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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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    याव॑तीः॒ किय॑तीश्चे॒माः पृ॑थि॒व्यामध्योष॑धीः। ता मा॑ सहस्रप॒र्ण्यो मृ॒त्योर्मु॑ञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याव॑ती: । किय॑ती: । च॒ । इ॒मा: । पृ॒थि॒व्याम् । अधि॑ । ओष॑धी: । ता: । मा॒ । स॒ह॒स्र॒ऽप॒र्ण्य᳡: । मृ॒त्यो: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥७.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यावतीः कियतीश्चेमाः पृथिव्यामध्योषधीः। ता मा सहस्रपर्ण्यो मृत्योर्मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यावती: । कियती: । च । इमा: । पृथिव्याम् । अधि । ओषधी: । ता: । मा । सहस्रऽपर्ण्य: । मृत्यो: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥७.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (यावतीः) जितनी (च) और (कियतीः) कितनी [विविध परिमाण और गुणवाली] (इमाः) ये (ओषधीः) ओषधियाँ (पृथिव्याम् अधि) पृथिवी के ऊपर [हैं]। (सहस्रपर्ण्यः) सहस्रों पोषणवाली (ताः) वे सब (मा) मुझको (मृत्योः) मरण [आलस्य] से और (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्य अन्न आदि ओषधियों द्वारा बल बढ़ाकर सुखी होवें ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(यावतीः) यत्परिमाणयुक्ताः (कियतीः) बहुगुणोपेता इत्यर्थः (इमाः) (पृथिव्याम्) भूमौ (अधि) उपरि (ओषधीः) (ताः) (मा) माम् (सहस्रपर्ण्यः) धापॄवस्य०। उ० ३।६। पॄ पालनपूरणयोः-न प्रत्ययः। बहुपालनोपेताः (मृत्योः) मरणात्। आलस्यात् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) आहननात् कष्टात् ॥

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    विषय

    सहस्त्रर्ण्य:

    पदार्थ

    (यावती: कियती: च) = जीतनी-कितनी भी (इमा:) = ये (प्रथिव्यां अधि) = इस पृथिवी पर (ओषधी:) =  ओषधियाँ हैं, (ता:) = वे (सहस्त्रर्ण्य:) = हज़ारों प्रकार से पालन व पूरण करनेवाली ओषधियों (मा) = मुझे (मृत्यो:) = मृत्यु से-रोग से तथा (अहंस:) = कष्टों से (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें।

    भावार्थ

    पृथिवी से उत्पन्न सब ओषधियों हजारों प्रकार से पालन व पूरण करती हैं। वे ओषधियाँ हमें रोगों व कष्टों से मुक्त करें।

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    भाषार्थ

    (यावतीः कियतीः च) जितनी कितनी भी (इमाः) ये (ओषधीः) ओषधियां (पृथिव्याम् अधि) पृथिवी में हैं, (ताः) वे (सहस्रपर्ण्यः) हजारों पत्तों वाली, या सहस्रविधि से पालने वाली, (मा) मुझे (मृत्योः) मृत्यु से, (अंहसः) और मृत्यु के कारणभूत पाप से (मुञ्चन्तु) छुड़ा दें।

    टिप्पणी

    [सहस्रपर्ण्यः = सहस्र + पर्णी (पत्तों वाली); अथवा सहस्र + पर्णी (पॄ पालने) हजारों का पालन करने वाली। मन्त्र द्वारा यह द्योतित होता है कि औषध-सेवन द्वारा पापकर्मों में प्रवृत्ति का भी शमन होता है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    As many as they may be, as many as they are on earth, may these herbs and plants, thousand-leaved and flowered, free us from sin and evil and the pain of death.

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    Translation

    All these herbs whatscever that grow in such a large number on earth - may those, having a thousand leaves, save me from the distress of death.

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    Translation

    Let these medicinal plants that grow over on the earth and that have thousand leaves, whatever their number and their size be, free me from the sin of death.

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    Translation

    These plants that grow upon the earth, whate’er their number and their size, let these with all their thousand leaves free me from the pangs of death.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(यावतीः) यत्परिमाणयुक्ताः (कियतीः) बहुगुणोपेता इत्यर्थः (इमाः) (पृथिव्याम्) भूमौ (अधि) उपरि (ओषधीः) (ताः) (मा) माम् (सहस्रपर्ण्यः) धापॄवस्य०। उ० ३।६। पॄ पालनपूरणयोः-न प्रत्ययः। बहुपालनोपेताः (मृत्योः) मरणात्। आलस्यात् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) आहननात् कष्टात् ॥

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