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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 136 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 5
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    म॑हान॒ग्न्यतृप्नद्वि॒ मोक्र॑द॒दस्था॑नासरन्। शक्ति॑का॒नना॑ स्वच॒मश॑कं सक्तु॒ पद्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हा॒न् । अ॒ग्नी इत‍ि॑ । अ॑तृप्नत् । वि । मोक्र॑द॒त् । अस्था॑ना । आसरन् ॥ श॑क्तिका॒नना: । स्व॑च॒मश॑कम् । सक्तु॒ । पद्य॑म् ॥१३६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महानग्न्यतृप्नद्वि मोक्रददस्थानासरन्। शक्तिकानना स्वचमशकं सक्तु पद्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महान् । अग्नी इत‍ि । अतृप्नत् । वि । मोक्रदत् । अस्थाना । आसरन् ॥ शक्तिकानना: । स्वचमशकम् । सक्तु । पद्यम् ॥१३६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (महान्) महान् पुरुष (अग्नी) दोनों अग्नियों [शारीरिक और आत्मिक बलों] को (वि) विशेष करके (अतृप्नत्) तृप्त करे, और (अस्थाना) अयोग्य स्थान में (आसरन्) आता हुआ (मोक्रदत्) न घबरावे। (शक्तिकाननाः) सामर्थ्य का प्रकाश करनेवाले हम (स्वचमशकम्) ज्ञातियों के लिये भोजन [लड्डू आदि] और (सक्तु) सत्तू (पद्यम्) प्राप्त करें ॥॥

    भावार्थ

    समर्थ मनुष्य अन्न आदि पदार्थों का संग्रह करके कठिन समय में अपने भाई-बन्धुओं को पुष्ट करके रक्षा करे ॥॥

    टिप्पणी

    −(महान्) समर्थः पुरुषः (अग्नी) प्रगृह्यत्वाभावः। अग्निरूपौ आत्मिकसामाजिकप्रतापौ (अतृप्नत्) तर्पयेत् (वि) विशेषेण (मोक्रदत्) क्रद, क्रदि वैकल्ये। नैव व्याकुलो भवेत् (अस्थाना) सुपां सुलुक्। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः। अयोग्यस्थानम् (आसरन्) सृ गतौ−शतृ। आगच्छन् (शक्तिकाननाः) कन दीप्तौ−णिच्, ल्युट्। शक्तिं कानयन्ति दीपयन्तीति शक्तिकाननाः। सामर्थ्यप्रकाशकाः (स्वचमशकम्) अत्यविचमितमि०। उ० ३।११७। चमु अदने−असच्। सस्य शः, स्वार्थे कन्। स्वेभ्यो ज्ञातिभ्यः पिष्टकमेदं लड्डुकादिकम् (सक्तु) भ्रष्टयवादिचूर्णम् (पद्यम्) वयं प्राप्नुयाम ॥

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    विषय

    राजा व सभ्यों का परस्पर प्रेममय व्यवहार

    पदार्थ

    १. (महान्) = [मह पूजायाम्] महिमा-सम्पन्न-पूजनीय राजा (अग्नी) = सभा व समितिरूप राष्ट्र की दोनों अग्नियों को राष्ट्र को आगे ले-चलनेवाली सभाओं को (वि अतृप्नत्) = अपने मधुर व्यवहार से प्रीणित करनेवाला होता है। यह राजा (अस्थाना) = दुर्गम स्थानों में कठिन [विषम] परिस्थितियों में (आसरन्) = गति करता हुआ (मा उ क्रदत्) = व्याकुल नहीं हो जाता-रोने नहीं लगता। सभा व समिति के साथ मिलकर उस अस्थान से पार होने के उपाय सोचता है। २. (शक्तिकानना) = [कन् दीप्तौ] शक्ति को दीस करनेवाले हम सभ्य (स्वचम्) = [सु अञ्च]-उत्तम गति को (अशकम्) = करने में समर्थ हों तथा (सक्तु) = परस्पर समवाय को (पद्यम) = प्राप्त करें। सभ्य शक्तिशाली हों, उत्तम गतिवाले तथा परस्पर मेलवाले हों।

    भावार्थ

    राजा सभा व समिति के प्रति मधुर व्यवहारवाला हो। उनकी सम्मति से कठिन समस्याओं को भी हल करनेवाला हो। सभ्य शक्तिशाली, उत्तम गतिवाले व परस्पर मेलवाले हों।

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    भाषार्थ

    (महानग्नी) महा अपठिता अर्थात् महामूर्खा स्त्री (अतृप्नत्) क्रोध में सन्दीप्त रहती है, और (मा) मुझ पति के प्रति, (उ) निश्चय से (विक्रदत्) क्रोध के विविध वचन बोलती रहती है, और (अस्थानासरन्) अस्थान में, जहाँ कि उसे नहीं जाना चाहिए वहां, चली जाती है। वह (शक्तिकानना) अव्यवस्थित शक्तियों का मानो जङ्गल होती है, (स्वचम्) और अपनी शक्तियों को खाती रहती है, कमजोर करती जाती है, (अशकम्) और शक्तिहीन होती जाती है, और (सक्तु) सत्तुओं की तरह (पद्यम) अपने हठों में लगी रहती है, चिपकी रहती है।

