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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 18
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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    याश्चा॒हं वेद॑ वी॒रुधो॒ याश्च॒ पश्या॑मि॒ चक्षु॑षा। अज्ञा॑ता जानी॒मश्च॒ या यासु॑ वि॒द्म च॒ संभृ॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । च॒ । अ॒हम् । वेद॑ । वी॒रुध॑: । या: । च॒ । पश्या॑मि । चक्षु॑षा । अज्ञा॑ता: । जा॒नी॒म: । च॒ । या: । यासु॑ । वि॒द्म । च॒ । सम्ऽभृ॑तम् ॥७.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याश्चाहं वेद वीरुधो याश्च पश्यामि चक्षुषा। अज्ञाता जानीमश्च या यासु विद्म च संभृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । च । अहम् । वेद । वीरुध: । या: । च । पश्यामि । चक्षुषा । अज्ञाता: । जानीम: । च । या: । यासु । विद्म । च । सम्ऽभृतम् ॥७.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 18
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    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (च) और (याः) जिन (वीरुधः) ओषधियों को (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ, (च) और (याः) जिनको (चक्षुषा) नेत्र से (पश्यामि) देखता हूँ। (च) और (याः) जिन (अज्ञाताः) अनजानी हुई [औषधियों को] (जानीमः) हम जानें (च) और (यासु) जिनमें (संभृतम्) पोषण सामर्थ्य (विद्म) हम जानें, [वे] (सर्वाः समग्राः) सबकी सब (ओषधीः) ओषधियाँ (मम वचसः) मेरे वचन का (बोधन्तु) बोध करें। (यथा) जिससे (इमम् पुरुषम्) इस पुरुष को (दुरितात्) कष्ट से (अधि) यथावत् (पारयामसि) हम पार लगावें ॥१८, १९॥

    भावार्थ

    विद्वान् वैद्य शास्त्रोक्त ओषधियों का और अपनी आविष्कृत ओषधियों का प्रचार संसार में नीरोगता बढ़ने के लिये करें ॥१८, १९॥ मन्त्र १८, १९ युग्मक हैं। मन्त्र —१९ का उत्तर भाग मन्त्र सात में आ चुका है ॥

    टिप्पणी

    १८, १९−(याः) (च) (अहम्) (वेद) जानामि (वीरुधः) ओषधीः (याः) (च) (पश्यामि) अवलोकयामि (चक्षुषा) नेत्रेण (अज्ञाताः) अपरीक्षिताः (जानीमः) आविष्कुर्मः (याः) (विद्म) जानीमः (च) (संभृतम्) सम्यक् पोषणम् (सर्वाः समग्राः) समस्ता एव (ओषधीः) (बोधन्तु) बोधं कुर्वन्तु (वचसः) वचनस्य (मम)। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

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    विषय

    औषध आनन्त्य

    पदार्थ

    १. (अहम्) = मैं (याः च वीरुधः वेद) = जिन लताओं को निश्चय से जानता हूँ, (याः च) = और जिनको (चक्षुषा पश्यामि) = आँख से देखता हूँ, (अज्ञाता: च याः जानीमः) = और आज तक अज्ञात जिन ओषधियों को हम अब जानने लगे हैं, (च) = और (यासु) = जिनमें (संभृतम्) = सम्यक् भरणशक्ति

    को (विना) = हम जानते हैं, २. वे (सर्वा:) = सब (समग्रा:) = सम्पूर्ण 'मूल, मध्य व अग्न' भाग समेत (ओषधी:) = ओषधियौं (मम वचस:) = मेरे वचन से बोधन्तु यह समझ लें (यथा) = जिससे (इमं पुरुषम्) = इस रोग-पीड़ित पुरुष को (दुरितात् अधि पारयामसि) = दुःखप्रद रोग से-रोगजनित कष्ट से पार लगा दें। एक वैद्य ओषधियों को सम्बोधन करता हुआ कहता है कि 'इस पुरुष को अवश्य नीरोग करना हो है।

    भावार्थ

    कुछ औषध हमें ज्ञात हैं, बहुत-से अज्ञात हैं। कई अज्ञात औषधों को समय प्रवाई में हम जान पाते हैं। इन सब औषधों के सम्यक् प्रयोग से रुग्ण पुरुष को रोग-कष्ट से मुक्त किया जाए।

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    भाषार्थ

    (याः च) जिन (वीरुधः) ओषधियों को (अहम् वेद) मैं [वैद्य] जानता हूं, (याः च) और जिन्हें (चक्षुषा) निज आंख द्वारा (पश्यामि) मैं देखता हूं, (अज्ञाताः) जो अभी नहीं जानीं, (याः जानीमः, च) और जिन्हें हम जानते हैं, (यासु च) और जिन में (संभृतम्) [रसामृत] भरा हुआ या संहृत अर्थात् एकत्रित हुआ (विद्म) हम वैद्य जानते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    All those herbs and plants which I know, which I see with my eyes, all those which we know and those which are yet unknown: in all of them, we know, the food of life is full, collected and concentrated from nature.

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    Translation

    The plants, which I know, and those which I sée with my eye, and those unknown to us, and those known to us, and those, about which we know that in them the curing power is stored (samibhrtam).

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    Translation

    Let through my speech be known all those medicinal plants which are to know, which I see by my eyes, which are unknown which I see by my eyes, which are unknown, which I have to know and in which the power is stored.

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    Translation

    The plants I know myself, the plants that with mine eve I look upon, plants yet unknown, and those we know, wherein we find that healing power is stored.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १८, १९−(याः) (च) (अहम्) (वेद) जानामि (वीरुधः) ओषधीः (याः) (च) (पश्यामि) अवलोकयामि (चक्षुषा) नेत्रेण (अज्ञाताः) अपरीक्षिताः (जानीमः) आविष्कुर्मः (याः) (विद्म) जानीमः (च) (संभृतम्) सम्यक् पोषणम् (सर्वाः समग्राः) समस्ता एव (ओषधीः) (बोधन्तु) बोधं कुर्वन्तु (वचसः) वचनस्य (मम)। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

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