of great prominence follows the quick-knowing learned man. O strong man, you guard these cows. O just man, you feed me with food.
Translation
The great parliament moves quickly after the swift-moving, charming and learned leader. O self-same leader thou shouldst protect these lands and languages of this state. Let thee enjoy the power, wealth and fortune thereof along with me (i.e., the assembly), just as a husband enjoys his wife.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(महान्) (अग्नी) म० । आत्मिकसामाजिकपराक्रमौ (महान्) (अग्नम्) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। अग गतौ−न प्रत्ययः। ज्ञानवन्तम् (धावन्तम्) शीघ्रं गच्छन्तम् (अनु) अनुकृत्य (धावति) शीघ्रं गच्छति (इमाः) (तत्) ततः (अस्य) पुरुषस्य (गाः) भूमीः, (रक्ष) (यभ) मस्य भः। हे यम। न्यायकारिन् (माम्) प्रजाजनम् (अद्धि) अद भक्षणे, अन्तर्गतणिजर्थः। आदय। खादय। (औदनम्) स्वार्थे अण्। भोजनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(মহান্) মহান পুরুষ (অগ্নী) উভয় অগ্নি [আত্মিক এবং সামাজিক বল], এবং (মহান্) মহান পুরুষ (অগ্নম্) জ্ঞানবান (ধাবন্তম্ অনু) ধাবমানের পেছনে (ধাবতি) দৌড়ায়/ধাবন করে। (তৎ) তাই (অস্য) তাঁর [পুরুষের] (ইমাঃ) এই (গাঃ) ভূমির (রক্ষ) রক্ষা করো, (যভ) হে ন্যায়কারী! (মাম্) আমাকে (ঔদনম্) ভোজন (অদ্ধি) করাও ॥১১॥
भावार्थ
মহান পুরুষ আত্মিক এবং সামাজিক বল প্রাপ্ত করে জ্ঞানীদের অনুকরণ করে এবং রাজ্যের রক্ষা করে প্রজাদের পালন করুক ॥১১॥
भाषार्थ
(মহানগ্নী) মহা-অপঠিতা পত্নী, (ধাবন্তম্) ভয়ে ধাবন করে (মহানগ্নম্) মহা-অপঠিত পতির (অনু) পেছন-পেছন লাঠি নিয়ে (১০) (ধাবতি) ধাবন করে, এবং বলে, (তদ্) সেই (অস্য) এই ঘরের (ইমাঃ গাঃ) এই গাভীদের (রক্ষ) তুমি রক্ষা করো, (মা যভ) আমার সাথে গৃহস্থধর্ম পালন করো, এবং সুখপূর্বক (ওদনম্) ভাত (আ অদ্ধি) পেট ভরে খাও।
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