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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 136 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 3
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    यद॑ल्पिका॒स्वल्पिका॒ कर्क॑न्धू॒केव॒ पद्य॑ते। वा॑सन्ति॒कमि॑व॒ तेज॑नं॒ यन्त्य॒वाता॑य॒ वित्प॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अल्पि॑का॒सु । अ॑ल्पिका॒ । कर्क॑ऽधू॒के । अव॒ऽसद्यते ॥ वास॑न्ति॒कम्ऽइ॑व॒ । तेज॑न॒म् । यन्ति॒ । अ॒वाता॑य॒ । वित्प॑ति ॥१३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदल्पिकास्वल्पिका कर्कन्धूकेव पद्यते। वासन्तिकमिव तेजनं यन्त्यवाताय वित्पति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अल्पिकासु । अल्पिका । कर्कऽधूके । अवऽसद्यते ॥ वासन्तिकम्ऽइव । तेजनम् । यन्ति । अवाताय । वित्पति ॥१३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जब (अल्पिकासु) छोटी प्रजाओं में (अल्पिका) छोटी प्रजा (कर्कन्धूके) अग्नि के झोके में (अवपद्यते) कष्ट पाती है। [तब] (वित्पति) विद्वानों के पतन में (अवाताय) दुःख मिटाने के लिये (वासन्तिकम् इव) वसन्त ऋतु में होनेवाली [उत्तेजना] के समान (तेजनम्) उत्तेजना को (यन्ति) वे [शूर लोग] पाते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    छोटी-छोटी प्रजाओं पर अन्याय होने से बड़ों को हानि पहुँचती है, इसलिये शूर वीर पुरुष वसन्त ऋतु के समान उत्तेजित होकर शत्रुओं का नाश करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यत्) यदा (अल्पिकासु) क्षुद्रासु प्रजासु (अल्पिका) क्षुद्रा प्रजा (कर्कन्धूके) कृदाधा०। उ० ३।४०। डुकृञ् करणे−कप्रत्ययः, ककारस्य इत्संज्ञा न। सृवृभू०। उ० ३।४१। धूञ् कम्पने−कक्। कर्कस्य अग्नेः धूके कम्पने (अवपद्यते) अवसीदति। दुःखं प्राप्नोति (वासन्तिकम्) वसन्ताच्च। पा० ४।३।२०। वसन्त−ठञ्। वसन्ते भवं तेजनम् (इव) यथा (तेजनम्) उद्दीपनम्। उत्तेजनाम्। प्रेरणाम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति ते शूराः (अवाताय) वात गतौ सेवायां सुखीकरणे च−घञ्। वातं सुखम् अवातं दुःखम्। तत् नाशयितुम् (वित्पति) विद ज्ञाने−क्विप्+पत्लृ गतौ−क्विप्। विदां विदुषां पति अधःपतने ॥

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    विषय

    गरीब-से-गरीब प्रजा का ध्यान

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब अल्पिकास (अल्पिका) = छोटों से भी छोटी, अर्थात् बहुत ही हीन अवस्था की प्रजा भी (कर्कन्धूके) = [कर्क fire, धूक-wind] आग या हवा में (अवपद्यते) = अवसन्न होती है, अर्थात् राष्ट्र में यदि गरीब-से-गरीब प्रजा भी आग या हवा के भयों से पीड़ित होती है तो राजपुरुष (इव) = जैस (वासन्तिकम्) = वसन्त ऋतु में होनेवाले (तेजनम्) = [Bamboo, reel] बाँसों व सरकण्डों की ओर (यन्ति) = जाते हैं, अर्थात् इन्हें एकत्र करके उन गरीब प्रजाओं के रहने व वायु आदि से बचाव के लिए झोपड़ियों का निर्माण कराते हैं, उसी प्रकार (अवाताय) = [अवात-unattacked] अग्नि, वायु आदि के आक्रमण न होने देने के लिए (वित्पति) = [विद् ज्ञाने, पत् गतौ] ज्ञान के साथ गति करनेवाले व्यक्ति में (यन्ति) = शरण लेते हैं। इन विद्वानों से अग्नि, वायु आदि के भयों से बचाव के लिए आवश्यक साधनों के प्रचार के लिए प्रार्थना करते हैं।

    भावार्थ

    राष्ट्र में अग्नि व वायु का उपद्रव होने पर राजपुरुषों द्वारा गरीब प्रजा के निवास के लिए झोपड़ियों का निर्माण करवाया जाए और विद्वानों से उन्हें उचित ढंग से रहने के लिए साधनों का ज्ञान प्राप्त कराया जाए।

