अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
ऋषिः - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - उपरिष्टान्निचृद्बृहती
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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वैया॑घ्रो म॒णिर्वी॒रुधां॒ त्राय॑माणोऽभिशस्ति॒पाः। अमी॑वाः॒ सर्वा॒ रक्षां॒स्यप॑ ह॒न्त्वधि॑ दू॒रम॒स्मत् ॥
स्वर सहित पद पाठवैया॑घ्र: । म॒णि: । वी॒रुधा॑म् । त्राय॑माण: । अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपा: । अमी॑वा: । सर्वा॑ । रक्षां॑सि । अ॑प । ह॒न्तु॒ । अधि॑ । दू॒रम् । अ॒स्मत् ॥७.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
वैयाघ्रो मणिर्वीरुधां त्रायमाणोऽभिशस्तिपाः। अमीवाः सर्वा रक्षांस्यप हन्त्वधि दूरमस्मत् ॥
स्वर रहित पद पाठवैयाघ्र: । मणि: । वीरुधाम् । त्रायमाण: । अभिशस्तिऽपा: । अमीवा: । सर्वा । रक्षांसि । अप । हन्तु । अधि । दूरम् । अस्मत् ॥७.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोग के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
(वीरुधाम्) ओषधियों का (वैयाघ्रः) व्याघ्रसम्बन्धी [महाबली] (त्रायमाणः) रक्षा करता हुआ, (अभिशस्तिपाः) पीड़ा से रक्षा करनेवाला (मणिः) मणि [उत्तम गुण] (अमीवाः) रोगों को और (सर्वा) सब (रक्षांसि) राक्षसों [विघ्नों] को (अस्मत्) हमसे (दूरम्) दूर (अधि) अधिकारपूर्वक (अप हन्तु) हटा देवे ॥१४॥
भावार्थ
मनुष्य उत्तम पदार्थों के सेवन से नीरोग और पुष्टाङ्ग होवें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(वैयाघ्रः) व्याघ्र-अण्। व्याघ्रसम्बन्धी। महाबली (मणिः) प्रशस्तगुणः (वीरुधाम्) ओषधीनाम् (त्रायमाणः) पालयन् (अभिशस्तिपाः) अ० २।१३।३। पीडायाः सकाशाद् रक्षकः (अमीवाः) अ० ७।४२।१। रोगान् (सर्वा) शेर्लुक्। सर्वाणि (रक्षांसि) राक्षसान्। विघ्नान् (अप हन्तु) विनाशयतु (अधि) अधिकम् (दूरम्) (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् ॥
विषय
वैयाघ्रो मणिः
पदार्थ
१. (वीरुधाम्) = लता रूप ओषधियों से बनाई गई (वैयाघ्र) = विशिष्ट प्रकार की गन्ध देनेवाली (मणि:) = रोग स्तम्भन गुटिका (त्रायमान:) = रोगों से बचानेवाली और (अभिशस्तिपा:) = निन्दनीय अभिशाप आदि से भी रक्षा करनेवाली होती है। २. यह वैयाघ्र मणि (सर्वा: अमीवा:) = सब प्रकार के रोगों को, (रक्षासि) = सब रोगकृमियों को (अस्मत् अधि) = हमसे (दूरम् अपहन्तु) = सुदूर विनष्ट करनेवाली हो।
भावार्थ
ओषधियों से निर्मित विविध गन्धोंवाली गोलियाँ सब रोगकृमियों व रोगों को हमसे दूर भगाएँ।
भाषार्थ
(वीरुधाम्) विरोहण स्वभाववाली लता आदि में, (वैयाघ्रः) वैयाघ्र वीरुध् (मणिः) सर्वश्रेष्ठ रत्न है, (त्रायमाणः) यह मणि पालन करता, (अभिशस्तिपाः) तथा रोगजन्य हिंसा से रक्षा करता है। (अमीवाः) रोगों या रोग कीटाणुओं, तथा (सर्वा रक्षांसि) सब राक्षसी कर्मों का (अप हन्तु) यह हनन करे, और उन्हें (अस्मत् अधि) हम से (दूरम्) दूर करे। अमीवाः = अम रोगे (चुरादिः)।
टिप्पणी
[वैयाघ्रः; व्याघ्र का अभिप्राय है "कास्टर-आयल का पौधा"। यथा “व्याघ्रः” The red variety of the castor-oil " (आप्टे)। व्याघ्र एव वैयाघ्रः (स्वार्थ अण्)। व्याघ्र ओषधि को मणि कहा है, यह वीरुधों में श्रेष्ठ है। यथा "जातौ जातौ युदुत्कृष्टं तद्रत्नमभिधीयते" (मल्लिनाथ)। तथा मणिः="Any thing best of its kind" (आप्टे)। कास्टर आयल पौधे को मणि इस लिये कहा है कि बद्धकोष्ठता [कब्ज] के लिये यह सर्वोत्तम तैल है। रोगों का कारण बद्धकोष्ठता [कब्ज] है। कोष्ठ के ठीक रहने पर रोग प्रायः नहीं होते। व्याघ्रपदघटित अन्य ओषधियां भी हैं, यथा व्याघ्रपुच्छ, व्याघ्रपात् (वनौषधि चन्द्रोदय, चन्द्रराजभण्डारी, विशारद)। अथवा "व्याघ्र इव वैयाघ्रः" व्याघ्रवत् रोगों पर आक्रमणकारी]|
इंग्लिश (4)
Subject
Health and Herbs
Meaning
Of tiger-force is the value and efficacy of herbs and plants, they save us from ill-health, sufferance and ignominy. May these ward off, throw far out from us, all diseases and destructive negativities.
Translation
May the strong-smelling (vaiyaghrah) essence of plants, a protector, guarding against infection, beat all the disease and the germs far away from us.
Translation
Let Mani, the tablet prepared of these herbaceous plants know as vaiygaghra (as powerful as lion), protective and guard against disease, beat the diseases, and all troubles off from us,
Translation
May the plants’ excellent efficacy, protective, guardian from pain, drive I maladies afar from us, and beat off the brood of their germs.
Footnote
मणि has been translated by Griffith as amulet. The word means efficacy, potency.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(वैयाघ्रः) व्याघ्र-अण्। व्याघ्रसम्बन्धी। महाबली (मणिः) प्रशस्तगुणः (वीरुधाम्) ओषधीनाम् (त्रायमाणः) पालयन् (अभिशस्तिपाः) अ० २।१३।३। पीडायाः सकाशाद् रक्षकः (अमीवाः) अ० ७।४२।१। रोगान् (सर्वा) शेर्लुक्। सर्वाणि (रक्षांसि) राक्षसान्। विघ्नान् (अप हन्तु) विनाशयतु (अधि) अधिकम् (दूरम्) (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् ॥
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