अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 12
सुदे॑वस्त्वा म॒हान॑ग्नी॒र्बबा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म्। कु॒सं पीव॒रो न॑वत् ॥
स्वर सहित पद पाठसुदे॑व: । त्वा । म॒हान् । अ॑ग्नी॒: । बबाध॑ते॒ । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् ॥ कु॒सम् । पीव॒र: । नव॑त् ॥१३६.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
सुदेवस्त्वा महानग्नीर्बबाधते महतः साधु खोदनम्। कुसं पीवरो नवत् ॥
स्वर रहित पद पाठसुदेव: । त्वा । महान् । अग्नी: । बबाधते । महत: । साधु । खोदनम् ॥ कुसम् । पीवर: । नवत् ॥१३६.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे प्रजा जन !] (सुदेवः) बड़ा विजय चाहनेवाला, (महान्) महान् पुरुष (त्वा) तुझसे (महतः) बड़े (अग्नीः) अग्नियों [आत्मिक और सामाजिक बलों] के द्वारा (खोदनम्) खोदने के कर्म [सैंध सुरंग आदि] को (साधु) भले प्रकार (बबाधते) रोकता है। (पीवरः) पुष्टाङ्ग पुरुष (कुसम्) आपस में मिलाप को (नवत्) प्राप्त करे ॥१२॥
भावार्थ
राजा और प्रजा के मेल से चोर आदि दुष्ट लोग प्रजा को न सतावें ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(सुदेवः) सुविजिगीषुः (त्वा) प्रजाजनसकाशात् (महान्) (अग्नीः) अग्नीन्। आत्मिकसामाजिकपराक्रमैः-इत्यर्थः (बबाधते) बाधते। निवारयति (महतः) विशालान्। विशालैः (साधु) यथा तथा। यथावत् प्रकारेण (खोदनम्) खुड संवरणे भेदने च−ल्युट्। भेदनम्। सन्धिकरणम्। (कुसम्) कुस संश्लेषणे−क, परस्परसंगमनम् (पीवरः) अर्त्तिकमिभ्रमि०। उ० ३।१३२। पीव स्थौल्ये−अरप्रत्ययः, स च चित्। पुष्टः पुरुषः (नवत्) नवत इति गतिकर्मा−निघ० २।१४। प्राप्नुयात् ॥
विषय
अग्नि-विबाधन व खोदन
पदार्थ
१. हे प्रजे! यह (सुदेव:) = उत्तम ज्ञान की ज्योतिवाला व उत्तम व्यवहारवाला (महान्) = महनीय राजा (त्वा) = तेरा लक्ष्य करके-तेरी स्थिति को अच्छा बनाने के उद्देश्य से (अग्नी:) = आग लगाने आदि उपद्रवों को (बबाधते) = खुब ही रोकता है। राष्ट्र में उत्पन्न होनेवाले उपद्रवों को रोकने का पूर्ण प्रयत्न करता है। इस (महत:) = महनीय राजा का-इसके द्वारा किया हुआ (खोदनम्) = [खुद् भेदने] शत्रुओं का विदारण साधुः उत्तम है। यह राष्ट्र को शत्रुओं के आक्रमण से सुरक्षित करता है। २. यह (पीवर:) = प्रजा-रक्षण द्वारा परिपुष्ट राज्यांगोंवाला राजा (कुसं नवत्) = प्रभु के संश्लेषण को प्राप्त करता है [नवतिर्गतिकर्मा] राजा को प्रभु-प्राप्ति तभी होती है जबकि वह प्रजा का सम्यक् रक्षण करता है। प्रजापालन ही राजा का प्रभु-पूजन है।
भावार्थ
उत्तम राजा अन्तः व बाह्य उपद्रवों से प्रजा का रक्षण करता है। इसप्रकार प्रजापालन करता हुआ राजा प्रभु का सच्चा पूजन करता है और प्रभु-प्राति का पात्र बनता है।
भाषार्थ
पति कहता है कि हे पत्नी! (सुदवेः) श्रेष्ठ परमेश्वर-देव ही (त्वा) तुझे और तेरे जैसी (महानग्नीः) महा-अपठिता स्त्रियों को, (बबाधते) ऐसे कठोर कर्मों से रोक सकता है। (महतः) मैं जो घर में बड़ा हूँ उसकी (साधु खोदनम्) काफी पिसाई हुई है—इस प्रकार कहता हुआ (पीवरः) मोटी बुद्धिवाला पति, (कुसम्) बड़बक्कु पत्नी की (नवत्) प्रशंसा करने लग जाता है।
टिप्पणी
[खोदनम्=क्षुदिर् संपेषणे। कुसम्=कुसम्=कुस् भाषार्थः।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O great man of two fires, the Great lord of all the world well spares and protects you against the possible dangers of social breach and division. The great man should only attain to peace, love and unity with the people.