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    भाषार्थ

    कुमारी (यद्) चाहे (अल्पिका) विवाहित स्त्री से अल्प आयुवाली हो, अर्थात् लगभग विवाह-योग्य आयुवाली हो, या (स्वल्पिका) और अल्प आयुवाली हो—(कर्कन्धूका=कर्कन्धूकानि) वह पके मीठे बेरों के सदृश मधुर स्वभाववाली होती हुई भी—बलात्कार की चेष्टा होने पर (अव षद्यते) खिन्न हो जाती है, (वित्पति) मानो प्राप्त-पतिका स्त्री के सदृश उस समय, (वासन्तिकम्) वसन्तकाल के (तेजनम् इव) तेज सूर्य के सदृश तेज धारण कर लेती है। और तब बलात्कारी पुरुष (अवाताय यन्ति) निष्प्राण हो जाने की ओर पग बढ़ा रहे होते हैं।

    टिप्पणी

    [कर्कन्धूक=बदरीफल (उणादि कोष १.९३) वैदिक यन्त्रालय, अजमेर। वित्पति=“अवपद्यते” क्रिया का विशेषण; विद्लृ लाभे+पति। अवाताय=अथवा राजनियमानुसार वे वायुरहित कारागार में जाते हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    When among the smallest of the small citizens of a nation, the people are made to fall like smallest berries from the main branch, then in that state of distress they rise with heat of passion for peace and freedom as from cold into warmth of the sun in spring after winter.

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    Translation

    When the subject of small kingdoms fall in the fire of great troubles the awakining as may be found in spring season is welcomed by the great men.

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    Translation

    When the subject of small kingdoms fall in the fire of great troubles the awakening as may be found in spring season is welcomed by the great men.

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    Translation

    When the populace is small, or rather very small in number it is considered like .the fruit of tiny shrub. But it gradually spreads its lustre far and wide, like the reed of the sun, of the spring season.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यत्) यदा (अल्पिकासु) क्षुद्रासु प्रजासु (अल्पिका) क्षुद्रा प्रजा (कर्कन्धूके) कृदाधा०। उ० ३।४०। डुकृञ् करणे−कप्रत्ययः, ककारस्य इत्संज्ञा न। सृवृभू०। उ० ३।४१। धूञ् कम्पने−कक्। कर्कस्य अग्नेः धूके कम्पने (अवपद्यते) अवसीदति। दुःखं प्राप्नोति (वासन्तिकम्) वसन्ताच्च। पा० ४।३।२०। वसन्त−ठञ्। वसन्ते भवं तेजनम् (इव) यथा (तेजनम्) उद्दीपनम्। उत्तेजनाम्। प्रेरणाम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति ते शूराः (अवाताय) वात गतौ सेवायां सुखीकरणे च−घञ्। वातं सुखम् अवातं दुःखम्। तत् नाशयितुम् (वित्पति) विद ज्ञाने−क्विप्+पत्लृ गतौ−क्विप्। विदां विदुषां पति अधःपतने ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যৎ) যখন (অল্পিকাসু) ক্ষুদ্র প্রজাদের মধ্যে (অল্পিকা) ক্ষুদ্র প্রজা (কর্কন্ধূকে) অগ্নির প্রভাবে (অবপদ্যতে) কষ্ট পায়। [তখন] (বিৎপতি) বিদ্বানদের পতনে (অবাতায়) দুঃখ দূর করার জন্য (বাসন্তিকম্ ইব) বসন্ত ঋতুতে উৎপন্ন হওয়া [উত্তেজনার] ন্যায় (তেজনম্) উত্তেজনাকে (যন্তি) সে [বীর মনুষ্য] পায় ॥৩॥

    भावार्थ

    ছোট-ছোট প্রজাদের উপর অন্যায় হলে বড়োদের হানি/ক্ষতি হয়, তাই বীর পুরুষ বসন্ত ঋতুর ন্যায় উত্তেজিত হয়ে শত্রুদের বিনাশ করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    কুমারী (যদ্) হোক (অল্পিকা) বিবাহিত স্ত্রী থেকে অল্প আয়ু, অর্থাৎ প্রায় বিবাহ-যোগ্য আয়ু হয়েছে, বা (স্বল্পিকা) আরও অল্প আয়ু—(কর্কন্ধূকা=কর্কন্ধূকানি) সে পক্ব মিষ্টি কর্কন্ধু [jujube] ফলের সদৃশ মধুর স্বভাবযুক্ত হয়েও—ধর্ষণের চেষ্টা হলে (অব ষদ্যতে) দুঃখপ্রাপ্ত হয়, (বিৎপতি) মানো প্রাপ্ত-পতিকা স্ত্রীর সদৃশ সেই সময়, (বাসন্তিকম্) বসন্তকালের (তেজনম্ ইব) প্রখর সূর্যের সদৃশ তেজ ধারণ করে। এবং তখন ধর্ষক পুরুষ (অবাতায় যন্তি) নিষ্প্রাণ হওয়ার দিকে পদবিক্ষেপ করে।

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