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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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    आपो॒ अग्रं॑ दि॒व्या ओष॑धयः। तास्ते॒ यक्ष्म॑मेन॒स्यमङ्गा॑दङ्गादनीनशन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आप॑: । अग्र॑म् । दि॒व्या: । ओष॑धय: । ता: । ते॒ । यक्ष्म॑म् । ए॒न॒स्य᳡म् । अङ्गा॑त्ऽअङ्गात् । अ॒नी॒न॒श॒न् ॥७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपो अग्रं दिव्या ओषधयः। तास्ते यक्ष्ममेनस्यमङ्गादङ्गादनीनशन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आप: । अग्रम् । दिव्या: । ओषधय: । ता: । ते । यक्ष्मम् । एनस्यम् । अङ्गात्ऽअङ्गात् । अनीनशन् ॥७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्रम्) पहिले (दिव्याः) दिव्य गुणवाले (आपः) जल और (ओषधयः) ओषधियाँ [अन्न आदि पदार्थ] [थीं] (ताः) उन्होंने (एनस्यम्) पाप से उत्पन्न हुए (यक्ष्मम्) राजरोग को (ते) तेरे (अङ्गादङ्गात्) अङ्ग-अङ्ग से (अनीनशन्) नष्ट कर दिया है ॥३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर ने सृष्टि के आदि में जल अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न करके प्राणियों की रक्षा की है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(आपः) जलानि (अग्रम्) सृष्ट्यादौ (दिव्याः) उत्तमगुणाः (ओषधयः) अन्नादयः (ताः) (ते) तव (यक्ष्मम्) राजरोगम् (एनस्यम्) तत्र जातः। पा० ४।३।२५। य प्रत्ययः। पापोद्भवम् (अङ्गादङ्गात्) सर्वावयवात् (अनीनशन्) अ० १।२४।२। नाशितवत्यः ॥

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    विषय

    आप:-दिव्या ओषधयः

    पदार्थ

    १.(अग्रम्)  = सर्वप्रथम आप: ये जल, (दिव्याः ओषधयः) = दिव्य ओषधियाँ हैं। जल सर्वोत्तम औषध है। (ता:) = वे जल (ते) = तेरे (एनस्यम्) = पापजनित-विषयभोग से उत्पन्न (यक्ष्मम्) = रोग को (अङ्गात् अङ्गात्) = एक-एक अङ्ग से (अनीनशन्) = अदृष्ट कर दें। २. जलों का समुचित प्रयोग सर्वदोष विनाशक है। जलों में सब औषध विद्यमान हैं-'अप्सु में सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा'। जल शब्द ही 'जल घातने' धातु से बनकर स्पष्ट कर रहा है कि यह सब रोगों का घात करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-जल सर्वोत्तम दिव्य औषध हैं। इनका समुचित प्रयोग सर्वरोगविनाशक है।

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    भाषार्थ

    (आपः) जल हैं (अग्रम्) सर्वश्रेष्ठ (दिव्याः ओषधयः) दिव्य ओषधियां (ताः) वे (ते) तेरे (एनस्यम् यक्ष्मम्) पाप-जनित यक्ष्म को, (अङ्गात्, अङ्गात्) प्रत्येक अंग से (अनीनशन) नष्ट करें, या इन्होंने नष्ट कर दिया है।

    टिप्पणी

    [एनस्यम्= यक्ष्म आदि रोग पुरुष के पापकर्मों से उत्पन्न होते हैं, चाहे वे दूषित इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हुए हों, या दूषित प्राकृतिक तत्त्वों द्वारा। मन्त्र में जल चिकित्सा को सर्वोत्तम दर्शाया है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    Apah, waters and fluent energies of natural recuperation, are the first and best, and then there are the divine herbs which, from every part of your body, remove the consumptive disease caused by violation of the discipline of nature.

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    Translation

    The waters are the foremost divine remedy. May they remove your consumptive disease, caused by misdeeds (sin) from each and every limb.

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    Translation

    The pure waters ate the first and best of the medicines which removes consumption caused by disobedience of nature’s law- from every limb of yours, O man !

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    Translation

    The waters are the sovereign remedy, herbs possess divine efficacy, from every limb of thine, O patient, have they removed Consumption caused by sin.

    Footnote

    The science of hydropathy cures ailments through the proper use of water.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(आपः) जलानि (अग्रम्) सृष्ट्यादौ (दिव्याः) उत्तमगुणाः (ओषधयः) अन्नादयः (ताः) (ते) तव (यक्ष्मम्) राजरोगम् (एनस्यम्) तत्र जातः। पा० ४।३।२५। य प्रत्ययः। पापोद्भवम् (अङ्गादङ्गात्) सर्वावयवात् (अनीनशन्) अ० १।२४।२। नाशितवत्यः ॥

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