Translation
O good one, O great one, a man through you and through these fires checks a dig in the society and let the man strong in his limbs and parts attain unity.
Translation
O good one, O great one, a man through you and through these fires checks a dig in the society and let the man strong in his limbs and pasts attain unity.
Translation
O great parliament, the brilliant king of good qualities, churns thee thoroughly and gets ample fortune and happiness from the big state under him. The strong destroy the weak. The strong parliament removes the weak king. So thou should enjoy all the fortunes of the state in unison with me (i.e., parliament) like the husband, enjoying his wife.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(सुदेवः) सुविजिगीषुः (त्वा) प्रजाजनसकाशात् (महान्) (अग्नीः) अग्नीन्। आत्मिकसामाजिकपराक्रमैः-इत्यर्थः (बबाधते) बाधते। निवारयति (महतः) विशालान्। विशालैः (साधु) यथा तथा। यथावत् प्रकारेण (खोदनम्) खुड संवरणे भेदने च−ल्युट्। भेदनम्। सन्धिकरणम्। (कुसम्) कुस संश्लेषणे−क, परस्परसंगमनम् (पीवरः) अर्त्तिकमिभ्रमि०। उ० ३।१३२। पीव स्थौल्ये−अरप्रत्ययः, स च चित्। पुष्टः पुरुषः (नवत्) नवत इति गतिकर्मा−निघ० २।१४। प्राप्नुयात् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে প্রজা জন!] (সুদেবঃ) মহা বিজয় ইচ্ছুক, (মহান্) মহান পুরুষ (ত্বা) তোমাদের (মহতঃ) মহান (অগ্নীঃ) অগ্নি [আত্মিক এবং সামাজিক বল] দ্বারা (খোদনম্) খনন কার্য [সৈন্ধ সুরঙ্গ আদি] (সাধু) যথাযথ উপায়ে (ববাধতে) নিবারণ করো। (পীবরঃ) পুষ্টাঙ্গ পুরুষ (কুসম্) পরস্পরের সাথে মিলন (নবৎ) প্রাপ্ত করুক ॥১২॥
भावार्थ
রাজা এবং প্রজার মিলনে চোর আদি দুষ্ট লোক প্রজাদের কষ্ট দেয় না ॥১২॥
भाषार्थ
পতি বলে, হে পত্নী! (সুদবেঃ) শ্রেষ্ঠ পরমেশ্বর-দেবই (ত্বা) তোমাকে এবং তোমার মতো (মহানগ্নীঃ) মহা-অপঠিতা স্ত্রীকে, (ববাধতে) এরূপ কঠোর কর্ম থেকে রোধ করেন। (মহতঃ) আমি যে ঘরে বড়ো আমার (সাধু খোদনম্) অনেক পেষাই হয়েছে—এমনটা বলে (পীবরঃ) মোটা বুদ্ধিসম্পন্ন পতি, (কুসম্) মূর্খা পত্নীর (নবৎ) প্রশংসা করতে শুরু করে।
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