अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 19
ऋषिः - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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सर्वाः॑ सम॒ग्रा ओष॑धी॒र्बोध॑न्तु॒ वच॑सो॒ मम॑। यथे॒मं पा॒रया॑मसि॒ पुरु॑षं दुरि॒तादधि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑: । स॒म्ऽअ॒ग्रा: । ओष॑धी: । बोध॑न्तु । वच॑स: । मम॑ । यथा॑ । इ॒मम् । पा॒रया॑मसि । पुरु॑षम् । दु॒:ऽइ॒तात् । अधि॑॥७.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वाः समग्रा ओषधीर्बोधन्तु वचसो मम। यथेमं पारयामसि पुरुषं दुरितादधि ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वा: । सम्ऽअग्रा: । ओषधी: । बोधन्तु । वचस: । मम । यथा । इमम् । पारयामसि । पुरुषम् । दु:ऽइतात् । अधि॥७.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोग के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
(च) और (याः) जिन (वीरुधः) ओषधियों को (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ, (च) और (याः) जिनको (चक्षुषा) नेत्र से (पश्यामि) देखता हूँ। (च) और (याः) जिन (अज्ञाताः) अनजानी हुई [औषधियों को] (जानीमः) हम जानें (च) और (यासु) जिनमें (संभृतम्) पोषण सामर्थ्य (विद्म) हम जानें, [वे] (सर्वाः समग्राः) सबकी सब (ओषधीः) ओषधियाँ (मम वचसः) मेरे वचन का (बोधन्तु) बोध करें। (यथा) जिससे (इमम् पुरुषम्) इस पुरुष को (दुरितात्) कष्ट से (अधि) यथावत् (पारयामसि) हम पार लगावें ॥१८, १९॥
भावार्थ
विद्वान् वैद्य शास्त्रोक्त ओषधियों का और अपनी आविष्कृत ओषधियों का प्रचार संसार में नीरोगता बढ़ने के लिये करें ॥१८, १९॥ मन्त्र १८, १९ युग्मक हैं। मन्त्र १९ का उत्तर भाग मन्त्र सात में आ चुका है ॥
टिप्पणी
१८, १९−(याः) (च) (अहम्) (वेद) जानामि (वीरुधः) ओषधीः (याः) (च) (पश्यामि) अवलोकयामि (चक्षुषा) नेत्रेण (अज्ञाताः) अपरीक्षिताः (जानीमः) आविष्कुर्मः (याः) (विद्म) जानीमः (च) (संभृतम्) सम्यक् पोषणम् (सर्वाः समग्राः) समस्ता एव (ओषधीः) (बोधन्तु) बोधं कुर्वन्तु (वचसः) वचनस्य (मम)। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥
पदार्थ
१. (अहम्) = मैं (याः च वीरुधः वेद) = जिन लताओं को निश्चय से जानता हूँ, (याः च) = और जिनको (चक्षुषा पश्यामि) = आँख से देखता हूँ, (अज्ञाता: च याः जानीमः) = और आज तक अज्ञात जिन ओषधियों को हम अब जानने लगे हैं, (च) = और (यासु) = जिनमें (संभृतम्) = सम्यक् भरणशक्ति को (विना) = हम जानते हैं, २. वे (सर्वा:) = सब (समग्रा:) = सम्पूर्ण 'मूल, मध्य व अग्न' भाग समेत (ओषधी:) = ओषधियौं (मम वचस:) = मेरे वचन से बोधन्तु यह समझ लें (यथा) = जिससे (इमं पुरुषम्) = इस रोग-पीड़ित पुरुष को (दुरितात् अधि पारयामसि) = दुःखप्रद रोग से-रोगजनित कष्ट से पार लगा दें। एक वैद्य ओषधियों को सम्बोधन करता हुआ कहता है कि 'इस पुरुष को अवश्य नीरोग करना हो है।
भावार्थ
कुछ औषध हमें ज्ञात हैं, बहुत-से अज्ञात हैं। कई अज्ञात औषधों को समय प्रवाई में हम जान पाते हैं। इन सब औषधों के सम्यक् प्रयोग से रुग्ण पुरुष को रोग-कष्ट से मुक्त किया जाए।
भाषार्थ
(सर्वाः) सब (समग्राः) मिली हुई (ओषधीः) ओषधियाँ (मम) मेरे (वचसः) कथन को (बोधन्तु) जानें (यथा) जिस प्रकार कि (इमम्) इस (पुरुष) पुरुष को (दुरितात् अधि) दुष्कर्मों द्वारा प्राप्त रोग से (पारयामसि) हम पार कर दें।
इंग्लिश (4)
Subject
Health and Herbs
Meaning
May all these herbs and medications together, without exception or exclusion or negation, know and act according to my word of healing so that we may take this patient across and out of the crisis of his life- threatening disease.
Translation
May all the herbs along with their leaders listen to my call, so that we may get this man out of distress.
Translation
Let all the medicinal plants be known to people through my utterance and speeches, it is also known to them as how I, the physician rescue this man from severe distress.
Translation
Let all the aggregated plants attend and mark mine utterance, that we may rescue this man and save him from distressing disease.
Footnote
Mine: Of a learned physician.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८, १९−(याः) (च) (अहम्) (वेद) जानामि (वीरुधः) ओषधीः (याः) (च) (पश्यामि) अवलोकयामि (चक्षुषा) नेत्रेण (अज्ञाताः) अपरीक्षिताः (जानीमः) आविष्कुर्मः (याः) (विद्म) जानीमः (च) (संभृतम्) सम्यक् पोषणम् (सर्वाः समग्राः) समस्ता एव (ओषधीः) (बोधन्तु) बोधं कुर्वन्तु (वचसः) वचनस्य (मम)। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥
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