    टिप्पणी

    [महानग्नी=महा+न+ग्ना (वाक्; निघं০ १.११)+ई (स्त्रियाम्)ह। मन्त्र में मूर्खा स्त्री का वर्णन है। अतृप्नत्=तृप् संदीपने। स्वचम्=स्व+चमु (अदने)। कुन्ताप सूक्तों में यत्र तत्र अत्यन्त अप्रसिद्ध पदों और सन्धि आदि का प्रयोग हुआ है। इसलिए उन स्थानों में यथासम्भव अर्थ किये गये हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    The man of greatness should feed and satisfy two fires: the fire of yajna and the fire of hunger. Nor should he hesitate to take the risk of going to untrodden fields. So may we, lovers of strength and vigour, find good food and barley sattu in our dishes.

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    Translation

    The great man should satisfy the two fires, the fire of Yajna and the fire of stomache, should not hesitate in passing through the diffcult and troublesome places. We full of capabilities and capacity fine good food and flour of fried corn and barley.

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    Translation

    The great man should satisfy the two fires, the fire of Yajna and the fire of stomach, should not hesitate in passing through the difficult and troublesome places. We full of capabilities and capacity fine good food and flour of fried corn and barley.

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    Translation

    The assembly, like a beautiful lady, takes pride in its achievement. The learned head goes about addressing the general public loudly like the free horse moving about neighing loudly. The lustrous assembly gets its authority enhanced by the ready consensus amongst its members.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(महान्) समर्थः पुरुषः (अग्नी) प्रगृह्यत्वाभावः। अग्निरूपौ आत्मिकसामाजिकप्रतापौ (अतृप्नत्) तर्पयेत् (वि) विशेषेण (मोक्रदत्) क्रद, क्रदि वैकल्ये। नैव व्याकुलो भवेत् (अस्थाना) सुपां सुलुक्। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः। अयोग्यस्थानम् (आसरन्) सृ गतौ−शतृ। आगच्छन् (शक्तिकाननाः) कन दीप्तौ−णिच्, ल्युट्। शक्तिं कानयन्ति दीपयन्तीति शक्तिकाननाः। सामर्थ्यप्रकाशकाः (स्वचमशकम्) अत्यविचमितमि०। उ० ३।११७। चमु अदने−असच्। सस्य शः, स्वार्थे कन्। स्वेभ्यो ज्ञातिभ्यः पिष्टकमेदं लड्डुकादिकम् (सक्तु) भ्रष्टयवादिचूर्णम् (पद्यम्) वयं प्राप्नुयाम ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মহান্) মহান পুরুষ (অগ্নী) উভয় অগ্নিকে [শারীরিক এবং আত্মিক বলকে] (বি) বিশেষভাবে (অতৃপ্নৎ) তৃপ্ত করে, এবং (অস্থানা) অযোগ্য স্থানে (আসরন্) এসে (মোক্রদৎ) ব্যাকুল হয় না। (শক্তিকাননাঃ) সামর্থ্যের প্রকাশকারী আমরা (স্বচমশকম্) জ্ঞাতিদের জন্য ভোজন [লাড্ডু আদি] এবং (সক্তু) ছাতু (পদ্যম্) প্রাপ্ত করি ॥৫॥

    भावार्थ

    সমর্থ মনুষ্য অন্নাদি পদার্থসমূহ সংগ্রহ করে কঠিন সময়ে নিজের ভাই-বন্ধুদের পুষ্ট করে রক্ষা করুক ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (মহানগ্নী) মহা অপঠিতা অর্থাৎ মহামূর্খা স্ত্রী (অতৃপ্নৎ) ক্রোধে সন্দীপ্ত থাকে, এবং (মা) আমার [পতির] প্রতি, (উ) নিশ্চিতরূপে (বিক্রদৎ) ক্রোধের বিবিধ বচন বলতে থাকে, এবং (অস্থানাসরন্) অস্থানে, যেখানে তাঁর যাওয়া উচিত নয় সেখানে, চলে যায়। সে (শক্তিকাননা) অব্যবস্থিত শক্তির মানো জঙ্গল, (স্বচম্) এবং নিজ শক্তিকে ভক্ষণ করতে থাকে, দূর্বল করতে থাকে, (অশকম্) এবং শক্তিহীন হয়ে যায়, এবং (সক্তু) সত্তুর মতো (পদ্যম) নিজের দুরাগ্রহে নিয়োজিত থাকে।

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